Monday 16 May 2022

आखिर राहुल गांधी को कौन डरा रहा है?चिंतन शिविर के संकल्पों के परिणाम छह माह बाद आएंगे। कांग्रेस को असली डर क्षेत्रीय पार्टियों से है।

राजस्थान के उदयपुर में आयोजित कांग्रेस का तीन दिवसीय चिंतन शिविर 15 मई को समाप्त हो गया। इस शिविर में जो संकल्प लिए उनमें परिणाम ञ माह बाद होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में आ जाएंगे। यदि इन दोनों राज्यों में कांग्रेस को सफलता मिलती है तो डेढ़ वर्ष बाद होने वाले चार राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति और सुधरेगी, जिसका असर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। लेकिन मौजूदा समय में कांग्रेस के हाथ में मात्र दो प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ ही है। लोकसभा में 454 में से कांग्रेस के मात्र 52 सदस्य हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पहल पर हुए इस चिंतन शिविर में यह दिखाने की कोशिश की गई कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा से कांग्रेस की मुकाबला कर सकती है। यह बात अलग है कि कांग्रेस की राजनीतिक ताकत अब 10 वर्ष पुरानी आम आदमी पार्टी के बराबर हो गई है। आप की भी कांग्रेस की तरह दो राज्य पंजाब और दिल्ली में सरकार है। कांग्रेस ये ख्यालों में रह कर भले ही स्वयं को भाजपा की प्रतिद्वंदी माने लेकिन राष्ट्रीय परिदृश्य में देखे तो कांग्रेस के अल्पसंख्यकों वाले परंपरागत वोट यूपी में सपा, दिल्ली में आप, पश्चिम बंगाल में टीएमसी, बिहार में आरजेडी, आंध्र प्रदेश में वीएसआर कांग्रेस, हैदराबाद में टीआरएस जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने हड़प लिए हैं। कांग्रेस को राष्ट्रीय नीति बनाने के बजाए क्षेत्रीय स्तर पर रणनीति बनानी चाहिए। कांग्रेस को लगता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा को गालियां देने से अल्पसंख्यक वर्ग खुश हो जाएगा। लेकिन पिछले 10 वर्षों के चुनाव परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस की संघ भाजपा विरोधी नीति का फायदा क्षेत्रीय दलों को मिला है। इस नीति से कांग्रेस के परंपरागत वोट क्षेत्रीय दलों के पास चले गए, वहीं हिन्दुत्व के नाम पर भाजपा की स्थिति लगातार मजबूत होती रही है। कांग्रेस खुद बताएं कि हिन्दुत्व का विरोध करने से उसे क्या फायदा हुआ। कांग्रेस माने या नहीं, लेकिन हिन्दुत्व का विरोध करने से कांग्रेस को ही नुकसान हो रहा है। कांग्रेस की छवि हिन्दुत्व विरोधी बन कर रह गई है।
 
कौन डरा रहा है?:
चिंतन शिविर के समापन पर राहुल गांधी ने कहा कि मैं किसी से नहीं डरता हंू। सवाल उठता है कि राहुल गांधी को आखिर कौन डरा रहा है? राहुल गांधी ने भले ही किसी का नाम न लिया हो, लेकिन उनका इशारा मोदी सरकार की ओर था। नरेंद्र मोदी के 2014 में देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद एक बार भी ऐसा अवरस नहीं आया, जब राहुल गांधी को डराया गया हो। राजनीतिक कारणों से भी राहुल गांधी को जेल नहीं जाना पड़ा है। नेशनल हेराल्ड की 2 हजार करोड़ रुपए की संपत्तियों को खुर्दबुर्द करने के आरोप में भी गांधी परिवार के सदस्यों ने अदालत से जमानत ले रखी है। राहुल गांधी जब जेएनयू में देश के टुकड़े करने वाली गैंग का समर्थन करने गए तब भी राहुल को गिरफ्तार नहीं किया। देश के प्रधानमंत्री को चोर कहने पर भी राहुल की गिरफ्तारी नहीं हुई। यानी कभी भी ऐसा नहीं लगा कि मोदी सरकार राहुल गांधी को डरा रही है। असल में कांग्रेस और राहुल गांधी को तो देश की जनता ही डरा रही है। जनता ने ही राहुल गांधी की पार्टी से किनारा कर लिया है। असल में कांग्रेस को उन कारणों का पता लगाना चाहिए जिसकी वजह से चुनावों में लगातार हार हो रही है। कांग्रेस का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी लगातार घट रहा है। जो क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में मजबूती के साथ खड़े हैं, वे भी कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी नहीं मान रहे हैं। कांग्रेस को तो विपक्ष में भी अपनी स्थिति सुधारने की जरूरत है।

S.P.MITTAL BLOGGER (16-05-2022)
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