9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में सीमा पर चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प के बाद भारत में विपक्षी दलों के नेता केंद्र की मोदी सरकार पर हमलावर हैं। 13 दिसंबर को इस मामले को संसद में भी उठाने का प्रयास किया गया। सीमा पर चीनी सैनिकों को जवाब देने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह समक्ष है। ढाई वर्ष पहले लद्दाख सीमा पर गलवान घाटी में चीनी सेना ने जो हरकत की उसका भी हमारे सैनिकों ने करारा जवाब दिया। तवांग सेक्टर में हुई झड़प को लेकर जो विपक्षी दल हाथ तौबा मचा रहे हैं, उन्हें चीन की गुंडाई को भी समझना होगा। चीन अपनी विस्तारवादी रवैये के कारण भारत पर दबाव बनाने का प्रयास करता रहता है। असल में चीन में तानाशाही है। वहां न तो लोकतंत्र हैं और न विपक्ष। जो चीन नागरिक तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाता है उसे गोली मार दी जाती है या फिर सडऩे के लिए जेल में डाल दिया जाता है। चीन की तानाशाही के मुकाबले में भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध करने वालों की कितनी मौज है, यह सब जानते हैं। चीन में यह जानने का अधिकार नहीं है कि गलवान घाटी या तवांग सेंटर में चीन की सेना को भारत से कितना नुकसान हुआ? तानाशाही करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी से भी सवाल पूछने की हिम्मत किसी में भी नहीं है। भारत में तो विपक्ष के हर सवाल का जवाब भी दिया जाता है। लेकिन इसके बाद भी विपक्ष संतुष्ट नहीं होता है। विपक्ष को अपनी सेना पर भी भरोसा नहीं है। तवांग सेक्टर में हुई झड़प पर सेना ने अपना बयान जारी कर दिया है, लेकिन इसके बाद भी विपक्ष सवाल उठा रहा है। लोकतंत्र में विपक्ष को सवाल पूछने का अधिकार है, लेकिन ऐसे सवाल तब भी पूछे जाने चाहिए, जब झिंगझियांग प्रांत में चीनी सेना मुसलमानों पर अत्याचार करती है। यहां तक कि मस्जिदों में नमाज भी नहीं पढ़ने दी जाती। मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार करने की खबरें आती रहती हैं। लेकिन भारत के अधिकांश विपक्षी दल चुप रहते हैं। लेकिन जब चीन की सेना सीमा पर भारत विरोधी हरकत करती हैं, तब विपक्षी दलों के नेता मीडिया और सड़कों पर आ जाते हैं। सरकार और सेना से ऐसे सवाल पूछे जाते हैं जिनका जवाब देशहित में नहीं दिया जा सकता। सब जानते हैं कि हमारी सेना चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को करारा जवाब देती है, लेकिन फिर भी सेना की भूमिका पर सवाल उठाए जाते हैं। चीन भी यह समझता है कि सीमा पर झड़प के बाद भारत में राजनीतिक तमाशा होगा, इससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि खराब होगी। कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे कुछ विपक्षी दल चीन से मिले हुए हैं। जब देशभक्ति दिखाने की जरुरत होती है, तब चीन के सामने अपने देश को कमजोर दिखाने का प्रयास किया जाता है। विपक्ष माने या नहीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की स्थिति बहुत मजबूत हुई है तथा भारत की सैन्य क्षमता में भी कई गुना वृद्धि हुई है। पहले हमारी सेना विदेशी हथियारों पर निर्भर रहती थी, लेकिन अब हम हथियारों का निर्यात भी करने लगे हैं। विपक्षी दलों को चीन के और भारत के लोकतांत्रिक रुख को भी देख लेना चाहिए।
S.P.MITTAL BLOGGER (13-12-2022)
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