Sunday 5 March 2017

#2317
इस्लाम आतंक का नहीं मोहब्बत का पैगाम देता है। अजमेर में हुई नेशनल पीस कान्फ्रेंस में धर्मगुरुओं ने कहा। 
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5 मार्च को अजमेर के होटल मेरवाड़ा स्टेट समारोह स्थल पर नेशनल पीस कान्फ्रेंस हुई। इस कान्फ्रेंस में देश की प्रमुख दरगाहों के सज्जादानशीन और अन्य धर्म के धर्मगुरुओं ने भाग लिया। सभी मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना था कि इस्लाम में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है क्योंकि इस्लाम तो मोहब्बत का पैगाम देता है। इस पीस कान्फ्रेंस का आयोजन अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह के सज्जादानशीन और दीवान सैय्यद जैनुल आबेदीन अली चिश्ती द्वारा बनाए गए हजरत ख्वाजा गरीब नवाज एज्युकेशनल एवं चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से किया गया। इस कान्फ्रेंस का मीडिया पार्टनर ईटीवी का उर्दू चैनल रहा। कान्फे्रंस की शुरूआत में दीवान आबेदीन ने कहा कि इस्लाम के नाम पर जो कट्टरता फैलाई जा रही है, उससे इस्लाम बदनाम हो रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि सूफी संतों की दरगाहों में राष्ट्रवाद की भावना जगाने के सम्मेलन होने चाहिए। इसके लिए विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं को भी आगे आना चाहिए। 
धर्मगुरु जाएं लोगों तक :
पुष्कर स्थित चित्रकूट धाम के उपासक और आध्यात्मिक धर्मगुरु पाठक महाराज ने कहा कि अब धर्मगुरुओं को लोगों तक जाना चाहिए। लोग धर्मगुरुओं के पास आएं, इस विचार को अब छोडऩा होगा। यदि धर्मगुरु लोगों तक नहीं पहुंचे तो फिर युवा गलत दिशा में चला जाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि धर्मगुरु शिक्षित होना चाहिए। यदि मैं किसी दूसरे धर्म की निन्दा करता हंू तो इसका मतलब है कि मैंने अपने धर्म को ही नहीं पहचाना है। 
दरगाह और मन्दिर में हो सम्मेलन :
मुस्लिम विद्वान इनायत अली ने कहा कि दरगाहों के सज्जादानशीनों, गुरुद्वारों के ग्रंथियों, मंदिरों के धर्मगुरुओं आदि को मिलकर अब ऐसा प्रयास करना चाहिए, जिसके अन्तर्गत धार्मिक स्थलों पर सर्वधर्म सम्मेलन हो। संवादहीनता की वजह से युवा भ्रमित हो रहा है। 
सूफीयत धर्म नहीं विचार है :
राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सरदार जसबीर सिंह ने कहा कि सूफीयत कोई धर्म नहीं है। यह एक ऐसा विचार है, जिसमें सभी धर्मों के लोग शांति और अमन के साथ रह सकते हैं। सामाजिक समरसता को बढ़ाने में धर्मगुरुओं की भूमिका होनी चाहिए। राष्ट्रीयता की भावना से ही देश का विकास हो सकता है। कौनसा धर्म अच्छा है, यह कर्म पर निर्भर करता है। जो लोग राष्ट्रविरोधी हैं, उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। 
पहले इन्सान बनाएं :
जैन धर्म के विद्वान भुवनेश महाराज ने कहा कि आज हर धार्मिक गुरु अपने अनुयायी बढ़ाने में लगा हुआ है जबकि आज इन्सान बनाए जाने की जरूरत है। हमें वस्त्र नहीं चरित्र बदलना है, गणवेश नहीं गुणवान होना चाहिए। युवाओं में आज जो नफरत भरी हुई है, उसे दूर किया जाना चाहिए। 
सूफीवाद से ही शांति :
मुस्लिम विद्वान अहमद नियाजी ने कहा कि सूफीवाद से ही देश-दुनिया में शांति हो सकती है। विभिन्न धर्मस्थलों पर जब सालाना जलसे हों, तब सूफीवाद की शिक्षा दी जानी चाहिए। मुस्लिम विद्वान सैय्यद जियाउद्दीन ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर धर्मगुरुओं की सभाएं कर राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाया जाना चाहिए। 
हर शहर में बने शांति कमेटी :
कान्फ्रेंस में मुस्लिम विद्वान डॉ. सैय्यद शाह खुसरो ने कहा कि हर शहर में शांति कमेटी बननी चाहिए। शिक्षा के पाठयक्रमों में भी धर्मगुरुओं की जीवनियां पढ़ाई जानी चाहिए। मुस्लिम विद्वान मोहम्मद हुसैन ने कहा कि फरिश्तों से बेहतर इंसान होता है। 
श्रीश्री का संदेश :
कान्फ्रेंस में ऑर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्रीरविशंकर का संदेश भी पढ़कर सुनाया गया। श्रीश्री के शिष्य ब्रह्मचारी अभिषेक ने कहा कि विविधता में ही एकता है। जब हम विभिन्न धर्मों के लोग एकसाथ मिलकर त्यौहार मनाएंगे तो समाज में सद्भावना बढ़ेगी। आज विस्तृत सामूहिक चेतना की जरूरत है। पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। 
दीपक वही, जिसमें ज्योति जले :
डॉ. कृष्णानंद महाराज ने कहा कि दीपक तो सोने और चांदी के भी होते हैं, लेकिन सही मायने में दीपक वही होता है, जिसमें प्रकाश की ज्योति जले। भले ही ऐसा दीपक मिट्टी का ही हो। ज्योति खुद जलती है, लेकिन दूसरों को प्रकाश देती है। सूरज और चांद कभी भी भेदभाव नहीं करते तो फिर हम एक-दूसरे से भेदभाव क्यों करते हैं?
धर्म ग्रंथों का सही अर्थ बताएं :
गुजरात के विद्वान स्वामी चेतन महाराज ने कहा कि धर्मगुरुओं को धर्म का सही अर्थ बताना चाहिए। शास्त्रों में रहने वाला कोई व्यक्ति धर्मगुरु नहीं हो सकता। हृदय में नकारात्मक भावना नहीं होनी चाहिए। शास्त्रों को समझने के लिए खुद का शिक्षित होना जरूरी है। पवित्र वातावरण में ही सत्यता होती है। 
मदरसों में हो सूफीवाद की शिक्षा :
मुस्लिम विद्वान अशरद फरीदी ने कहा कि मदरसों में सूफीवाद की शिक्षा दी जानी चाहिए। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि अब सूफी मदरसे बंद होते जा रहे हैं और मदरसों में कट्टरपंथ की शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने कहा कि आज कश्मीर जो हालात बिगड़े हैं, उसमें मदरसों की भूमिका महत्वपूर्ण है। कर्नाटक स्थित गुलबर्गा की दरगाह में सूफीवाद की शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। गुजरात के मुस्लिम विद्वान अंजुम फरीद ने कहा कि सूफीवाद तो प्रेम की भट्टी है। हिन्दू और मुस्लिम धर्म में जो एक सी बातें हैं, उनका प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। जिस प्रकार दरगाहों में बसंत का उत्सव उत्साह के साथ मनाया जाता है, उसी प्रकार हिन्दू तीर्थस्थलों में भी मुस्लिम पर्व मनाए जाने चाहिए। 
शरीर के लिए योग जरूरी :
गुलबर्गा के मुस्लिम विद्वान निजाम ने कहा कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग जरूरी है। यदि कुछ लोगों को सूर्य नमस्कार पर एतराज है तो उन्हें सूर्य नमस्कार की क्रिया को बदल लेना चाहिए। मदरसों के आधुनिकीकरण पर जोर देते हुए निजाम ने कहा कि आज मदरसों से ज्यादा खानकाहों की शिक्षा देना जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह खानकाहों को मजबूत करें। मुस्लिम विद्वान असरार हुसैन ने कहा कि इस्लाम में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है। 
स्कूलों में हो सूफीयत की पढ़ाई :
बिहार के मुस्लिम विद्वान इनायत उल्ला ने कहा कि स्कूलों में सूफीयत की पढ़ाई करवाई जानी चाहिए। आज युवाओं में आतंक की प्रवृत्ति इसीलिए बढ़ रही है कि उन्हें सूफीयत की शिक्षा नहीं मिल रही। उन्होंने कहा कि कितना अच्छा हो कि होली का पर्व दरगाहों में मनाया जाए और मंदिरों में ईद का जश्न मने।
गृहमंत्री का संदेश :
नेशनल पीस कान्फ्रेंस में दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैय्यद नसरूद््दीन चिश्ती ने केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का संदेश पढ़कर सुनाया। अपने संदेश में सिंह ने उम्मीद जताई कि देश में अमन, चैन कायम करने के लिए यह कान्फ्रेंस सफल होगी। कान्फ्रेंस का संचालन गुलशा बेगम ने किया। 
(एस.पी.मित्तल) (05-03-17)
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