Thursday 28 September 2017

आखिर पिता यशवंत सिन्हा को जवाब देने के लिए बेटे जयंत सिन्हा को आना ही पड़ा। बेटे के हमले के बाद नरम पड़े यशवंत।

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आखिर पिता यशवंत सिन्हा को जवाब देने के लिए बेटे जयंत सिन्हा को आना ही पड़ा। बेटे के हमले के बाद नरम पड़े यशवंत।
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मैंने पहले भी लिखा है कि मैं न तो भविष्यवेत्ता हंू और न ही दिल्ली में बैठ कर हाई लेवल की पत्रकारिता करता हंू। मैं तो राजस्थान की धार्मिक नगरी अजमेर में बैठकर रोजाना अपने तीन-चार ब्लाॅग लिखता हंू। 27 सितम्बर को जब दिन भर देश के प्रमुख हिन्दी और अंग्रेजी न्यूज चैनलों पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक आर्टिकल को लेकर चर्चा हो रही थी, तब मैंने अकेले ने देश के सामने यशवंत सिन्हा के बेटे और केन्द्रीय मंत्री जयंत सिन्हा का मुद्दा रखा। मैंने साफ-साफ कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि यशवंत सिन्हा आर्थिक नीतियों पर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी की सरकार की आलोचना करें और उनका बेटा जयंत सिन्हा उसी सरकार में मंत्री बने रहें। हालांकि मेरे 27 सितम्बर के ब्लाॅग पर कुछ लोगों ने प्रतिकूल टिप्पणी भी की, लेकिन 28 सितम्बर को मुझे इस बात का संतोष रहा कि मैंने अजमेर में बैठकर जयंत सिन्हा का जो मुद्दा उठाया, उसी के अनुरूप दिल्ली में राष्ट्रीय राजनीति में विचार हुआ। 28 सितम्बर को जयंत सिन्हा का एक आर्टिकल टाइम्स आॅफ इंडिया में प्रकाशित हुआ है। इस आर्टिकल में जयंत सिन्हा ने उन सभी सवालों का जवाब दिया है जो उनके पिता यशवंत सिन्हा ने अपने आर्टिकल में उठाए थे। जयंत ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी गेम चेंजर साबित होंगे। सरकार की वर्तमान आर्थिक नीति नए भारत के निर्माण के लिए है। छह माह में देश की अर्थव्यवस्था का आंकलन किया जाना उचित नहीं है। आने वाले दिनों में नोटबंदी और जीएसटी के सुखद परिणाम सामने आएंगें।
यशवंत सिन्हा नरम पड़ेः
जयंत सिन्हा ने जिस अंदाज में अपने पिता को जवाब दिया, उसके बाद यशवंत सिन्हा नरम पड़ गए। 28 सितम्बर को टाइम्स आॅफ इंडिया में अपने बेटे का जवाब पढ़ने के बाद यशवंत सिन्हा ने एएनआई न्यूज एजेंसी के रिपोर्टर को बुलाकर सरकार के प्रति अपना नरम रुख रखा। यशवंत सिन्हा ने कहा कि मैंने केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की योग्यता पर कोई सवाल नहीं उठाया। मेरा तो इतना ही कहना था कि जेटली के पास वित्त मंत्रालय के अलावा भी दूसरे मंत्रालयों का काम रहता है, इसलिए वह अपने मंत्रालय को पूरा समय नहीं दे पाते। जहां तक जीएसटी के लागू करने का सवाल है तो में स्वयं भी इसका पक्षधर हंू, लेकिन मैं चाहता था कि जीएसटी को एक अप्रैल 2018 से लागू किया जाता। चूंकि सरकार ने गत वर्ष नवम्बर में नोटबंदी की थी, इसलिए एक जुलाई से जीएसटी को लागू नहीं किया जाना चाहिए था। चूंकि जीएसटी को जल्दबाजी में लागू किया गया है, इसलिए व्यापारी वर्ग को परेशानी हो रही है। अर्थव्यवस्था नोटबंदी के झटके से उभर भी नहीं पाई थी कि सरकार ने जीएसटी लागू का एक और झटका दे दिया।
एस.पी.मित्तल) (28-09-17)
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