Wednesday 25 August 2021

अजमेर और इंदौर की घटनाओं के बहाने वामपंथी लेखकों का तालिबानी सोच को समर्थन।यह तो अच्छा हुआ कि अजमेर के राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। अन्यथा इंदौर की घटना के लिए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता।

राजस्थान के अजमेर और मध्यप्रदेश के इंदौर में मुस्लिम युवकों के साथ मारपीट की घटनाओं को वामपंथी लेखकों और पत्रकारों ने तालिबान की सोच के साथ जोड़ दिया है। ऐसे लेखकों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि हम तालिबान की ज्यादतियों पर तो चिंता जताते हैं, लेकिन हमारे यहां अजमेर और इंदौर की घटनाओं पर ध्यान नहीं देते। ऐसे वामपंथियों ने अजमेर और इंदौर की घटनाओं को भी नफरत की सोच बताया। समझ में नहीं आता कि वामपंथी सोच वाले लेखक और पत्रकार अपनी हरकतों से बाज क्यों नहीं आते हैं। पूरी दुनिया देख रही है कि हमारी वायुसेना अफगानिस्तान से सिर्फ भारतीयों को ही नहीं निकाल रही बल्कि अफगानी मुसलमानों खासकर महिलाओं को भी लाया जा रहा है। जो अफगानी हमारे विमानों से दिल्ली एयरपोर्ट पर आ गए वो स्वयं को सुरक्षित समझ रहे हैं। वामपंथी लेखकों और उन्हीं की सोच वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को समझना चाहिए कि यदि नफरत वाली बात होती तो अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह पर हजारों हिन्दू रोजाना जियारत के लिए नहीं जाते। दरगाह के खादिम भी मानते हैं कि सामान्य दिनों में मुसलमान से ज्यादा हिन्दू जायरीन जियारत के लिए आते हैं। यदि नफरत वाली बात होती तो ख्वाजा साहब की दरगाह के आसपास हिन्दू दुकानदार दुकान खोलने से पहले चाबियां दरगाह की सीढिय़ों पर नहीं रखते। जो वामपंथी सोच वाले मानते हैं कि हिन्दुओं के मन में मुसलमानों के प्रति नफरत है, इसलिए अजमेर और इंदौर की घटनाएं हुई हैं, उन्हें अफगानिस्तान से आ रहे मुसलमानों से मिलना चाहिए। यदि फिर भी समझ में नहीं आए तो अजमेर आकर दरगाह में हिन्दुओं की हकीकत देखनी चाहिए। कोई मुसलमान बांधे या नहीं लेकिन ख्वाजा साहब की मजार पर रखे हुए लच्छे को हिन्दू जायरीन पूरी श्रद्धा के साथ गले में पहनता है। वामपंथी सोच के लोग शुरू से ही देश में षडय़ंत्र करते आए हैं। अजमेर और इंदौर की घटनाएं नफरत की नहीं बल्कि सामान्य आपराधिक घटनाएं हैं। वामपंथी सोच वाले यह समझ लें कि अजमेर में किसी भी मुसलमान को भीख मांगने की जरुरत नहीं है। जो लोग दरगाह जियारत के अजमेर आए हैं, उन्हें पता है कि दरगाह के बाहर हो होटल, रेस्टोरेंट हैं, उन पर भोजन के कूपन मिलते हैं। जियारत के लिए आया व्यक्ति गरीबों को नि:शुल्क भोजन करवाता है। कूपन प्राप्त करने वाले गरीब मुसलमान ही नहीं बल्कि हिन्दू भी होते हैं। चूंकि ऐसे कूपन दिन भर बंटते हैं, इसलिए एक व्यक्ति कई कूपन एकत्रित कर लेता है। यदि कोई मुसलमान गरीब है तो उसे दरगाह से 6 किलोमीटर दूर सुभाष नगर की किसी कॉलोनी में भीख मांगने की जरुरत नहीं है। बाहर से आकर यदि कोई मुसलमान अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह को छोड़कर किसी कॉलोनी में भीख मांगता है तो यह जांच का विषय है। इसी प्रकार इंदौर में किसी मुसमान के चूड़ी बेचने पर एतराज नहीं है। मिनी मुंबई माने माने वाले इंदौर में बड़ी संख्या में मुसलमान बिना भय के अपना कारोबार कर रहे हैं, जो घटना हुई, उसमें पाया गया कि मुस्लिम युवक हिन्दू नाम रखकर चूडिय़ां बेच रहे थे। इसी पर कुछ लोगों ने मारपीट की। यह सही है कि किसी को भी कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए। लेकिन ऐसी सामान्य आपराधिक घटनाओं को नफरत से जोड़ना गलत है। नफरत की सोचे से देश का माहौल खराब होता है। यह तो अच्छा हुआ कि अजमेर राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार चल रही है, नहीं तो शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के इंदौर वाली घटना के लिए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता। आमतौर पर भारत में हिन्दू और मुसलमान सद्भावना के साथ रह रहे हैं, लेकिन यह सद्भावना वामपंथी सोच वालों को सुहाती नहीं है, इसलिए षडय़ंत्र के तहत अजमेर और इंदौर की घटनाओं को नफरत से जोड़ देते हैं। देश को ऐसी सोच से सावधान रहना चाहिए। 
S.P.MITTAL BLOGGER (25-08-2021)
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