3 मई को राजस्थान के अभिभावकों को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस कृष्ण मुरारी ने अपने आदेश में राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश भी रद्द कर दिया। प्राइवेट स्कूलों के मालिकों की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि अभिभावकों को कोरोना काल पूरी की फीस जमा करानी होगी। लेकिन इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2006 में बनाए गए फीस रेग्युलेटरी एक्ट के दायरे में प्राइवेट स्कूलों को आना होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से प्रदेशभर के अभिभावकों को तगड़ा झटका लगा है। अभिभावकों ने पूर्व में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था कि कोरोना काल में स्कूल बंद रहे हैं और स्कूल प्रबंधन ने शिक्षण का कोई कार्य नहीं किया है, इसलिए प्राइवेट स्कूलों को फीस वसूली से रोका जाए। इस पर हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि सीबीएसई से जुड़े स्कूल 70 प्रतिशत और राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से जुड़े स्कूल 60 प्रतिशत तक फीस वसूल सकते हैं। लेकिन हाईकोर्ट के इस आदेश को प्राइवेट स्कूलों मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। मालिकों का कहना रहा कि भले ही स्कूल न खुले हों, लेकिन ऑनलाइन तकनीक के जरिए विद्यार्थियों को घर बैठे पढ़ाया गया है। स्कूल के शिक्षकों और अन्य स्टाफ को भी प्रतिमाह वेतन दिया जा रहा है। ऐसे में स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों से फीस वसूलने का पूरा अधिकार है। स्कूल मालिकों की इस याचिका को ही सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है। यानी अब प्राइवेट स्कूल अभिभावकों से सौ प्रतिशत फीस वसूल सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अभिभावकों ने असंतोष जताया है। अभिभावकों का कहना है कि इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में ही दोबारा से चुनौती दी जाएगी। अभिभावकों ने आरोप लगाया कि स्कूल बंद होने के बाद अधिकांश मालिकों ने शिक्षकों की छटनी कर दी है,अधिकांश स्टाफ को नौकरी से हटाया दिया है। स्कूल मालिकों ने अपने खर्चे में तो कटौती कर ली, लेकिन कोरोना काल में अभिभावकों की आय में कटौती जारी है। राजस्थान में कोरोना की दूसरी लहर की वजह से भी गत 16 अप्रैल से लॉकडाउन लगा हुआ है। कारोबार पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है। ऐसे में बच्चों की स्कूल फीस जमा करवाना मुश्किल है। कोरोना की भयावह स्थिति को देखते हुए केन्द्र राज्य सरकार 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों को बिना परीक्षा के लिए प्रमोट करने का निर्णय लिया है। यानी अब प्राइवेट स्कूलों को वार्षिक परीक्षा नहीं करवानी है। ऐसे में सौ प्रतिशत फीस की वसूली अभिभावकों के साथ अन्याय है।
S.P.MITTAL BLOGGER (03-05-2021)
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