Saturday 29 May 2021

संविधान की दुहाई देने वाले सेक्युलर बुद्धिजीवी और विपक्ष के नेता बताएं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का प्रधानमंत्री के साथ व्यवहार उचित है।आखिर पश्चिम बंगाल को कश्मीर के रास्ते पर क्यों ले जाया जा रहा है? मुख्य सचिव को केन्द्र में वापस बुला लेने से कुछ नहीं होगा।

2014 में जब से नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से अनेक सेक्युलर बुद्धिजीवी और विपक्ष के नेता संविधान की दुहाई देते हैं। ऐसे लोग आरोप लगाते हैं कि देश में संविधान के अनुरूप शासन नहीं हो रहा है। अब ऐसे लोग ही बताएं कि 28 मई को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में जो व्यवहार देश के प्रधानमंत्री के साथ किया, वह उचित था? जबकि प्रधानमंत्री तो पश्चिम बंगाल में तूफान पीड़ितों की मदद करने के लिए ही कोलकाता आए थे। पहले तो प्रधानमंत्री को मीटिंग में आधा घंटा इंतजार करवाया गया और फिर मीटिंग में भाग लेने के बजाए प्रधानमंत्री को ज्ञापन थमा दिया गया। ममता का कहना रहा कि उन्हें दूसरी जरूरी मीटिंग में जाना है, इसलिए वे तूफान पीड़ितों की समस्याओं पर प्रधानमंत्री से बात नहीं कर सकती हैं। जिस प्रदेश में देश के प्रधानमंत्री उपस्थित हों, उस प्रदेश के मुख्यमंत्री को दूसरा कौन सा जरूरी काम हो सकता है, यह ममता बनर्जी ही बता सकती हैं। प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक में जानबूझ कर अनुपस्थित रह कर क्या ममता ने संविधान के विरुद्ध काम नहीं किया है? यह माना कि हाल ही के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी ने नरेन्द्र मोदी की भाजपा को हराया है, लेकिन तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर ममता को संविधान के दायरे में रहकर काम करना होगा। हो सकता है कि ममता ने अभी प्रधानमंत्री के साथ जो गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया है उससे पश्चिम बंगाल के कुछ नेता खुश हो जाएं, जिन्होंने हर कीमत पर ममता को चुनाव जीतवाया, लेकिन ममता का यह रवैया पश्चिम बंगाल को कश्मीर के रास्ते पर ले जाने वाला हो सकता है। ममता ने पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ गैर जिम्मेदाराना व्यवहार नहीं किया, बल्कि देश के प्रधानमंत्री के साथ अमर्यादित व्यवहार किया है,जिसके परिणाम घातक हो सकते हैं। सब जानते हैं कि पश्चिम बंगाल सीमावर्ती प्रदेश है और यहां भी ऐसी ताकतें सक्रिय हैं जो अलगाववाद के विचार रखती हैं। ऐसी ताकतों से ममता को भ सावधान रहने की जरूरत है। चुनाव में जीत हासिल करना ही सब कुछ नहीं है। जीतने के बाद प्रदेश को संविधान के अनुरूप चलाना सबसे बड़ा दायित्व है। जहां तक केन्द्र सरकार का पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव ए बंदोपाध्याय को दिल्ली बुलाने का निर्णय है तो ऐसे निर्णयों से ममता पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। पहले भी ममता ने अपने आईएएस को दिल्ली नहीं भेजा। अब केन्द्र सरकार ने बंदोपाध्याय को 31 मई को प्रात: 10 बजे दिल्ली में गृह मंत्रालय में तलब किया है। सवाल उठता है कि केन्द्र सरकार किसी प्रदेश के मुख्य सचिव का तबादला केन्द्र सरकार में कर सकती है?
S.P.MITTAL BLOGGER (29-05-2021)
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1 comment:

  1. अच्छा होगा यदि आप भारत का संविधान एक बार अच्छे से पढ़ रहे हैं यह जरूरी नहीं है कि हमेशा मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री की मीटिंग में समय से पहुंचे
    केंद्र सरकार राज्य सरकार से अनुमति लेकर ही मुख्य सचिव का तबादला या डेपुटेशन कर सकती है इसलिए एक बार संविधान वह राज व्यवस्था का अध्ययन करके ही राजनीति पर कुछ लिखें कि आपके लिए भी अच्छा होगा और पढ़ने वालों के लिए भी

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