Saturday 9 July 2016

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के न्याय आपके द्वार अभियान की नवज्योति ने पोल खोली। शिविरों में भी रिश्वत देने पर ही होते हैं काम।

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मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के न्याय आपके द्वार अभियान की नवज्योति ने पोल खोली। शिविरों में भी रिश्वत देने पर ही होते हैं काम।
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9 जुलाई को राजस्थान के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र नवज्योति के अजमेर संस्करण के पृष्ठ 7 पर न्याय आपके द्वार अभियान को लेकर एक खबर छपी है। यह खबर नवज्योति के तेज तर्रार वरिष्ठ संवाददाता संजय माथुर ने लिखी है। इस खबर में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के महत्वकांक्षी न्याय आपके द्वार अभियान की पोल खोलकर रख दी है। राजे की सरकार न्याय आपके द्वार में भले लाखों मुकदमे निपटाने का दावा करें, लेकिन हकीकत यह है कि शिविरों में भी उन्हीं के काम हो रहे हैं जो सरकार के अधिकारियों को रिश्वत देते हैं। जो पीडि़त रिश्वत नहीं देता उसका काम होता ही नहीं हैं। राजस्व कार्यो से जुड़े अधिकांश कर्मचारी और अधिकारी इतने भ्रष्ट हैं कि कोई ना कोई अड़ंगा लगाकर काम करने से इंकार कर देते हैं। नवज्योति के संजय माथुर ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने एक सच्चा मामला प्रस्तुत किया है। इसमें बताया गया है कि अजमेर निवासी रणजीत मल लोढ़ा, सुशीला देवी व प्रकाश सांखला ने पुष्कर में एक जमीन बरसों पहले खरीदी। जमाबंदी में इन तीनों के नाम भी दर्ज हो गए, लेकिन वर्ष 2013 में बनी वर्किंग जमाबंदी में संबंधित पटवारी ने मूल खातेदार का नाम ही दर्ज कर दिया। हालांकि इसमें तीनों खरीददारों का कोई दोष नहीं है, लेकिन सरकार के नियम ही ऐसे है कि जमाबंदी को संशोधित कराने के लिए संबंधित उपखण्ड न्यायालय में वाद दायर करना होता है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी जानती हैं कि राजस्व अधिकारी ग्रामीणों को कितना तंग करते हैं, इसलिए न्याय आपके द्वार अभियान में शिविर लगाकर मौके पर ही जमाबंदी संशोधन जैसे मामलों को निपटाने के आदेश दिए। लोढ़ा, सुशीला और प्रकाश ने गत वर्ष भी गनहेड़ा में लगे शिविर में अपना मामला रखा, लेकिन तत्कालीन एसडीओ हीरालाल मीणा ने जमाबंदी संशोधित नहीं की। जबकि संशोधन की सारी रिपोर्ट फाइल में लगी हुई थी। इतना ही नहीं मीणा ने दोबारा से रिपोर्ट के लिए फाइल को तहसीलदार के पास भिजवा दिया। चूंकि यह तीनों पीडि़त ईमानदारी की तख्ती अपने गले में लगाकर घूमते रहे, इसलिए इनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। भ्रष्टाचार की हद तो तब हो गई जब इस वर्ष भी विगत दिनों शिविर में मामले को रखा तो वर्तमान एसडीओ ओपी विश्नाई ने भी मामले को समीक्षा शिविर में रखने के आदेश दे दिए। इन अधिकारियों से यह पूछने वाला कोई नहीं है कि जो गलती पटवारी ने की है उसकी सजा असली खातेदार को क्यों दी जा रही है। वहीं रणजीत मल लोढ़ा जैसे मिजाज वाले पीडि़त यह समझ नहीं रहे है कि आखिर उनका काम क्यों नहीं हो रहा है। मुख्यमंत्री राजे चाहे तो नवज्योति की इस खबर की जांच करवाकर भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्यवाही कर सकती हैं, लेकिन दोषी अफसरों को भी पता है कि वसुंधरा राजे के राज में ऐसा संभव नहीं है।
(एस.पी. मित्तल)  (09-07-2016)
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