मद्रास उच्च न्यायालय के जस्टिस जी आर स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया है कि जिस व्यक्ति ने अपनी जाति का त्याग कर मुस्लिम धर्म स्वीकार किया है, उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। हिन्दू धर्म से जुड़े एक व्यक्ति ने 2018 में अपनी पिछड़ी जाति का त्याग कर मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया। अब जब इस व्यक्ति ने नौकरी के लिए आवेदन किया तो अपनी पिछड़ी जाति के तहत आरक्षण का लाभ देने की मांग की। जब तमिलनाडु सरकार ने आरक्षण का लाभ देने से इंकार कर दिया तो हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि जब पिछड़े वर्ग की जाति को ही त्याग दिया है तो समाज में भेदभाव वाली बात नहीं रही है। कोई भी व्यक्ति दूसरे धर्म में परिवर्तित होने के बाद अपनी पुरानी जाति के आधार पर आरक्षण की मांग नहीं कर सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला धर्म परिवर्तन के मामलों में दूरगामी परिणाम वाला साबित होगा। अक्सर यह आरोप लगता है कि पिछड़ी जाति के लोग लालच या अन्य किसी कारण से मुस्लिम, ईसाई धर्म स्वीकार कर लेते हैं। कई बार ऐसे धर्म परिवर्तन के मामलों में साम्प्रदायिक तनाव भी हो जाता है। लेकिन अब जब मद्रास हाईकोर्ट ने धर्म बदलने वाले व्यक्ति को आरक्षण के लाभ से अलग कर दिया, तब धर्म परिवर्तन के मामलों में कमी आएगी। पिछड़े वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारने में आरक्षण के लाभ की महत्वपूर्ण भूमिका है। पिछड़े वर्ग के परिवार के जब किसी सदस्य को आरक्षित कोटे में सरकारी नौकरी मिलती है, जब पूरे परिवार को लाभ मिलता है। आरक्षण की वजह से परिवार के दो तीन सदस्यों को भी नौकरी मिल जाती है। सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए भी आरक्षण का लाभ दिया जाता है। लोकतांत्रिक प्रणाली में भी ग्राम पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों को भी आरक्षित किया जाता है। यानी आरक्षित वर्ग का व्यक्ति ही सरपंच, विधायक और सांसद बनेगा। धर्म परिवर्तन के बाद परिवर्तित हुए व्यक्ति को राजनीति में भी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
S.P.MITTAL BLOGGER (04-12-2022)
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