Monday 20 November 2017

#3293
अयोध्या में श्रद्धा का मंदिर और लखनऊ में अमन की मस्जिद के प्रस्ताव पर क्या मुसलमानों में सहमति हो जाएगी? 5 दिसम्बर से सुनवाई होनी है सुप्रीम कोर्ट में।
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20 नवम्बर को उत्तर प्रदेश के शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे के साथ बीस पृष्ठ का एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। इस प्रस्ताव में अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद को हल करने के सुझाव दिए गए हैं। हालांकि शिया बोर्ड इस विवाद में पक्षकार नहीं है, लेकिन मामले की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस विवाद का हल आपस में बैठकर निकाला जाए। सुप्रीम कोर्ट की इस सलाह पर ही शिया मुसलमानों का नेतृत्व करने वाले वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों ने विश्व हिन्दू परिषद सहित अयोध्या के तमाम साधु-संतों से संवाद किया। इस संवाद में ही यह हल निकाला गया कि अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बने तथा लखनऊ के हुसैनाबाद क्षेत्र के घंटा घर परिसर में अमन की मस्जिद बनाई जाए। सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत इस प्रस्ताव पर विवाद से जुड़े हिन्दू पक्षकारों ने भी हस्ताक्षर किए हैं। इस प्रस्ताव को पेश करने के बाद बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने कहा कि अयोध्या में बावरी मस्जिद का निर्माण शिया समुदाय के मीरबाकी ने करवाया था, इसलिए मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड आदि संस्थाओं को इस विवाद में दखल नहीं करना चाहिए। जब शिया समुदाय लखनऊ में मस्जिद बनवाने को तैयार है तो फिर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लखनऊ के घंटाघर की सम्पत्ति भी शिया वक्फ बोर्ड की ही है। सरकार इस परिसर में मस्जिद निर्माण की अनुमति देकर अयोध्या का विवाद समाप्त करवा सकती है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या शिया वक्फ बोर्ड के इस प्रस्ताव पर मुसमानों में सहमति हो पाएगी? क्या सुन्नी समुदाय अयोध्या में सिर्फ मंदिर बने, इस पर सहमत होगा? देखा जाए तो अब यह मामला शिया और सुन्नी समुदाय के बीच का रह गया है। शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी का कहना है कि वे देश में अमन चैन चाहते हैं, इसलिए यह प्रस्ताव रखा है। वैसे भी जिस स्थान पर पूजा हो रही हो, वहां मुसलमानों की मस्जिद नहीं बन सकती। आज भारत में आम हिन्दू और मुसलमान सुकून के साथ रहना चाहता है। लेकिन अयोध्या विवाद की वजह से कई बार देश के भाईचारे को खतरा हो जाता है।
विरोध शुरूः
श्रद्धा का मंदिर और अमन की मस्जिद के शिया वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव का विरोध भी शुरू हो गया है। मुस्लिम पसर्नल लाॅ बोर्ड के मौलाना फिरंगी ने कहा कि शिया बोर्ड का प्रस्ताव कोई मायने नहीं रखता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में वह बोर्ड पक्षकार नहीं है और जब यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है तो फिर कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। अयोध्या विवाद के प्रमुख पक्षकार इकबाल अंसारी ने भी इस प्रस्ताव पर असहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट में 5 दिसम्बर में इस मामले में सुनवाई होगी।
एस.पी.मित्तल) (20-11-17)
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