Wednesday 16 October 2024

स्वायत्त शासन मंत्री खर्रा का कथन सही है तो यह राजस्थान की भाजपा सरकार के प्रशासनिक तंत्र की समझ पर सवाल उठता है।497 पार्षदों की नियुक्ति का आदेश वापस लेने का मामला।

13 अक्टूबर की रात को स्वायत्त शासन विभाग ने राजस्थान के 78 नगरीय निकायों में 497 पार्षदों का मनोनयन किया। लेकिन इस आदेश को मात्र चार घंटे में ही वापस ले लिया गया। खबरों में कहा गया कि पार्षदों की नियुक्ति पर संबंधित क्षेत्रों के विधायकों और भाजपा नेताओं ने ऐतराज जताया था, इसलिए सरकार को अपना आदेश वापस लेना पड़ा, लेकिन अब स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा का कहना है, आदेश में नगर पालिका और नगर परिषद की टाइपिंग मिस्टेक हो गई थी, इसलिए तकनीकी कारणों से आदेश को वापस लेना पड़ा है। खर्रा ने स्पष्ट किया कि नये आदेश में भी इन्हीं पार्षदों की नियुक्ति होगी। यदि खर्रा का यह कथन सही है तो फिर भाजपा सरकार के प्रशासनिक तंत्र की समझ पर सवाल उठता है। स्वायत्त शासन विभाग में ऐसे अधिकारी और कार्मिक बैठे हैं जिन्हें नगर पालिका और नगर परिषद का अंतर समझ में नहीं आता। यह सही है कि पिछले कांग्रेस शासन में नए जिलों के गठन के बाद ग्राम पंचायत को नगर पालिका और नगर पालिका को नगर परिषद में क्रमोन्नत किया गया, लेकिन प्रदेश में भाजपा सरकार का गठन हुए 10 माह हो गए। ऐसे में अधिकारियों को स्थानीय निकायों के बारे में जानकारी होनी ही चाहिए। यदि नगर पालिका और नगर परिषद का अंतर समझ में नहीं आता तो फिर ऐसे अधिकारियों और कार्मिकों को नौकरी करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। मंत्री खर्रा माने या नहीं , लेकिन नियुक्ति आदेश वापस लेने से भाजपा सरकार की भी फजीहत हुई है। इससे पहले भी सरकारी वकीलों की नियुक्ति का आदेश भी सरकार को वापस लेना पड़ा था। इससे सरकार और प्रशासनिक तंत्र की गंभीरता पर भी प्रश्न चिह्न लगता है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (15-10-2024)
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