मात्र 6 माह बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। लेकिन दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस गुजरात के बजाए राजस्थान में राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम कर रहे हैं। कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय चिंतन शिविर 13 से 15 मई के बीच उदयपुर में कर लिया है। जबकि भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की तीन दिवसीय बैठक 19 मई से जयपुर में शुरू हो रही है। इस बैठक में देश भर के 150 बड़े नेता भाग लेंगे। भाजपा की इस बैठक के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 20 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैठक को वर्चुअल संबोधित करेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी जयपुर के निकट उस होटल में पहुंच रहे हैं, जहां बैठक होनी है। पांच सितारा सुविधाओं वाली यह होटल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया के निर्वाचन क्षेत्र आमेर में आती है। यही वजह है कि होटल में शानदार इंतजाम किए गए हैं। सवाल उठता है कि जब गुजरात में चुनाव होने वाले है तब भाजपा और कांग्रेस राजस्थान में अपने राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम क्यों कर रहे हैं। असल में कांग्रेस की तो मजबूरी है, क्योंकि राजस्थान कांग्रेस शासित राज्य है। कांग्रेस का शासन तो छत्तीसगढ़ में भी है, लेकिन गांधी परिवार के लिए जो इंतजाम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कर सकते हैं वो छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नहीं कर पाते। कांग्रेस की सरकार इन दो राज्यों में ही बची है। गुजरात में भाजपा का शासन है, लेकिन फिर भी तीन दिवसीय राष्ट्रीय बैठक राजस्थान में की जा रही है। असल में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व राजस्थान के कुछ भाजपा नेताओं को सबक सिखाना चाहता है। राष्ट्रीय बैठक के माध्यम से राजस्थान के भाजपा नेताओं को यह बताया जाएगा कि संगठन ही सर्वोपरि है। कोई नेता अपने आप को संगठन से बडा नहीं समझे। हालांकि इस बैठक में राष्ट्रीय मुद्दों पर ही विमर्श होगा। लेकिन राजस्थान के नेताओं को यह समझाया जाएगा कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा के चुनाव में इस बार मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा घोषित नहीं होगा। यानी भाजपा अपने चुनाव चिन्ह कमल के फूल पर ही विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। संभवत: ऐसी समझाइश इसलिए की जाएगी कि पूर्व सीएम और मौजूदा समय में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के समर्थक लगातार मांग कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के लिए वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। राजे समर्थक कई विधायक सार्वजनिक मंचों से इस तरह की मांग कर चुके हैं। लेकिन अभी तक भी शीर्ष नेतृत्व ने राजे की उम्मीदवार को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि राजे ने भी अपनी उम्मीदवार के लिए अभी तक कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन कई मौकों पर राजे अपना राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन करती रही है। भले ही राजे ने अपनी उम्मीदवारी पर कुछ न कहा हो, लेकिन प्रदेश की राजनीति में उनकी रुचि को देखते हुए प्रतीत होता है कि राजे भी स्वयं को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करवाना चाहती हैं। राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना रखा है, लेकिन पिछले साढ़े तीन वर्षों में राजे की राष्ट्रीय स्तर पर सक्रियता देखने को नहीं मिली है। राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। जिस प्रकार कांग्रेस में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस की सरकार रिपीट नहीं हुई, उसी प्रकार वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री रहते हुए भाजपा की सरकार भी रिपीट नहीं हुई है। राजे जब जब भी मुख्यमंत्री रहीं, तब तब भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। चूंकि राजे दस वर्ष तक राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं है, इसलिए प्रदेश भर में उनके समर्थक उपलब्ध हैं। अभी भी यह माना जाता है कि 72 भाजपा विधायकों में से 20 पूरी तरह वसुंधरा राजे के साथ हैं। ये 20 विधायक वो हैं जिन्होंने विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया की कार्यशैली पर आपत्ति जताई थी। जयपुर में हो रही भाजपा की राष्ट्रीय बैठक में आगामी दिनों में होने वाले विधानसभा चुनावों की रणनीति भी बनाई जाएगी।
S.P.MITTAL BLOGGER (19-05-2022)
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