Saturday 8 June 2024

वाकई राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी से बड़े हैं।प्रतिपक्ष के नेता का पद ठुकराने का श्रेय भी राहुल ही लेंगे।

8 जून को दिल्ली में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक हुई। इस बैठक में श्रीमती सोनिया गांधी को सर्वसम्मति से अघ्यक्ष चुना गया। इसके साथ ही सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी को लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाने का प्रस्ताव भी पास किया गया। इस बैठक में राहुल गांधी स्वयं उपस्थित थे, लेकिन राहुल ने प्रतिपक्ष का नेता बनने से फिलहाल इंकार कर दिया। राहुल ने कहा कि सांसदों के इस प्रस्ताव पर वह विचार करेंगे। सब जानते हैं कि संसद में प्रतिपक्ष के नेता पद का बहुत महत्व होता है। जिस प्रकार सत्ता पक्ष में प्रधानमंत्री का पद महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार विपक्ष में प्रतिपक्ष के नेता का महत्व माना जाता है। राहुल गांधी ने प्रतिपक्ष के नेता के पद पर तब सहमति नहीं दी, जब लोकसभा में इस बार 543 में से 234 सांसद विपक्ष के हैं। असल में राहुल गांधी ने एक बार फिर प्रदर्शित किया है कि वे कांग्रेस पार्टी से बड़े हैं। जिस प्रतिपक्ष के नेता के पद के लिए कांग्रेस के अधिकांश नेता लालयित है, उस पद पर विचार करने की बात राहुल गांधी ने कही है। जानकार सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता के पद के लिए सहमति होते तो तत्काल ही पार्टी का निर्णय स्वीकार कर लेते। चूंकि राहुल गांधी प्रतिपक्ष का नेता नहीं बनना चाहते, इसलिए उन्होंने पार्टी के निर्णय पर विचार करने की बात कही है। अब जब राहुल गांधी स्पष्ट तौर पर इंकार करेंगे तो फिर राहुल गांधी को ही नेता प्रतिपक्ष के पद को ठुकराने का भी श्रेय मिलेगा। सवाल उठता है कि आखिर राहुल की सहमति के बिना कांग्रेस संसदीय दल ने ऐसा प्रस्ताव पास क्यों किया? सूत्रों के अनुसार कांग्रेस में राहुल गांधी का रुतबा और बढ़े इसलिए प्रस्ताव पास किया गया। राहुल गांधी ने एकबार फिर साबित किया है कि वे पार्टी से बड़े हैं। उनके लिए पार्टी का कोई पद मायने नहीं रखता है। जानकार सूत्रों का यह भी कहना है कि लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता पास बहुत जिम्मेदारियां होती है। प्रतिपक्ष के नेता को सदन में होने वाली चर्चाओं के समय उपस्थित रहना होता है। इसके सथ ही सदन में प्रस्तुत होने वाले प्रस्तावों के विषयों का भी अध्ययन करना होता है ताकि बहस के समय विपक्ष के विचारों को रखा जा सके। यानी प्रतिपक्ष के नेता का पद बुद्धिमता वाला होता है। प्रतिपक्ष के नेता को किसी भी सासंद के सवाल पर बोलने का विशेषाधिकार होता है। जानकारों की माने तो राहुल गांधी स्वयं ही इस पद को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं है। चूंकि राहुल गांधी पर कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारियां हैं, इसलिए वे सांसद तक सीमित नहीं रहना चाहते। विधानसभाओं के चुनाव में पार्टी के प्रचार को देखते हुए भी राहुल गांधी पद के किसी भी दायरे में बंधना नहीं चाहते। कांग्रेस संसदीय दल के अध्यक्ष की कमान उनकी माताजी श्रीमती सोनिया गांधी के पास हो, लेकिन निर्णय राहुल गांधी ही करेंगे। वैसे भी कांग्रेस संगठन के महत्वपूर्ण निर्णय भी राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी करते हैं। इसमें कोई दो ारय नहीं कि गांधी परिवार ने लोकसभा चुनाव में जो रणनीति बनाई उसका फायदा कांग्रेस को हुआ है। 99 सीट जीत कांग्रेस विपक्ष का सबसे बड़ा दल है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिाकर्जुन खडग़े भी मानते हैं कि राहुल गांधी ने जो भारत जोड़ों यात्रा निकाली उसका फायदा कांग्रेस को मिला है। 99 सीटें मिलने से खुद राहुल गांधी का उत्साह भी सातवें आसमान पर है। इतना ही नहीं राहुल गांधी हिंदू बाहुल्य रायबरेली और मुस्लिम बाहुल्य वायनाड़ की सीटों से चुनाव जीत गए हैं। अब राहुल गांधी वायनाड़ से इस्तीफा देंगे और अपनी बहन प्रियंका गांधी को वायनाड़ का सांसद बनवाएंगे। 
S.P.MITTAL BLOGGER (09-06-2024)
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