4 नवंबर को जब केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर पांच रुपए और डीजल पर 10 रुपये एक्साइज ड्यूटी कम करने की घोषणा की तो उम्मीद जताई गई कि कांग्रेस शासित राजस्थान में भी वेट के प्रतिशत में कमी की जाएगी। ऐसी उम्मीद इसलिए भी थी कि धरियावद और वल्लभनगर के उपचुनावों में भाजपा के खिलाफ पेट्रोल डीजल मूल्यवृद्धि का मुद्दा भी पुरजोर तरीके से उठाया गया था। इन दोनों उपचुनावों में कांग्रेस की जीत हुई है। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा एक्साइज ड्यूटी में कमी करने को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वेट को लेकर जो तर्क दिया है, वह आम जनता के गले नहीं उतर रहा है। गहलोत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालकर कहा है कि पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम होने से राज्य सरकार को प्रतिवर्ष एक हजार 800 करोड़ रुपए के राजस्व की कमी होगी। गहलोत ने कहा कि एक्साइज ड्यूटी घटाने से वैट अपने आप कम हो जाता है। गहलोत का यह तर्क कितना उचित है, यह अर्थशास्त्री बताएंगे, लेकिन आम जनता का यह कहना है कि जब एक्साइज ड्यूटी कम हुई है तो राज्य सरकार को भी वैट कम करना चाहिए। देश में राजस्थान ऐसा प्रदेश है, जहां सबसे ज्यादा वैट वसूला जाता है। राजस्थान में पेट्रोल पर 36 प्रतिशत और डीजल पर 26 प्रतिशत वैट की वसूली राज्य सरकार करती है। देश के 14 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने एक्साइज ड्यूटी कम होने के साथ ही अपने अपने प्रदेश का वैट भी कम कर दिया। किसी भी मुख्यमंत्री ने अशोक गहलोत की तरह राजस्व में कमी का तर्क नहीं दिया। सवाल उठता है कि जब पेट्रोल डीजल की वृद्धि के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाता है, तब राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी को क्यों नहीं निभाती। सीएम गहलोत ने राजस्व में घाटे का जो तर्क दिया है, ऐसा रोना तो पेट्रोल पंप के डीलर भी रो सकते हैं। जब पेट्रोल डीजल सस्ता होगा तो उनके लाभ में भी कमी होगी। सवाल यह भी है कि जब पेट्रोल डीजल महंगा होता है, तब सरकारें भी मुनाफा कमाती हैं। सीएम गहलोत ने जो तर्क दिया है, उससे तो ऐसा लगता है कि वे पेट्रोल डीजल के सस्ता होने से खुश नहीं हैं। अच्छा होता कि अन्य राज्यों की तरह सीएम गहलोत भी राजस्थान में वैट के प्रतिशत में कमी करते। यदि वेट के प्रतिशत में कमी होती है तभी आम जनता को राहत मिलेगी। पूर्व में सीएम गहलोत ने ही 2 प्रतिशत वेट घटाया था। इस बार भी गहलोत को वैट के प्रतिशत में कमी करनी चाहिए। जहां तक राजस्व के घाटे का सवाल है तो एक्साइज ड्यूटी कम करने से केंद्र सरकार को भी करोड़ों रुपए के राजस्व का घाटा हुआ। कोई भी लोकतांत्रिक सरकार यह नहीं कह सकती कि वह राजस्व में घाटे की वजह से आम जनता को राहत नहीं दे सकती है।
S.P.MITTAL BLOGGER (06-11-2021)
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