Saturday 18 November 2017

#3283
तो क्या पुष्कर पालिका अध्यक्ष कमल पाठक और विधायक सुरेश रावत के बीच मतभेद हो गए हैं? जन सुनवाई में नहीं आ रही भीड़।
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अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर शहर में इन दिनों क्षेत्रीय भाजपा विधायक सुरेश सिंह रावत जन सुनवाई कर रहे हैं। रावत ने 18 नवम्बर को भी 7 वार्डों की जन समस्याएं सुनी। लेकिन विधायक की जनसुनवाई में न तो संबंधित वार्डों के पार्षद और न नागरिक आ रहे हैं। 17 नवम्बर की सुनवाई में तो 7 मे से 5 वार्डों के पार्षद  ही नहीं आए। जबकि 7 वार्डों के मुश्किल से पचास लोग उपस्थित थे। ये भी भाजपा के मंडल अध्यक्ष पुष्कर नारायण भाटी के साथ आए थे। इनमें से अधिकांश भाजपा के कार्यकर्ता थे। बताया जा रहा है कि विधायक की जनसुनवाई को फेल करने में पालिकाध्यक्ष कमल पाठक के साथ चल रहे मतभेद कारण रहे हैं। हालांकि पूर्व में तो विधायक और पालिकाध्यक्ष के बीच चोली दामन का साथ था, लेकिन गत कुछ माह से दोनों के बीच मतभेद हो गए हैं। पूरा पुष्कर विधानसभा क्षेत्र जानता है कि दोनों के बीच अदृश्य कारोबारी रिश्ते हैं। इन्हीं रिश्तों की वजह से विधायक के एक इशारे पर पालिकाध्यक्ष ने लाखों रुपए खर्च किए हैं। अखबारों में पालिकाध्यक्ष से भी बड़ी फोटो विधायक की छपने के पीछे भी पाठक का ही योगदान रहा। विधायक ने पालिका के बूते अनेक कार्य किए और वाह-वाही लूटी। ऐसे मजबूत रिश्ते के चलते यदि पाठक के इलाके में विधायक की जनसुनवाई में लोग न आए तो फिर सवाल तो उठते ही हैं। 
पुष्कर तीर्थ के पुरोहितों से लेकर प्रसाद बेचने या चाय का ठेला लगाने वाले तक जानते हैं कि पालिकाध्यक्ष के तौर पर कमल पाठक का पुष्कर नगरी में एक छत्र राज है। यही वजह है कि सरोवर के घाट से लेकर पालिका के कार्यालय तक में किसी के भी बोलने की हिम्मत नहीं है। भले ही राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार हो, लेकिन दबंग छवि की वजह से पुष्कर में तो पाठक सरकार का ही बोलबाला है। दिखाने को तो कमल पाठक भी विधायक की जनसुनवाई में उपस्थित थे, लेकिन सुनवाई में आम जनों  के नहीं आने से पाठक की पर्दे के पीछे की नाराजगी को समझा जा सकता है। सवाल उठता है कि क्या पाठक जनसुनवाई करें तो किसी पाषर्द के न आने की हिम्मत हो सकती है? पुष्कर का शायद ही कोई पार्षद होगा जो पाठक सरकार से नाखुश हो। सूत्रों की माने तो गत 10 अक्टूबर कोे जब सीएम वसुंधरा राजे पुष्कर आईं थी तभी दोनों भाजपा नेताओं मंे विवाद हो गया था। कोई पांच दिन पहले भी दोनों में पालिका के कार्यालय में कोई दो घंटे तक बंद कमरे में वार्ता हुई, लेकिन मतभेद दूर नहीं हो सके हैं। चूंकि कारोबारी रिश्ते फिलहाल अदृश्य हैं, इसलिए कारण उजागर होने में समय लगेगा। वैसे यह कहा जा सकता है कि शुरुआत हो गई और यह शुरुआत भी लोक सभा के उपचुनाव के मौके पर हुई है। वैसे विधायक की जनसुनवाई में भीड़ नहीं आने का कारण पालिकाध्यक्ष यह बता रहे हैं कि उनके कार्यकाल में पुष्कर में कोई समस्या है ही नहीं। जब समस्या है ही नहीं तो लोग विधायक की जनसुनवाई में क्यों आएंगे?
एस.पी.मित्तल) (18-11-17)
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