Thursday, 30 January 2025

आँखों देखा महाकुंभ भाग-3 तो सनातन के रखवालों ने महाकुंभ को बदनाम होने से बचा लिया। पीएम मोदी की पहल पर हुआ साधु संतों का सांकेतिक अमृत स्नान। हर घट पर स्नान के लिए पहले ही प्रेरित किया जाता तो महाकुंभ में भगदड़ नहीं होती। श्रद्धालुओं के जाम में तो हम भी फंसे थे, लेकिन तब भगदड़ नहीं हुई।

प्रयागराज में मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान करने के लिए 28 जनवरी की रात को जब 8 करोड़ से भी ज्यादा श्रद्धालु मौजूद थे कि तभी रात एक बजे संगम नोज (गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम का स्थान) पर भगदड़ मच गई। इसी का परिणाम रहा कि कुछ श्रद्धालु स्वर्ग और कुछ अस्पताल पहुंच गए। इस भगदड़ से उत्पन्न हुए हालातों के बाद साधु संतों ने घोषणा की कि अब वह मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान नहीं करेंगे। साधु संतों के अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने कहा कि हमारे लिए पहले श्रद्धालु है। हम चाहते हैं कि देश विदेश से जो श्रद्धालु आए है, वह सुगमता के साथ स्नान कर पुण्य प्राप्त करें। साधु संतों की इस घोषणा से करोड़ों श्रद्धालुओं ने संगम के घाटों पर स्नान किया और कुछ ही घंटों में हालात सामान्य हो गए। यह सही है कि यदि भगदड़ के बीच ही साधु संतों के रथ और जुलूस निकलते तो महाकुंभ के हालात और खराब होते। साधु संतों ने स्वयं का अमृत स्नान स्थगित कर महाकु को बदनाम होने से बचा लिया। जिस वक्त भगदड़ मची उसी समय सोशल मीडिया पर सनातन विरोधी सक्रिय हो गए। ऐसा प्रचारित किया गया कि महाकुंभ में महाकुंभ के कारण भगदड़ मची। विधर्मियों ने सनातन धर्म के प्रति आस्था और विश्वास को चोट पहुंचाने वाली प्रतिक्रिया भी दी। इस भदगड़ को सीधे सनातन धर्म की ताकत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। जानकारों की मानें तो प्रयागराज में 8 से 10 करोड़ श्रद्धालुओं की उपस्थिति को देखते हुए पीएम मोदी महाकुंभ पर रात भर नजर लगाए हुए थे। मोदी ने कई बार फोन पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी से बात की। पीएम मोदी ने साधु संतों के अमृत स्नान को स्थगित किए जाने की तो सराहना की, लेकिन अमृत स्नान को रद्द करने का निर्णय स्वीकार नहीं किया। मोदी ने कहा कि महाकुंभ में साधु संतों के स्नान की परंपरा रही है उसे जारी रखा जाएगा। पीएम मोदी की इस पहल के बाद जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरि, योग गुरु बाबा रामदेव और भाजपा सांस हेमा मालिनी ने गंगा नदी के एक घाट पर पहुंचकर मौनी अमावस्या का स्नान किया। स्वामी अवधेशानंद ने कहा कि हम बिना किसी तामझाम के आए है और परंपराओं का निर्वाह किया है। इसके साथ ही अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने भी घोषणा कर दी कि निर्धारित क्रम के अनुसार ही अखाड़े से जुड़े साधु संत स्नान करेंगे। यह सही है कि यदि परंपरा के अनुरूप साधु संत मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान नहीं करते तो विधर्मियों को एक बार फिर महाकुंभ को बदनाम करने का अवसर मिल जाता। संगम के घाटों पर ही स्नान की होड़: प्रयागराज प्रशासन ने गंगा नदी के किनारे कोई 13 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में घाट बनाए ताकि महाकुंभ में करोड़ों लोग आसानी के साथ स्नान कर सके, लेकिन श्रद्धालुओं का जोर उसी स्थान पर स्नान करने का रहा, जिसे गंगा यमुना और सरस्वती नदी का संगम माना जाता है। प्रशासन ने भी मेला क्षेत्र में संगम घाट वाले बोर्ड लगा रखे हैं। इन बोर्डों की वजह से ही सभी श्रद्धालु संगम के घाटों की ओर जाते है। 28 जनवरी की रात को जो भगदड़ हुई वह स्थान संगम घाटों की ओर जाने वाला ही था। भीड़ की वजह से जब चलना मुश्किल हो गया, तभी भगदड़ मच गई। इस भगदड़ के बाद स्थानीय प्रशासन ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे गंगा नदी के किनारे किसी भी घाट पर स्नान कर ले। प्रशासन ने किसी भी घाट पर स्नान के निर्णय की जो अपील की यदि उस पर पहले ही अमल कर लिया जाता तो शायद संगम नोज पर भगदड़ नहीं होती। सवाल यह भी उठता है कि आखिर संगम घाट वाले साइन बोर्ड स्वयं प्रशासन ने क्यों लगाए? हम भी फंसे: महाकुंभ में 25 जनवरी को सुबह मैंने और मेरे साथ अजमेर से गए एवीवीएनएल के पूर्व एमडी वीसी भाटी,चंदीराम शोरूम के मालिक रमेश चंदीराम, समाजसेवी सुभाष काबरा, महाकाल कुल्फी के मालिक राजेश मालवीय, व्यवसायी बनवारीलाल डाड, रमेश काबरा और उनकी पत्नियों ने भी संगम घाट पर स्नान किया। इस दिन भी एक करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु उपस्थित थे। इस दिन भी संगम नोज पर ही श्रद्धालुओं की भीड़ का जाम था। इस जाम में जो हालात उत्पन्न हुए उससे घबराकर मैं और मेरे कुछ सहयोगी बड़ी मुश्किल से बाहर आ पाए। तब हमने तय किया अब संगम घाट पर स्नान नहीं करेंगे, लेकिन हमारा समूह दो भागों में बंट गया। इसलिए हमने एक बार फिर हिम्मत की और श्रद्धालुओं की भीड़ के साथ ही संगम घाट पहुंचे। प्रशासन ने मौनी अमावस्या पर जिस तरह सभी घाटों के लिए लोगों को प्रेरित किया। उसी प्रकार आगे के दिनों में भी सभी घाटों पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं को प्रेरित किया जाए। जो लोग भगदड़ के बाद सोशल मीडिया पर महाकुंभ को बदनाम करने का प्रयास कर रहे है उन्हें यह भी समझना चाहिए कि जब 8 से 10 करोड़ श्रद्धालु एक स्थान पर जमा हो, तब एक मिनट भी बिजली बंद न हो। इतने लोगों के लिए रात दिन बिजली सप्लाई करना आसान काम नहीं है। इसी प्रकार संपूर्ण मेला क्षेत्र में चौबीस घंटे पेयजल की सप्लाई की जा रही है। धार्मिक संस्थानों के जो हजारों शिविर बने हुए हैं, उसमें पानी को एकत्रित करने के लिए कोई टेंक नहीं है। चूंकि नलों में चौबीस घंटे पानी आ रहा है, इसलिए पानी को किसी पात्र में एकत्रित करने की जरुरत नहीं है। इसे महाकुंभ में सरकार का प्रबंधन ही कहा जाएगा कि 8 से 10 करोड़ लोगों की मौजूदगी के बाद भी सीवरेज सिस्टम खराब नहीं हुआ है। छोटे बड़े शहरों में 10 से 20 लाख की आबादी में आए दिन सीवरेज सिस्टम खराब हो जाता है। मेला क्षेत्र में सफाई की भी माकूल व्यवस्था की गई है। 28 जनवरी की रात को किन कारणों से भगदड़ हुई यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन सरकार ने मेला क्षेत्र में जो व्यवस्थाएं की है, उन की जमीनी हकीकत को देखा जाना चाहिए। S.P.MITTAL BLOGGER (29-01-2025) Website- www.spmittal.in Facebook Page- www.facebook.com/SPMittalblog Follow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11 Blog- spmittal.blogspot.com To Add in WhatsApp Group- 9166157932 To Contact- 9829071511

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