Friday 19 February 2021

बहुत फर्क है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के संदेश में।मोदी ने जहां ख्वाजा उर्स को कौमी एकता और भाईचारे की खूबसूरत मिसाल बताया तो वहीं सोनिया गांधी ने किसान आंदोलन और जम्हूरियत को कमजोर होने की बात कही। क्या किसी धार्मिक स्थल पर राजनीतिक जंग का संदेश उचित है? क्या सीएम गहलोत ने तैयार किया संदेश?ख्वाजा साहब के उर्स में सोनिया गांधी की चादर पेश करते समय खुद सीएम गहलोत ने कोविड-19 की गाइड लाइन का उल्लंघन किया।

ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में देश के प्रमुख व्यक्तियों द्वारा सूफी परंपरा के अनुरूप मजार शरीफ पर चादर पेश करने का रिवाज है। इस मौके पर प्रमुख व्यक्ति अपना संदेश भी जारी करते हैं। चूंकि ख्वाजा साहब की दरगाह एक धार्मिक स्थल है, इसलिए संदेशों को भी ख्वाजा साहब की शिक्षाओं तक सीमित रखा जाता है। यही वजह रही कि उर्स के दौरान 15 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो संदेश भिजवाया उसमें उर्स को कौमी एकता और भाईचारे की खूबसूरत मिसाल बताया। मोदी ने अपने संदेश में कहा कि अपने विचारों से समाज में अमिट छाप छोडऩे वाले ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती हमारी महान आध्यात्मिक परंपराओं के आदर्श प्रतीक हैं। प्रेम एकता सेवा और सौहाद्र्र की भावना को बढ़ावा देते गरीब नवाज के मूल्य और विचार मानवता को हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे। लेकिन वहीं कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ख्वाजा उर्स का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्य से किया। सोनिया की ओर से 18 फरवरी को चादर पेश की गई। इस मौके पर अपने संदेश में सोनिया ने कहा आज इस मुल्क के आवाम से लेकर किसान तक अपने हकूक के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। जम्हूरियत को कमजोर किया जा रहा है। अईना और अदलिया पर हमले हो रहे हैं। मुल्क में ऐसी ताकतों को कुव्वत मिली, जिन्होंने इस मुल्क के ताने बाने को मुतशिर और हमारी सदियों पुरानी कौमी एकता, भाईचारा मोहब्बत और इंसानियत के पैगाम को कमजोर करने और नफरत फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सवाल उठता है कि ख्वाजा उर्स के मौके पर एक राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष को ऐसा संदेश देना चाहिए? वो भी तब जब ख्वाजा साहब की दरगाह को कौमी एकता की मिसाल माना जाता है। उर्स में बड़ी संख्या में हिन्दू भी जियारत के लिए आते हैं। सामान्य दिनों में तो हिन्दुओं की संख्या ज्यादा होती है, लेकिन फिर भी सोनिया गांधी को मुल्क के हालात खराब नजर आते हैं। सोनिया गांधी की भाजपा और नरेन्द्र मोदी से राजनीतिक द्वेषता है तो उसे राजनीतिक मंचों पर ही दर्शाया जाना चाहिए। किसी भी धार्मिक स्थल पर ऐसे नकारात्मक संदेश देना देशहित में नहीं हो सकते। सोनिया गांधी को यह भी समझना चाहिए कि जिस दल की वे राष्ट्रीय अध्यक्ष है उसके मात्र 52 सांसद  हैं, जबकि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले दल के पास 545 में से 303 सांसद है। यदि सोनिया गांधी की सोच के अनुरूप देश के हालात होते तो भाजपा के 303 सांसद चुनाव नहीं जीत पाते। अच्छा होता कि श्रीमती गांधी ख्वाजा साहब के उर्स का इस्तेमाल अपने राजनीतिक नज़रिए से नहीं करतीं। सोनिया गांधी को अपने संदेश में ख्वाजा साहब की शिक्षाओं पर जोर देना चाहिए। लेकिन इसके उलट सोनिया गांधी राजनीतिक संदेश जारी कर दिया। इसी से सोच का अंदाजा लगाया जा सकता है। पीएम मोदी और सोनिया गांधी के संदेश को मेरे फेसबुक पेज  www.facebook.com/SPMittalblog  पर देखा जा सकता है।
क्या सीएम गहलोत ने तैयार किया संदेश:
कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के संदेश की भाषा से प्रतीत होता है कि यह संदेश राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सुझाव पर तैयार किया गया है। गहलोत अक्सर इसी भाषा का इस्तेमाल अपने भाषणों में करते हैं। यूं तो श्रीमती गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष है और सांसद भी हैं। लेकिन जिस लेटर हैड पर सोनिया गांधी का संदेश टाइप किया गया है, वह साधारण पत्र की तरह नजर आता है। इसमें श्रीमती गांधी के हस्ताक्षर तो हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इसे एक साधारण कागज पर लिखा गया है। हो सकता है कि सोनिया गांधी का यह संदेश जयपुर में मुख्यमंत्री के सचिवालय में तैयार हुआ हो।
सीएम ने किया गाइड लाइन का उल्लंघन:
ख्वाजा साहब का उर्स शुरू होने से पहले सरकार और जिला प्रशासन ने जायरीन के लिए कोविड-19 के अंतर्गत गाइड जारी की थी। इसके अंतर्गत कोई भी जायरीन दरगाह परिसर में खुली चादर नहीं ले जा सकेगा। लेकिन 18 फरवरी को स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सोनिया गांधी की चादर को खोल कर मजार शरीफ पर ले गए। हालांकि इस मौके पर प्रशासन के बड़े अधिकारी भी मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी गाइड लाइन की पालना नहीं करवाई। जब मुख्यमंत्री स्वयं ने ही गाइड लाइन की पालना नहीं की तो फिर आम जायरीन से क्या उम्मीद की जा सकती है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (19-02-2021)
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