Monday 4 December 2023

राजस्थान में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री का फैसला पीएम मोदी पर छोड़ा जाना चाहिए।क्योंकि मोदी के चेहरे पर ही बहुमत मिला है। इस बार कांग्रेस की स्थिति भी मजबूत है।

राजस्थान में भाजपा सरकार का मुख्यमंत्री कौन होगा, यह सवाल राजनीति में पूछा जा रहा है। स्वाभाविक है कि जब विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल गया है, तब मुख्यमंत्री के नाम को लेकर जिज्ञासा होती ही है। इस बार भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने किसी भी नेता को प्रचार के दौरान सीएम फेस घोषित नहीं किया। कहा जा सकता है कि भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे रखा। मोदी का चेहरा आगे रखने का फायदा भाजपा को हुआ। तीन दिसंबर के परिणाम के बाद चार दिसंबर को सभी अखबारों में जीत का श्रेय मोदी को ही दिया गया है। यदि मोदी का चेहरा नहीं होता तो राजस्थान में भाजपा को बहुमत नहीं मिलता। कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जो माहौल बनाया उसे भेदना आसान नहीं था। जब मोदी की वजह से जीत हुई है तो फिर मुख्यमंत्री के चयन का अधिकार भी मोदी को ही दिया जाना चाहिए। भाजपा के नेता माने या नहीं, लेकिन किस राज्य में कौन सी परिस्थितियां उत्पन्न होंगी, इसका अंदाजा मोदी को रहता है। महाराष्ट्र में जब सत्तारूढ़ शिवसेना में टूट हुई तो भाजपा में मुख्यमंत्री के पद पर सबसे मजबूत उम्मीदवार देवेंद्र फडणवीस की थी, लेकिन पीएम मोदी ने दखल देते हुए शिवसेना के असंतुष्ट गुट के नेता एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया। यही वजह रही कि आज महाराष्ट्र में भाजपा और शिंदे गुट की सरकार आराम से चल रही है। यह सही है कि राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने कुछ ज्यादा ही सक्रियता दिखाई है। चुनाव नतीजों के बाद अपने आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करना दर्शाता है कि वसुंधरा राजे के मन में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की इच्छा है। हर नेता मुख्यमंत्री बनना चाहता है, लेकिन वसुंधरा राजे को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इस बार उनके चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा गया। 3 दिसंबर को घोषित नतीजों में राजे के गृह जिले धौलपुर की चारों सीटों पर भाजपा को हार मिली है। इसी प्रकार उनके पुत्र दुष्यंत सिंह के संसदीय वाले झालावाड़ की चार सीटों में से सिर्फ एक सीट पर भाजपा की जीत हुई है। यह सीट भी स्वयं राजे की है। अभी तक भाजपा संगठन से जुड़े किसी भी नेता ने मुख्यमंत्री के पद पर दावेदारी नहीं जताई है। यह अच्छी बात है कि भाजपा संगठन से जुड़े नेताओं ने किसी भी स्तर पर कोई दावा नहीं किया है। मुख्यमंत्री पद के लिए नाम तो रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का भी चल रहा है। हो सकता है कि मोदी के जहन में कोई नया चेहरा हो। जहां तक राजेंद्र राठौड़ का सवाल है तो उन्हें भी सीएम दौड़ से बाहर नहीं माना जा सकता। राजनीति में रुचि रखने वालों को पता है कि उत्तराखंड में पुष्कर सिं धामी भी विधायक का चुनाव हार गए थे, लेकिन मोदी ने दखल देते हुए धामी को ही मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई। बाद में धामी ने उपचुनाव लड़कर विधायक का पद हासिल किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजेंद्र राठौड़ प्रदेश में भाजपा के दमदार नेता है। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व खासकर पीएम मोदी और अमित शाह ने जो कहा उसे राठौड़ ने स्वीकार किया। हो सकता है कि तारानगर से चुनाव हार जाने से राठौड़ का पक्ष कमजोर हुआ हो, लेकिन मोदी और शाह की नजर में राठौड़ के महत्व में कोई कमी नहीं आई है। मोदी और शाह उन नेताओं को हमेशा सम्मान देते हैं जो उनके सुझावों पर अमल करते हैं। पीएम मोदी को राजस्थान के हालातों के बारे में अच्छी तरह पता है, इसलिए वे उपयुक्त मुख्यमंत्री का ही चयन करेंगे। राजस्थान के जो नेता सीएम बनने की लालसा रखते हैं उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि मात्र पांच माह बाद लोकसभा चुनाव का सामना करना है। जब राजस्थान में कांग्रेस के पास 70 विधायक हैं, तब लोकसभा के चुनाव को आसान नहीं माना जाना चाहिए। यह सही है कि 2019 में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी भाजपा ने सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2019 और 2024 के हालातों में अंतर है। पीएम मोदी किसी भी चुनाव को आसान नहीं मानते हैं। नगर निगम से लेकर लोकसभा तक के चुनाव को गंभीरता से लिया जाता है। यदि पीएम मोदी मुख्यमंत्री का निर्णय लेते हैं तो राजस्थान में न केवल भाजपा को बल्कि आम जनता को भी फायदा होगा। 

S.P.MITTAL BLOGGER (04-12-2023)
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