यह सही है कि राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंदी पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच सीटों को लेकर अच्छा तालमेल हो गया है। पायलट जहां अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने में सफल रहे, वहीं गहलोत ने भी बड़ी संख्या में समर्थक विधायक और नेताओं को उम्मीदवार बनवा दिया है। दोनों ने यह तथ्य स्वीकार किया है कि हमने एक दूसरे के समर्थकों के नामों पर आपत्ति नहीं की है। इसे दोनों नेताओं की राजनीतिक मजबूरी ही कहा जाएगा कि जिन विधायकों और नेताओं ने जहर उगला उनका भी समर्थन करना पड़ा। गहलोत और पायलट ने भले ही सीटों पर तालमेल कर लिया हो, लेकिन यह दोनों नेता मन से एक साथ नहीं हुए हैं। 7 नवंबर को कांग्रेस की ओर से दी सात गारंटी का एक रथ जयपुर से रवाना हुआ। रथ के शुभारंभ पर सीएम गहलोत तो मौजूद थे, लेकिन पायलट नजर नहीं आए। इससे पहले सरकार की ओर से जितने भी बड़े आयोजन हुए उनमें भी पायलट की भागीदारी नहीं दिखी। कांग्रेस का हाईकमान दावा कर रहा है कि राजस्थान में गहलोत और पायलट मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन ऐसा जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। गहलोत और पायलट चुनावी सभा में तभी एक साथ नजर आते हैं, जब राहुल गांधी या प्रियंका गांधी मौजूद होती हैं। 6 नवंबर को जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने जोधपुर में चुनावी सभा की तब, भी पायलट मौजूद नहीं थे। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बगैर होने वाली किसी भी चुनावी सभा में गहलोत औरपायलट एक साथ देखने को नहीं मिले हैं। अब जब 25 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो गई है, तब भी दोनों नेताओं के एक साथ दौरे का प्रोग्राम घोषित नहीं हुआ है। अब तक तो यह देखने में आया है कि गहलोत और पायलट अपने अपने समर्थक उम्मीदवारों के चुनाव क्षेत्र में जाकर प्रचार कर रहे हैं। सीएम गहलोत माने या नहीं लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सचिन पायलट के दम पर बहुमत मिला था। तब प्रदेश भर में यह प्रचारित था कि कांग्रेस को बहुमत मिलने पर पायलट की मुख्यमंत्री होंगे। यह बात अलग है कि कांग्रेस हाईकमान ने पायलट की जगह गहलोत को मुख्यमंत्री घोषित किया, लेकिन जब सीएम गहलोत का ादवा है कि उनकी सरकार ने जो काम किए हैं, उनकी वजह से कांग्रेस सरकार रिपीट होगी। गहलोत अपनी हर चुनावी सभा में कह रहे हैं कि इस बार एंटी इनकम्बेंसी नहीं है। जनता सरकार के कामकाज से खुश है। गहलोत अपनी सरकार के रिपीट में सचिन पायलट का कोई सहयोग नहीं मान रहे हैं। उल्टे दो तीन दिन में एक बार चुनावी सभा में भाजपा पर सरकार गिराने का आरोप लगाकर पायलट पर हमला कर देते हैं। गहलोत ने एक निजी प्रचार कंपनी के माध्यम से चुनाव का जो पोस्टर तैयार करवाया है, उसमें मुख्य रूप से दो बड़े फोटो लगाए हैं। एक फोटो स्वयं का है तो दूसरा प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का है। पायलट का फोटो पासपोर्ट साइज में ऊपर राष्ट्रीय नेताओं के साथ लगाया गया है। यानी कांग्रेस की प्रचार सामग्री में भी पायलट को प्रमुखता नहीं दी गई है। सचिन पायलट के मन में अब क्या चल रहा है, यह तो वे ही जाने, लेकिन गहलोत ने अपना मन स्पष्ट कर दिया है। गहलोत ने यह स्पष्ट किया है कि इस बार सरकार उनके कारण रिपीट होगी।
S.P.MITTAL BLOGGER (08-11-2023)
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