Monday 16 August 2021

अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम राष्ट्र की सेना आखिर तालिबानियों से क्यों नहीं लड़ी? तालिबानी तो 75 हजार ही हैं, जबकि अफगानिस्तान की फौज तीन लाख 50 हजार की है।तो क्या मुस्लिम राष्ट्रों ने भी अफगानिस्तान के लोगों को ताबिलान के भरोसे छोड़ दिया है। 1997 में इसी तालिबान ने तब के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को मार कर शव को राष्ट्रपति भवन के सामने ही लटका दिया था, इसलिए मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ गनी पहले ही भाग गए।

राजधानी काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान पर मुस्लिम कट्टरपंथी सोच वाले संगठन तालिबान का कब्जा हो गया है। उम्मीद है कि तालिबान के प्रमुख नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति बन जाएंगे। अफगानिस्तान पर तालिबान का तब कब्जा हुआ है, जब अमरीका की फौज चली गई। अमेरिकी सेना के अधिकारियों का कहना था कि अब अफगानिस्तान की फौज इतनी समक्ष हो गई है कि तालिबान के लड़कों से लड़ सकती है, लेकिन पूरी दुनिया ने देखा कि तालिबान के सामने अफगानी फौज ने चुपचाप सरेंडर तक कर दिया। तालिबानी लड़ाकों को कहीं भी सेना के साथ संघर्ष नहीं करना पड़ा। सवाल उठता है कि क्या एक मुस्लिम राष्ट्र की सेना इतनी कमजोर है कि कुछ हजार लड़ाकों से मुकाबला नहीं कर सकी? दुनियाभर में मुस्लिम राष्ट्र देखते रह गए और कट्टरपंथी सोच वाले तालिबान का कब्जा उस अफगानिस्तान पर हो गया, जिसकी सीमा भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस देशों से लगती है। अफगान राष्ट्रपति अब्दुल गनी को पहले ही देश छोड़ कर भाग गए। असल में गनी को पता था कि यदि वे तालिबानियों के हाथ आए तो उन्हें भी मार कर राष्ट्रपति भवन के सामने लटका दिया जाएगा। ऐसा कृत्य तालिबान 1997 में तब कर चुके हैं जब नजीबुल्लाह राष्ट्रपति थे। तब भी सोवियत रूस को भगाकर तालिबानियों ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था। इस बार तालिबानियों ने अमरीका जैसे शक्तिशाली देश को भगाया है। इस बार तालिबानी ज्यादा ताकतवर हैं, लेकिन कब्जे के बाद तालिबानियों ने फरमान जारी कर दिया है कि अब अफगानिस्तान में शरीया कानून के तहत शासन चलेगा। जिस मुस्लिम राष्ट्रों में महिलाएं स्वतंत्रता के साथ रह रही है, वे राष्ट्र भी तालिबान की सोच के सामने चुप हैं। सब जानते हैं कि तालिबानी सोच सुन्नी मुसलमानों के बीच से ही निकली है और दुनियाभर में सुन्नी मुसलमानों का वर्चस्व हे। अमरीका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अमरीका ने वर्ष 2001 में अफगानिस्तान से तालिबानियों को खदेड़ा था और तभी से अमरीका अफगानिस्तान में फंसा हुआ था। पिछले 20 वर्षों में अमरीका को अफगानिस्तान में भारी कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन फिर भी आतंकवाद पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका। इसलिए अमरीका अफगानिस्तान के मुसलमानों को तालिबानियों के भरोसे छोड़ कर भाग गया। वर्ष 2018 से ही अमरीका भागने की फिराक में था, इसलिए तालिबान के नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को पहले पाकिस्तान की जेल से रिहा करवाया गया और फिर मु ला बरादर को तालिबान के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत किया गया। दोहा में अमरीका से लेकर भारत, चीन आदि देशों के प्रतिनिधियों ने मुल्ला बराकर से वार्ताएं की। चीन ने तो मुल्ला बरादर को वार्ता के लिए अपने देश में आमंत्रित किया। तालिबान के लड़ाकों में पाकिस्तानी भी शामिल हैं। अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा पाकिस्तान की शह पर ही हो रहा है। आज भले ही पाकिस्तान खुश हो, लेकिन पाकिस्तान में भी तालिबानी सोच वाले मुसलमान बड़ी संख्या में है। आज जो हालात अफगानिस्तान के हैं वो भविष्य में पाकिस्तान के भी होंगे। पाकिस्तानी फौज का भी वही हाल होगा जो अफगान फौज का हुआ है। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, अशोक गहलोत, असदुद्दीन ओवैसी, राहुल गांधी जैसे नेता माने या नहीं, लेकिन अफगानिस्तान की बिगड़ती स्थिति का असर भारत पर भी पड़ेगा। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को बहुत सतर्कता बरतने की जरूरत है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आधी आबादी मान कर महिलाओं को स्वतंत्रता दी जाती है। क्या भारत में कोई महिला तालिबानी सोच के साथ रह सकती है? उम्मीद की जानी चाहिए कि तालिबान महिलाओं के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाएगा। 
S.P.MITTAL BLOGGER (16-08-2021)
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