आखिर राष्ट्रवाद से इतनी नफरत क्यों हैं हामिद अंसारी को?
अंसारी को यह समझना चाहिए कि वे भारत के 10 साल तक उपराष्ट्रपति के पद पर रहे हैं। आज भी सरकारी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं।
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पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कहना है कि कोरोना महामारी से पहले देश धार्मिक कट्टरता और आक्रमक राष्ट्रवाद का शिकार हुआ है। सब जानते हैं कि हामिद अंसारी 10 वर्षों तक भारत जैसे धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश के उपराष्ट्रपति रहे हैं। इतने बड़े पद पर रहने के बाद भी यदि कोई व्यक्ति कोरोना महामारी को धार्मिक कट्टरता और राष्ट्रवाद से जोड़े तो उसकी समझ पर तरस आता है। सवाल यह भी है कि राष्ट्रवाद से अंसारी को इतनी नफरत क्यों हैं? क्या वे स्वयं को राष्ट्रवादी नहीं मानते? यदि किसी देश में राष्ट्रवाद की भावना प्रबल है तो इसमें ऐतराज की क्या बात है? लोग अपने देश के प्रति सम्मान प्रकट करे यह तो अच्छी बात है। देश के प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रवाद की भावना होनी ही चाहिए। क्या हामिद अंसारी जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के विचारों का समर्थन करते हैं? जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए ये दोनों नेता चीन और पाकिस्तान से मदद लेने को तैयार है। अच्छा होता कि हामिद अंसारी, फारुख अब्दुल्ला और महबूबा जैसे नेताओं के बयानों की आलोचना करते। अंसारी दस वर्षों तक देश के उपराष्ट्रपति रहे। कुछ तो उनमें अपने देश के प्रति वफादारी होनी ही चाहिए। इससे पहले भी अंसारी ऐेसे राष्ट्र विरोधी बयान दे चुके हैं। सवाल उठता है कि क्या ऐसी मानसिकता के साथ ही अंसारी ने उपराष्ट्रपति पद का दायित्व निभाया? यदि ऐसी मानसिकता के साथ दायित्व निभाया है तो फिर उनके काम काज का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। अंसारी कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं, इसलिए राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं। लेकिन राष्ट्रवाद से नफरता समझ से परे हैं। अंसारी को लम्बे समय तक विदेश सेवा में भी रहे हैं। कई मौकों पर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। ऐसी जिम्मेदारी निभाने के बाद यदि कोई राजनेता राष्ट्रवाद को लेकर प्रतिकूल टिप्पणी करे तो यह देश के लिए उचित नहीं है। एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन औवेसी यदि राष्ट्रवाद के खिलाफ बोलते हैं तो समझ में आता है, क्योंकि उनकी सोच तो पहले ही अखंड भारत के विरुद्ध है। लेकिन अंसारी तो देश के उपराष्ट्रपति रह चुके हैं। अंसारी ने जो बयान दिया है उसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता। कोरोना काल में जब प्रत्येक देशवासी को एकजुटता दिखाने की जरुरत है तब अंसारी का बयान देशहित में नहीं है। कोरोना महामारी की वजह से देश पहले ही मुसीबत के दौर से गुजार रहा है।
अंसारी को यह समझना चाहिए कि वे भारत के 10 साल तक उपराष्ट्रपति के पद पर रहे हैं। आज भी सरकारी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं।
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पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कहना है कि कोरोना महामारी से पहले देश धार्मिक कट्टरता और आक्रमक राष्ट्रवाद का शिकार हुआ है। सब जानते हैं कि हामिद अंसारी 10 वर्षों तक भारत जैसे धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश के उपराष्ट्रपति रहे हैं। इतने बड़े पद पर रहने के बाद भी यदि कोई व्यक्ति कोरोना महामारी को धार्मिक कट्टरता और राष्ट्रवाद से जोड़े तो उसकी समझ पर तरस आता है। सवाल यह भी है कि राष्ट्रवाद से अंसारी को इतनी नफरत क्यों हैं? क्या वे स्वयं को राष्ट्रवादी नहीं मानते? यदि किसी देश में राष्ट्रवाद की भावना प्रबल है तो इसमें ऐतराज की क्या बात है? लोग अपने देश के प्रति सम्मान प्रकट करे यह तो अच्छी बात है। देश के प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रवाद की भावना होनी ही चाहिए। क्या हामिद अंसारी जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के विचारों का समर्थन करते हैं? जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए ये दोनों नेता चीन और पाकिस्तान से मदद लेने को तैयार है। अच्छा होता कि हामिद अंसारी, फारुख अब्दुल्ला और महबूबा जैसे नेताओं के बयानों की आलोचना करते। अंसारी दस वर्षों तक देश के उपराष्ट्रपति रहे। कुछ तो उनमें अपने देश के प्रति वफादारी होनी ही चाहिए। इससे पहले भी अंसारी ऐेसे राष्ट्र विरोधी बयान दे चुके हैं। सवाल उठता है कि क्या ऐसी मानसिकता के साथ ही अंसारी ने उपराष्ट्रपति पद का दायित्व निभाया? यदि ऐसी मानसिकता के साथ दायित्व निभाया है तो फिर उनके काम काज का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। अंसारी कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं, इसलिए राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं। लेकिन राष्ट्रवाद से नफरता समझ से परे हैं। अंसारी को लम्बे समय तक विदेश सेवा में भी रहे हैं। कई मौकों पर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। ऐसी जिम्मेदारी निभाने के बाद यदि कोई राजनेता राष्ट्रवाद को लेकर प्रतिकूल टिप्पणी करे तो यह देश के लिए उचित नहीं है। एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन औवेसी यदि राष्ट्रवाद के खिलाफ बोलते हैं तो समझ में आता है, क्योंकि उनकी सोच तो पहले ही अखंड भारत के विरुद्ध है। लेकिन अंसारी तो देश के उपराष्ट्रपति रह चुके हैं। अंसारी ने जो बयान दिया है उसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता। कोरोना काल में जब प्रत्येक देशवासी को एकजुटता दिखाने की जरुरत है तब अंसारी का बयान देशहित में नहीं है। कोरोना महामारी की वजह से देश पहले ही मुसीबत के दौर से गुजार रहा है।
(एस.पी.मित्तल) (21-11-2020)
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