13 नवंबर को राजस्थान में भी विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव होने हैं। चुनाव की शुरुआत में कांग्रेस का पलड़ा भारी नजर आ रहा था, क्योंकि पिछले चुनाव में 7 में से 4 पर कांग्रेस और दो पर सहयोगी दलों की जीत हुई थी, लेकिन 25 अक्टूबर को नामांकन के अंतिम दिन कांग्रेस के सामने मुसीबत खड़ी हो गई। सहयोगी दल आरएलपी और बीएपी से पहले ही गठबंधन टूट गया, जबकि देवली से नरेश मीणा ने बागी होकर कांग्रेस उम्मीदवार के सामने ही नामांकन कर दिया। इसी प्रकार झुंझुनूं में पूर्व आईएएस अशफाक हुसैन के नामांकन दाखिल करने से कांग्रेस उम्मीदवार अमित ओला के सामने मुसीबत हो गई। अशफाक हुसैन के परिवार का मुसलमानों में ही नहीं बल्कि जाट समुदाय में भी मान सम्मान है। किसी समय अशफाक हुसैन का परिवार पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का समर्थक माना जाता था। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते इस परिवार के कई सदस्यों ने प्राइम पोस्टिंग हासिल की, लेकिन अब अशफाक हुसैन ने कांग्रेस के सामने ही ताल ठोक दी है। यदि अशफाक हुसैन की उम्मीदवारी कायम रहती है तो फिर कांग्रेस की जीत मुश्किल होगी। अमित ओला झुंझुनूं के सांसद बृजेंद्र ओला के पुत्र और शीशराम ओला के पौत्र हैं। 25 अक्टूबर को जब सलूंबर से कांग्रेस प्रत्याशी रेशमा मीणा ने नामांकन दाखिल किया, तब पूर्व सांसद रघुवीर मीणा अनुपस्थित रहे। रघुवीर मीणा के समर्थकों का कहना है कि वर्ष 2018 में रेशमा मीणा ने कांग्रेस को हराने का जो काम किया, वही अब दोहराया जाएगा। तब रघुवीर मीणा कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार थे, लेकिन रेशमा मीणा के बगावत करने के कारण रघु वीर को हार का सामना करना पड़ा। दौसा में भले ही कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में पूर्व सीएम अशोक गहलोत ताकत लगा रहे हो, लेकिन जानकारों के अनुसार डी.डी. बैरवा की उम्मीदवारी से सांसद मुरारीलाल मीणा खुश नहीं है। भाजपा ने यहां कृषि मंत्री डॉ. किरोडीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में दौसा में जाति कार्ड चलेगा। गत लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के समर्थन से हनुमान बेनीवाल नागौर के सांसद तो बन गए, लेकिन अब नागौर की खींवसर सीट से बेनीवाल ने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को आरएलपी का उम्मीदवार बना दिया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस तीसरे नंबर पर थी। खुद हनुमान बेनीवाल भी भाजपा के रेवंतराम डांगा से मात्र 2059 मतों से जीते थे। डूंगरपुर संसदीय क्षेत्र की चौरासी सीट पर तो गत चुनावों में भी कांग्रेस की जमानत जब्त हुई थी। तब बीएपी के उम्मीदवार राजकुमार रोत 70 हजार वोटों से जीते थे। लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस से समर्थन लेकर राजकुमार रोत भी सांसद बने गए, लेकिन विधानसभा के उपचुनाव में बीएपी ने यहां से अनिल कटारा को उम्मीदवार घोषित कर दिया। कहा जा सकता है कि बदली हुई परिस्थितियों में उपचुनावों में कांग्रेस के सामने अनेक मुसीबतें खड़ी हो गई है।
यादव ने कमान संभाली:
अलवर की रामगढ़ सीट को कांग्रेस के लिए अनुकूल माना जा रहा है, लेकिन यहां भाजपा की ओर से वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कमान संभाल ली है। यादव अलवर से ही भाजपा के सांसद हैं। भाजपा प्रत्याशी खुशवंत सिंह के नामांकन के समय भूपेंद्र यादव स्वयं उपस्थित रहे। यादव ने ही रामगढ़ में रहकर चुनाव की बिसात बिछाई है। भाजपा में यादव को चुनाव की रणनीति का हेड मास्टर माना जाता है। मौजूदा समय में भी भूपेंद्र यादव महाराष्ट्र के चुनाव प्रभारी है। भूपेंद्र यादव कभी भी नहीं चाहेंगे कि उनके संसदीय क्षेत्र की रामगढ़ सीट पर भाजपा की हार हो। कांग्रेस ने यहां दिवंगत विधायक जुबेर खान के पुत्र आर्यन खान को उम्मीदवार बनाया है।
S.P.MITTAL BLOGGER (26-10-2024)
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