Thursday 5 September 2024

आखिर भाजपा सरकार राजस्थान लोक सेवा आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति क्यों नहीं कर रही?मुख्यमंत्री रहते अशोक गहलोत ने कर्नल केसरी सिंह राठौड़ की नियुक्ति पर खेद जताया था।बाबूलाल कटारा की नियुक्ति भी कांग्रेस के शासन में हुई थी। आरोप तो भाजपाई राजकुमारी गुर्जर पर भी लगे थे।भंग अथवा पुनर्गठन करने वाली सचिन पायलट की मांग तो गहलोत ने ही खारिज कर दी थी।

राजस्थान लोक सेवा आयोग में फैले भ्रष्टाचार और पेपर लीक का मामला इन दिनों प्रदेश की राजनीति में छाया हुआ है। पेपर लीक प्रकरण की जांच कर रही एसओजी ने हाल ही में आयोग के पूर्व सदस्य रामू राम रायका को गिरफ्तार किया है। रायका पर पुलिस उपनिरीक्षक परीक्षा में अपने बेटा- बेटी और अन्य को परीक्षा से पूर्व प्रश्न पत्र उपलब्ध करवाने का आरोप है। पिछले कांग्रेस शासन में तो आयोग का सदस्य रहते हुए बाबूलाल कटारा को गिरफ्तार किया गया था। कांग्रेस के शासन में ही सदस्य रही राजकुमारी गुर्जर के पति से भी पूछताछ हुई। यहां यह उल्लेखनीय है कि रायका और श्रीमती गुर्जर की नियुक्ति भाजपा शासन में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा की गई थी। चाहे कटारा द्वारा प्रश्न पत्र बेचने का मामला हो या फिर अन्य कोई। अधिकांश मामलों में यह बात सामने आई है कि आयोग के अध्यक्ष रहे संजय क्षौत्रिय ने सदस्यों को मनमानी करने की पूरी छूट दी। यहां तक कि गोपनीयता की परंपराओं का भी उल्लंघन किया गया। अपनी जिम्मेदारी बेईमान सदस्यों पर डालकर क्षौत्रिय ने अपना काम भी निकाल लिया। जबकि सदस्यों के हर कृत्य की जिम्मेदारी अध्यक्ष की होती है। गत विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पेपर लीक को बड़ा मुद्दा बनाया था। तब भाजपा नेताओं ने राजस्थान लोक सेवा आयोग को सुधारने और कामकाज में पारदर्शिता लाने का वादा किया था। प्रदेश में भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार को 8 माह हो गए हैं, लेकिन अभी तक भी आयोग को सुधारने का काम शुरू नहीं हुआ है। न ही परीक्षा प्रणाली को पारदर्शी बनाया गया है। आयोग में एक पद लंबे समय से रिक्त है और हाल ही में संजय क्षौत्रिय की सेवानिवृत्ति के बाद से अध्यक्ष का पद भी रिक्त हो गया है। आमतौर पर अध्यक्ष की सेवानिवृत्ति के साथ ही नए अध्यक्ष की नियुक्ति हो जाती है, लेकिन एक माह गुजर जाने के बाद भी नया अध्यक्ष नहीं बनाया गया है। ऐसे में कांग्रेस शासन में नियुक्त सदस्य कैलाश मीणा ही अध्यक्ष की भूमिका में है। एक ओर भाजपा नेता कांग्रेस शासन में नियुक्त सदस्यों पर आपत्ति करते हैं तो दूसरी ओर उन्हीं सदस्यों से परीक्षाएं करवाई जा रही है। पेपर लीक का मुद्दा बना सत्ता हासिल करने वाले भाजपा नेताओं को यह बताना चाहिए कि आखिर आयोग में रिक्त पड़े अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति क्यों नहीं की जा रही है? किसी योग्य और ईमानदार अध्यक्ष की नियुक्ति से आयोग का चेहरा कम से कम साफ तो दिखने लगेगा। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा माने या नहीं, लेकिन आए दिन उजागर हो रहे भ्रष्टाचार के मामलों से राजस्थान के युवाओं का इस भर्ती आयोग से विश्वास उठ गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस के शासन में अशोक गहलोत ने अपने मुख्यमंत्री पद को बचाए रखने के लिए इस आयोग का जमकर दुरुपयोग किया। संजय क्षौत्रिय को अध्यक्ष भी इसलिए बनाया, क्योंकि क्षौत्रिय ने आईपीएस के पद पर रहते हुए गहलोत को राजनीति से जुड़ी गोपनीय सूचनाएं दी। हद तो तब हो गई जब कर्नल केसरी सिंह राठौड़ को सदस्य बनाए जाने के बाद गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर खेद प्रकट किया। गहलोत ने माना कि उन्हें कर्नल राठौड़ की पृष्ठभूमि और विचारों की ज्यादा जानकारी नहीं थी। खेद प्रकट किए जाने से जाहिर है कि कांग्रेस के शासन में किस तरह आयोग का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ है। गहलोत ने अपने मुख्य सचिव रहे निरंजन आर्य की पत्नी संगीता आर्य को भी आयोग का सदस्य नियुक्त कर दिया। सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास, राहुल गांधी को अपनी कविताओं में पप्पू न कहे इसके लिए भी कुमार विश्वास की पत्नी मंजू शर्मा को आयोग का सदस्य बना दिया। गहलोत ने सरकार को समर्थन देने वाले विधायकों की सिफारिश भी आयोग में सदस्यों की नियुक्ति की। इसमें जसवंत राठी का नाम शामिल है।
 
पायलट की मांग पहले ही खारिज:
प्रदेश के डिप्टी सीएम रहे और मौजूदा समय में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट ने 4 सितंबर को एक बार फिर इस आयोग के पुनर्गठन की मांग की है। मालूम हो कि पायलट ने 11 मई 2023 को अपनी ही सरकार के खिलाफ अजमेर से जयपुर तक संघर्ष यात्रा निकाली थी। इस यात्रा में मुख्यतौर पर 3 मांग रखी गई। इनमें से एक मांग आयोग को भंग करने की भी थी। तब पायलट ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस के शासन में सदस्यों की नियुक्ति ईमानदारी के साथ नहीं हुई है, लेकिन तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पायलट की इस मांग को खारिज कर दिया। गहलोत का कहना रहा कि आयोग के सदस्य का पद संवैधानिक है। एक बार नियुक्ति के ाबद राज्य सरकार किसी को भी हटा नहीं सकती। सिर्फ राष्ट्रपति को बर्खास्त करने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए भी लंबी कानूनी प्रक्रिया है। जिस बाबूलाल कटारा को पेपर बेचने के मामले में गहलोत ने गिरफ्तार करवाया उसे आज भाजपा के शासन में बर्खास्त नहीं किया जा सकता है। कटारा आज भी आयोग के निलंबित सदस्य हैं। मालूम हो कि जब हबीब खान गौरांग द्वारा अपनी बेटी के लिए आरजेएस का पेपर लीक करने का मामला आया तब लाख कोशिश के बाद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने गौरांग को अध्यक्ष पद से नहीं हटा सकी, लेकिन तब वसुंधरा राजे ने गौरांग को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। गौरांग के इस्तीफे के बाद आयोग की थोड़ी इज्जत बच पाई। लेकिन अब वसुंधरा राजे जैसी ताकत सरकारों में नजर नहीं आती। यही वजह है कि बाबूलाल कटारा जैसे सदस्य निलंबित होने के बाद भी इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (05-09-2024)

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