विधानसभा में भाजपा विधायक दल के उपनेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने 1 दिसंबर को हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर कांग्रेस के 91 विधायकों के सामूहिक इस्तीफे के मामले में दखल देने की मांग की है। राठौड़ की इस याचिका से सत्तारूढ़ कांग्रेस की राजनीति में एक बार फिर गर्मी आ गई है। याचिका में राठौड़ ने बताया है कि गत 25 सितंबर को कांग्रेस के 91 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी के समक्ष उपस्थित होकर अपने इस्तीफे दे दिए। लेकिन इन इस्तीफों पर दो माह गुजर जाने के बाद भी विधानसभा अध्यक्ष ने कोई निर्णय नहीं लिया है। इससे संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन हो रहा है। 91 विधायकों में अधिकांश मंत्री भी शामिल हैं। इस्तीफा देने के बाद भी विधायक और मंत्री सरकार की सभी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। याचिका में बताया गया है कि भाजपा के विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने विधानसभा अध्यक्ष जोशी से मिलकर इस्तीफे स्वीकारने की मांग की थी। लेकिन इसके बाद भी जोशी की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया। याचिका में कहा गया कि 91 विधायकों के इस्तीफे से राजस्थान में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से गत 25 सितंबर को कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई थी। लेकिन इस बैठक में उपस्थित होने के बजाए कांग्रेस विधायक नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल के निवास पर एकत्रित हुए और फिर विधानसभा अध्यक्ष के घर जाकर इस्तीफा दे दिया। ये सभी विधायक सीएम अशोक गहलोत के समर्थक हैं। इन विधायकों को आशंका थी कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने जो बैठक बुलाई है उसमें अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया जाएगा।
क्या कोर्ट दखल दे सकता है:
राजेंद्र राठौड़ ने जो जनहित याचिका दायर की है उसके बाद सवाल उठता है कि क्या हाईकोर्ट विधानसभा अध्यक्ष के काम में दखल दे सकता है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 212 में विधानसभा अध्यक्ष को विशेषाधिकार है कि वे चाहे जब निर्णय ले। अध्यक्ष को निर्णय लेने के लिए कोई बाध्य नहीं कर सकता है। समय समय पर ऐसे कई उदाहरण है जिनमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्षों को निर्देश दिए हैं। इसका ताजा उदाहरण राजस्थान में जुलाई 2020 में हुए राजनीतिक संकट के समय का है। तब कांग्रेस विधायक दल की बैठक में उपस्थित नहीं होने पर सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने नोटिस जारी किया था। यह नोटिस दल बदल विधेयक कानून के अंतर्गत दिया गया। इससे इन 19 विधायकों की विधानसभा की सदस्यता रद्द होने की आशंका हो गई थी। राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी कोई निर्णय लेते इससे पहले ही कोर्ट ने ऐसे नोटिसों रोक लगा दी। यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों भाजपा का प्रतिनिधि मंडल जब डॉ. सीपी जोशी से मिला था, तब उन्होंने कहा था कि कांग्रेस विधायकों के मामले में वे ऐसा फैसला देंगे जो संसदीय इतिहास में मिसाल बनेगा। लेकिन इसके बाद भी विधायकों के इस्तीफे के मामले में डॉ. जोशी की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया। यदि 91 विधायकों का इस्तीफा स्वीकार हो जाता है तो राजस्थान में कांग्रेस सरकार पर संकट खड़ा हो जाएगा। भाजपा नेताओं का आरोप है कि विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफे पर निर्णय न लेकर अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखना चाहते हैं। जानकारों की मानें तो राठौड़ की जनहित याचिका के बाद सीएम अशोक गहलोत विधानसभा में विश्वास मत प्रस्ताव प्रस्तुत कर अपना बहुमत साबित कर सकते हैं। इसे इस्तीफे वाला विवाद अपने आप खत्म हो जाएगा।
क्या कोर्ट दखल दे सकता है:
राजेंद्र राठौड़ ने जो जनहित याचिका दायर की है उसके बाद सवाल उठता है कि क्या हाईकोर्ट विधानसभा अध्यक्ष के काम में दखल दे सकता है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 212 में विधानसभा अध्यक्ष को विशेषाधिकार है कि वे चाहे जब निर्णय ले। अध्यक्ष को निर्णय लेने के लिए कोई बाध्य नहीं कर सकता है। समय समय पर ऐसे कई उदाहरण है जिनमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्षों को निर्देश दिए हैं। इसका ताजा उदाहरण राजस्थान में जुलाई 2020 में हुए राजनीतिक संकट के समय का है। तब कांग्रेस विधायक दल की बैठक में उपस्थित नहीं होने पर सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने नोटिस जारी किया था। यह नोटिस दल बदल विधेयक कानून के अंतर्गत दिया गया। इससे इन 19 विधायकों की विधानसभा की सदस्यता रद्द होने की आशंका हो गई थी। राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी कोई निर्णय लेते इससे पहले ही कोर्ट ने ऐसे नोटिसों रोक लगा दी। यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों भाजपा का प्रतिनिधि मंडल जब डॉ. सीपी जोशी से मिला था, तब उन्होंने कहा था कि कांग्रेस विधायकों के मामले में वे ऐसा फैसला देंगे जो संसदीय इतिहास में मिसाल बनेगा। लेकिन इसके बाद भी विधायकों के इस्तीफे के मामले में डॉ. जोशी की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया। यदि 91 विधायकों का इस्तीफा स्वीकार हो जाता है तो राजस्थान में कांग्रेस सरकार पर संकट खड़ा हो जाएगा। भाजपा नेताओं का आरोप है कि विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफे पर निर्णय न लेकर अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखना चाहते हैं। जानकारों की मानें तो राठौड़ की जनहित याचिका के बाद सीएम अशोक गहलोत विधानसभा में विश्वास मत प्रस्ताव प्रस्तुत कर अपना बहुमत साबित कर सकते हैं। इसे इस्तीफे वाला विवाद अपने आप खत्म हो जाएगा।
S.P.MITTAL BLOGGER (01-12-2022)
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