Thursday 30 March 2017

#2400
सूर्य नमस्कार और नमाज की तुलना करने के पीछे योगी का भाव समझने की जरूरत। वैसे अच्छा हो ऐसे बयानों से बचे योगी। 
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29 मार्च को लखनऊ में योग महोत्सव के समारोह में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने सूर्य नमस्कार की क्रियाओं की तुलना मुसलमान बंधुओं की नमाज से की तो विपक्षी दलों के नेताओं ने सियासत शुरू कर दी। किसी ने कहा कि योगी सूर्य नमस्कार के बजाए नमाज पढ़ें तो किसी ने योगी को टोपी पहनने की सलाह दे दी। राजनीतिक दलों का अपना एजेण्डा होता है। इसलिए विधानसभा के चुनाव में यूपी से कांग्रेस का तो सूपड़ा साफ हो गया और समाजवादी पार्टी को नामलेवा सीट मिली है। बसपा को इतनी सीटे भी नहीं मिली कि मायावती फिर से राज्यसभा पहुंच जाए। लेकिन इस करारी हार के बाद भी विपक्षी दलों ने शायद कोई सबक नहीं लिया है। जो लोग सूर्य नमस्कार और नमाज की तुलना करने पर सियासत कर रहे हैं, उन्होंने शायद योगी का बयान पूरी तरह न तो सुना और न समझा। योगी ने यह नहीं कहा कि सूर्य नमस्कार किया ही जाए। योगी ने साफ-साफ कहा कि सूर्य नमस्कार और नमाज की क्रियाएं मिलती-जुलती हैं। लेकिन राजनीति दोनों समुदायों को एक नहीं होने देती। योगी का यही भाव था कि जब सूर्य नमस्कार और नमाज की क्रियाएं मिलती-जुलती है तो फिर हिन्दू-मुसलमानों में भाईचारा भी होना चाहिए। सब जानते हैं कि यूपी में दोनों समुदायों के बीच जैसा सद्भाव होना चाहिए, वैसा नहीं है। योगी ने यूपी का मुख्यिा होने के नाते एक सकारात्मक पहल की है। यदि सूर्य नमस्कार और नमाज के भाव को आगे रखकर यूपी में सद्भावना का माहौल बनाया जा रहा है तो फिर सियासत क्यों की जा रही है? कोई नहीं चाहता कि देश में हिन्दु और मुसलमान आमने-सामने हों। इस देश का विकास तभी हो सकता है, जब दोनों समुदायों में सद्भावना बनी रहे। हिन्दु संस्कृति में यह माना जाता है कि सूर्य नमस्कार से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। इसी प्रकार जो लोग नमाज पढ़ते हैं, उन्हें भी एक विशेष अनुभूति होती है। नमाज में जितने अधिक लोग होंगे, उतना नमाज का धार्मिक महत्व भी होगा। यदि सूर्य नमस्कार और नमाज का भाव आगे रखकर सद्भावना का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है तो इसमें सभी को सकारात्मक रूप अपनाना चाहिए। 
ऐसे बयानों से बचे योगी :
हालांकि योगी ने यूपी के वर्तमान हालातों में सद्भावना के लिए सकारात्मक पहल की है, लेकिन अच्छा हो कि योगी ऐसे बयानों से बचे। यह सही है कि मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेने के बाद कोई एक पखवाड़े में योगी ने शासन तंत्र पर अपनी पकड़ बना ली है। लेकिन अभी योगी सरकार को वो वायदे पूरे करने हैं, जो चुनाव प्रचार के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी ने किए थे। सबसे बड़ा वायदा किसानों की कर्ज माफी का है। मोदी ने कहा था कि भाजपा सरकार की पहली केबिनेट बैठक में कर्ज माफी का फैसला लिया जाएगा। योगी के मंत्रीमंडल को बने एक पखवाड़ा होने को आया, लेकिन अभी तक भी मंत्रीमंडल की पहली बैठक नहीं हुई है। यह माना कि यूपी जैसे बड़े प्रदेश में कर्ज माफी का फैसला आसान नहीं है। लेकिन योगी को मोदी का वायदा तो पूरा करना ही पड़ेगा। अच्छा हो कि पहले चुनावी वायदों को पूरा किया जाए अन्यथा सियासत करने वाले नेता योगी को बेमतलब के मुद्दों में उलझा देंगे। 
(एस.पी.मित्तल) (30-03-17)
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