Sunday 17 July 2016

बरसात के मौसम में शानदार रहा गीत, गज़ल और कविता का कार्यक्रम। अजमेर के डॉ. हरीश को मिला मीरा पुरस्कार।

#1566
बरसात के मौसम में शानदार रहा गीत, गज़ल और कविता का कार्यक्रम। 
अजमेर के डॉ. हरीश को मिला मीरा पुरस्कार। 
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17 जुलाई को अजमेर के इंडोर स्टेडियम में गीत, गज़ल और कविता का शानदार कार्यक्रम हुआ। अजयमेरु प्रेस क्लब  और नाट्य वृंद संस्था के सहयोग से हुए इस कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध कवि डॉ. हरीश को मीरा पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। डॉ. हरीश अस्वस्थ्यता के कारण मीरा पुरस्कार लेने के लिए चित्तौड़ नहीं जा सके, इसलिए मीरा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष भंवर लाल सिसोदिया, सत्यनारायण समदानी आदि ने अजमेर आकर डॉ. हरीश को सम्मान से नवाजा। डॉ. हरीश को यह पुरस्कार मीरा पर लिखे अपने काव्य संग्रह दिव्य प्रणाम पर मिला है। संस्थान की ओर से डॉ. हरीश को 11 हजार रुपए की नकद राशि और प्रशस्ति पत्र दिया गया। इस मौके पर डॉ. हरीश ने अपनी मधुर आवाज में गीत भी सुनाए। 
डॉ. हरीश ने अपनी रचना दर्द जन्मे तो एक दावत हो, सामने तू हो तो अदावत होÓ और 'बहुत खोज की तू एक पहेली ही निकली, जिंदगी तेरे नाम से डर लगता हैÓ जैसे भावपूर्ण गीतों के साथ-साथ 'सुर्ख अधरों पर पलाशों को निचोड़ा किसने' जैसे श्रंगार रस से ओत-प्रोत गीतों को गाते हुए श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। 
गोष्ठी में गज़लगों सुरेन्द्र चतुर्वेदी ने 'अब के मौसम में फूलों ने की खुदकुशी, दूर से देखकर तितलियां रो पड़ीं और घर गिरा कर मेरा आंधियां रो पड़ीÓ गज़ल सुनाकर खूब तालियां बटोरीं। रासबिहारी गौड़ ने हास्य की लीक से हटकर जब 'मुखौटों के सामने चेहरे लेकर घूमता हंूÓ और 'पिता आंखों की चोरी और चेहरे पे छुपा दर्द आसानी से पढ़ लेते थेÓ संजीदा कविताएं सुनाई तो सभी वाह-वाह कर उठे। युवा कवियित्री डॉ विमलेश शर्मा ने भी पिता के अहसास की संवेदनाओं को अपनी कविता 'अक्सर टूट जाते हैं पिता जब उनकी बेटियां काँच की मानिंद बिखर जाती हैÓ में बखूबी बताया। बख्शीश सिंह ने 'दौडऩा सीखकर चलना भूल गयाÓ के साथ अपनी एक पंक्ति की कविता भी सुनाई। 
'बरस जाते हैं बादल भी मेघ मल्हार से आओ भीग जाएं कविता की फहार सेÓ जैसी रोचक काव्योक्तियों से बंधा संचालन करते हुए उमेश कुमार चौरसिया ने 'बच्चों को उनका बचपन लौटा दो' और 'उसके गुनाहों का हिसाब मांगे कैसे, जमीर के बिक जाने की रसीद नहीं थी' गज़ल सुनाई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ रमेश अग्रवाल ने 'इस जिंदगी की धुन का कभी नगमा न बन सका, आये कभी जो ताल पर तो सुर बिगड़ गएÓ गज़ल के माध्यम से जीवन की हकीकत को बयां किया। डॉ. शकुन्तला तंवर ने मां शारदे की स्तुति करते हुए शृंगार रस की कविता 'जब तुम पास नहीं होते तो मन बादल वाला दिन होता' सुनाई तो कालिंद नंदिनी शर्मा ने 'कुछ घावों पर नमक असरदार नहीं होताÓ तथा डॉ. शमा खान ने 'मैंने देखा है दर्द को खिलते हुएÓ कविता से माहौल को संजीदा कर दिया। विपिन जैन ने 'घावों से मिलकर हल्का हो जाऊंगाÓ और प्रदीप गुप्ता ने 'जो भूखे की रोटी भी छीनकर खा जाएÓ व्यंग्य रचना सुनाई। डॉ अनन्त भटनागर ने आधुनिक परिवेश की कविता सुनाई। आनन्द शर्मा ने मिट्टी होती पत्थर व हवा कविता सुनाई, जीएस विरदी ने मन का अहसास सुनाया और देवीदास दीवाना ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मूर्धन्य विद्वान डॉ बद्रीप्रसाद पंचोली ने श्लोक के माध्यम से मीरां और वीरभूमि राजस्थान का बखान किया। प्रारंभ में क्लब महासचिव प्रतापसिंह सनकत और कोषाध्यक्ष एस एन झाला ने अतिथियों का स्वागत किया। क्लब अध्यक्ष एस.पी.मित्तल ने आभार व्यक्त करते हुए गीत और कविता की विरासत को नयी पीढ़ी तक ले जाने का आव्हान किया। फरहाद सागर, विजय हंसराजानी, योगेन्द्र सेन और अनिल गुप्ता ने आयोजन में विशेष सहयोग किया। इस अवसर पर यूएसए के विद्वान डॉ चमनलाल रैना, डॉ के.के.शर्मा, नरेन्द्र चौहान, देवदत्त शर्मा, डॉ ए.एन.जैन, ओ.पी.औदिच्य, वि_ल पाण्डे सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। 
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(एस.पी. मित्तल)  (17-07-2016)
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