संभल की मस्जिद और कुतुब मीनार की सच्चाई उजागर:
न्यूज चैनल आज तक पर रात 9 बजे प्रसारित होने वाले ब्लैक एंड व्हाइट कार्यक्रम में 2 दिसंबर को एंकर सुधीर चौधरी ने उत्तर प्रदेश के संभल की जामा मस्जिद और दिल्ली की ऐतिहासिक कुतुब मीनार परिसर की सच्चाई बताई। सुधीर चौधरी ने बताया कि अंग्रेजों के शासन के समय 1875 में तत्कालीन पुरातत्व विभाग ने एक रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट में बताया गया कि मस्जिद निर्माण किसी हिदंू मंदिर की सामग्री से हुआ है। मस्जिद की सीढिय़ों में मंदिर की मूर्तियों की कृति नजर आ रही है। 150 वर्ष पहले जब यह रिपोर्ट अंग्रेज अफसर ने तैयार की तब न तो कांग्रेस न भाजपा और न ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का गठन हुआ था। कायदे से देश के विभाजन के बाद पुरातत्व विभाग की यह रिपोर्ट उजागर हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज भले ही संभल की जामा मस्जिद भारतीय पुरातत्व विभाग की धरोहर हो, लेकिन इस विभाग के अधिकारी मस्जिद परिसर में घुस नहीं सकते है। सुधीर चौधरी ने 1871 की एक और रिपोर्ट अपने चैनल के दर्शकों को दिखाई। यह रिपोर्ट भी पुरातत्व विभाग के तत्कालीन अंग्रेज अफसरों ने तैयार की। इस रिपोर्ट में भी लिखा गया कि विभिन्न हिंदू मंदिरों को तोड़कर सामग्री को यहां लाया गया और फिर कुतुबमीनार और उसका परिसर तैयार किया गया। सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि कुतुब मीनार परिसर में आज भी जो शिलालेख सूचना पट्ट प्रदर्शित है उसमें स्पष्ट लिखा है कि 27 मंदिरों को तोड़ कर इस स्थान का निर्माण किया गया। इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि आजादी के 75 साल बाद भी हिंदू मंदिरों को तोड़ने वाला शिलालेख हटाया नहीं जा सका है। इतना ही नहीं कुतुब मीनार परिसर में पर्यटकों के बैठने के लिए जो बड़े पत्थर खे हुए है उनमें भी भगवानों की कृतियां दिख रही है। लोग इन पत्थरों पर ही जूते आदि रखते हैं। जो लोग दरगाह और मस्जिद की भौगोलिक स्थिति में बदलाव नहीं चाहते वे कम से कम हिंदुओं को अपमानित करने वाला प्रदर्शन तो न करें। क्या संभल की मस्जिद और दिल्ली की कुतुब मीनार वाले स्थानों से हिंदुओं को अपमानित करने वाले चिह्न नहीं हटने चाहिए? सनातन धर्म की इससे ज्यादा सहिष्णुता उदारता और क्या हो सकती है कि पाकिस्तान बन जाने के बाद भी भारत में सार्वजनिक स्थानों पर सनातन संस्कृति का अपमान हो रहा है। जो लोग देश में वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन भी नहीं चाहते, उन्हें आज तक पर प्रसारित सुधीर चौधरी वाला यह कार्यक्रम जरूरी देखना चाहिए। कोई पौन घंटे का यह कार्यक्रम यूट्यूब तकनीक से देखा जा सकता है।
आंखें खोलने वाला संदेश:
2 दिसंबर को संसद भवन के बालयोगी सभागार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट के साथ द साबरमती रिपोर्ट फिल्म देखी। यह फिल्म 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा के पास साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में आग लगने से संबंधित है। अचानक लगी गई आग से 60 हिंदू जलकर मर गए। यह सभी अयोध्या से कार सेवा कर लौट रहे थे। फिल्म में बताया गया कि किन परिस्थितियों में ट्रेन के डिब्बे में आग लगी। इस फिल्म को देखने के बाद पीएम मोदी ने कहा कि अच्छा है कि लोगों को सच्चाई की जानकारी होगी। मालूम हो कि उस समय नरेंद्र मोदी ही गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मोदी समय समय पर देशवासियों की आंख खोलने और सच्चाई जानने के काम करते है। साबरमती फिल्म देखकर भी मोदी ने आंख खोलने वाला काम किया है। मोदी ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि देश किस नाजुक दौर से गुजर रहा है। देश के जो लोग आज भी हालातों को समझना नहीं चाहते उनको साबरमती फिल्म जरूर देखनी चाहिए।
धीरेंद्र शास्त्री भाजपा के एजेंट:
सब जानते हैं कि बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री इन दिनों जात पात के खिलाफ धार्मिक यात्राएं निकाल रहे हैं। धीरेंद्र शास्त्री का प्रयास है कि हिंदू समुदाय में जात पात की व्यवस्था को समाप्त किया जाए। यही वजह है कि अपने धार्मिक आयोजनों में धीरेंद्र शास्त्री मंच पर वाल्मीकि समाज के प्रतिनिधियों को बैठाते हैं। धीरेंद्र शास्त्री का कहना है कि मौजूदा चुनौतियों का मुकाबला तभी किया जा सकता है जब हिंदू समाज एकजुट होगा, लेकिन धीरेंद्र शास्त्री के इस काम पर बद्रिका जोशी पीठ के स्वयंभू शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ऐतराज है। उनका कहना है कि धीरेंद्र शास्त्री भाजपा के एजेंट की भूमिका निभा रहे है। हिंदुओं को एकजुट करने का मकसद चुनाव में भाजपा को वोट दिलवाना है। सनातन धर्म को लेकर अविमुक्तेश्वरानंद ने जो बातें कही उन्हें ब्लॉग में नहीं लिखा जा सकता है। इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि अविमुक्तेश्वरानंद जैसे लोग स्वयं को धर्मगुरु मानते हैं। यहां यह उल्लेखनीय हे कि अविमुक्तेश्वरानंद के शंकराचार्य होने पर भी विवाद है। यह विवाद अदालत में भी चल रहा है। इस पीठ के दिवंगत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपने जीवन काल में कई बार कहा कि उन्होंने किसी भी शिष्य को उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया है। लेकिन इसके बाद भी स्वामी स्वरूपानंद के निधन के तुरंत बाद अविमुक्तेश्वरानंद ने स्वयं को इस पीठ का शंकराचार्य घोषित कर दिया। अविमुक्तेश्वरानंद पर वित्तीय अनियमितताओं के भी गंभीर आरोप है। धीरेंद्र शास्त्री पर आरोप लगाकर अविमुक्तेश्वरानंद ने अपनी सनातन विरोधी मानसिकता को ही प्रदर्शित किया है।
S.P.MITTAL BLOGGER (03-12-2024)
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