29 नवंबर को लोकसभा में जब सरकार की ओर से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया हो रही थी, तब कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने जमकर हंगामा किया। इससे कानून वापसी के समय लोकसभा में चर्चा नहीं हो सकी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बार बार कहा कि वे कानून वापसी के प्रस्ताव पर चर्चा करना चाहते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी विपक्षी दलों के सांसद जोर जोर से चिल्लाते रहे। सवाल उठता है कि कृषि कानूनों की वापसी के समय विपक्षी सांसदों ने हंगामा क्यों किया? विपक्षी दलों की इस राजनीति को किसानों को समझना चाहिए। आखिर कौन लोग हैं जो किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अपने स्वार्थ पूरे कर रहे हैं। पिछले एक वर्ष से मांग की जा रही थी कि सरकार कृषि कानूनों को वापस लें, लेकिन जब कानूनों को वापस लेने का प्रस्ताव रखा गया तो विपक्षी सांसदों ने हंगामा किया। देश को यह जानने का अधिकार है कि सरकार ने किन कारणों से कानूनों को वापस लिया। लेकिन विपक्षी दल के सांसद देशवासियों को अपने अधिकारों से वंचित कर रहे हैं। पिछले दिनों जब गुरु नानक देव जी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी, तब दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के नेताओं ने कहा कि संसद में कानून वापसी के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा। ऐसे नेताओं का कहना रहा कि हमें प्रधानमंत्री की घोषणा पर भरोसा नहीं है। किसानों के नेताओं ने कुछ भी कहा हो, लेकिन सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही कृषि कानूनों को वापस लेने का प्रस्ताव रख दिया। सांसदों के हंगामे के बीच लोकसभा में कानून वापसी का प्रस्ताव मंजूर भी हो गया। यानी प्रधानमंत्री ने जो घोषणा की थी उस पर सरकार ने अमल कर दिया है। दिल्ली की सीमाओं पर जो किसान अभी भी जाम लगा कर बैठे हैं, वे माने या नहीं लेकिन कुछ लोग किसानों की आड़ में राजनीति कर रहे हैं। सब जानते हैं कि एक वर्ष पहले जब कृषि कानूनों को संसद में मंजूर किया गया, तब भी सांसदों ने हंगामा किया था। इसलिए मंजूरी के समय भी चर्चा नहीं हो सकी और अब जब कानून को वापस लिया जा रहा है, तब भी विपक्ष ने चर्चा नहीं होने दी है। असल में विपक्षी दलों का मकसद किसानों की मदद करना नहीं है। विपक्षी दलों का मकसद किसानों की आड़ में अपनी राजनीति करना है। सवाल यह भी है कि जब संसद से कृषि कानून रद्द हो गए हैं, तब दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन क्यों किया जा रहा है। देश का आम किसान और नागरिक अब आंदोलन को चलाने वालों के बारे में अच्छी तरह समझ गया है।
S.P.MITTAL BLOGGER (29-11-2021)
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