17 मई को जब सीबीआई ने पश्चिम बंगाल के मंत्री हाकिम फिरहाद, सुब्रत मुखर्जी तथा विधायक मदन मित्रा व पूर्व मेयर सोवन चटर्जी को बहुचर्चित नारदा स्टिंग केस में गिरफ्तार किया तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने मंत्रियों और नेताओं को छुड़ाने के लिए सीबीआई के कोलकाता स्थित दफ्तर पहुंच गई। ममता ने कहा कि सीबीआई के अधिकारी उनके मुख्यमंत्री रहते किसी मंत्री अथवा नेता को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं। 17 मई को दोपहर ढाई बजे तक यह ब्लॉग लिखे जाने तक ममता बनर्जी सीबीआई के दफ्तर में बैठी थीं। इधर मुख्यमंत्री सीबीआई के दफ्तर में अंदर थी तो बाहर ममता बनर्जी की टीएमसी के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में एकत्रित हो गए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि सीबीआई दफ्तर के हालात कैसे होंगे। यह माना कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, लेकिन क्या कोई मुख्यमंत्री देश के संविधान और कानून से बड़ा हो सकता है? यदि ममता को सीबीआई की कार्यवाही दोषपूर्ण नजर आती है तो उन्हें न्यायालय की शरण लेनी चाहिए। ममता बनर्जी को यह अधिकार किसी ने भी नहीं दिया कि वे अपने मंत्रियों और नेताओं को छुड़ाने के लिए सीबीआई के दफ्तर पहुंच जाए। ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद की जो शपथ ली है, उसमें स्वीकार किया है कि वे देश के संविधान के दायरे में रहकर काम करेंगी। लेकिन ममता का सीबीआई के दफ्तर पहुंचना यह जाहिर करता है कि वे देश के संविधान के अनुरूप मुख्यमंत्री का दायित्व नहीं निभा रही हैं। इस संबंध में सीबीआई का कहना है कि चारों आरोपियों की गिरफ्तारी हाईकोर्ट के आदेश के अनुरूप की है। 2014 में जो नारदा स्टिंग प्रकरण हुआ उसमें यह चारों आरोपी एक कंपनी के प्रतिनिधि से रिश्वत लेते नजर आए थे। सीबीआई ने कानून के अनुरूप काम किया है। यह बात अलग है कि अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सीबीआई की कार्यवाही पसंद नहीं आ रही है। इसे ममता बनर्जी का घमंड ही कहा जाएगा कि वे मुख्यमंत्री पद की मर्यादा को भूलकर सीबीआई के दफ्तर पहुंची हैं। देश के आजाद इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब कोई मुख्यमंत्री आरोपियों को छुड़ाने के लिए किसी जांच एजेंसी के दफ्तर पहुंची हैं। इस घटना क्रम से पश्चिम बंगाल के हालातों का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पश्चिम बंगाल की पुलिस वो ही करेगी जो ममता बनर्जी कहेंगी। यदि ममता बनर्जी आरोपियों को छुड़ाने के लिए सीबीआई दफ्तर पहुंच गई है तो फिर पश्चिम बंगाल की पुलिस भी इसमें सहायक होगी। सवाल यह भी है कि क्या ममता बनर्जी को देश की न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है?
S.P.MITTAL BLOGGER (17-05-2021)
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