12 दिसंबर को जयपुर में कांग्रेस की राष्ट्रीय रैली में राहुल गांधी ने हिन्दू और हिंदुत्ववादियों की पहचान अलग अलग बताई। राहुल ने स्वयं को हिन्दू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिन्दुत्ववादी बताया। साथ ही यह भी कहा कि हिन्दुत्ववादी सत्ता के भूखे हैं। राहुल गांधी राजनीतिक नजरिए से हिंदुत्ववादियों की तुलना किन किन से की उसे देश के लोगों ने सुना है। असल में राहुल गांधी को समझना होगा कि हिंदुत्व किधर खड़ा है। बार बार नाथूराम गोडसे के नाम को आगे रखकर हिन्दुत्व को कटघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता। 12 दिसंबर को राहुल गांधी जयपुर में हिन्दू और हिंदुत्व वादियों के बीच अंतर किया तो 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर के भव्य कॉरिडोर का लोकार्पण किया। इस मौके पर देश भर के दो हजार साधु संत मोदी को आशीर्वाद देने के लिए भोले बाबा की नगरी में उपस्थित रहे। इनमें देश के प्रमुख धर्माचार्य और विभिन्न धार्मिक पीठों के आचार्य शामिल थे। इन्हीं धर्माचार्यों ने 15 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में हिन्दू एकता का महाकुंभ आयोजित किया गया। साधु संतों और धर्मगुरुओं का यह महाकुंभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के सान्निध्य में हुआ। मैं यहां राजस्थान के सलेमाबाद स्थित निम्बार्क पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य श्याम शरण महाराज के संबोधन का उल्लेख कर रहा हंू। आचार्य का कहना रहा कि देश में कुछ लोग हिन्दू एकता को विभाजित करने की साजिश कर रहे हैं, लेकिन आज चित्रकूट धाम में यह महाकुंभ बताता है कि हिंदू एकता में दरार नहीं डाली जा सकती है। आचार्य श्री का संक्षिप्त संबोधन का वीडियो मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर सुना जा सकता है। जब एक आचार्य की ऐसी भावना है तो फिर पूरे महाकुंभ की भावना का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस महाकुंभ में पूज्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य, अनंत विभूषित रामभद्राचार्य महाराज, जगतगुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद महाराज, जगतगुरु रामानुजाचार्य चिन्ना जीयर स्वामी महाराज, गुरु शरणानंद महाराज, रविशंकर महाराज, ज्ञानानंद महाराज, चिदानंद मुनि महाराज, दीदी मां सहित देश के हजारों महामंडलेश्वर, संत, महंत आदि उपस्थित रहे। सवाल उठता है कि क्या ये सभी धर्मगुरु राहुल गांधी की सोच वाले हिन्दुत्ववादी हैं? राहुल गांधी माने या नहीं, लेकिन भारत की सनातन संस्कृति में विश्वास रखने वाले करोड़ों हिन्दू, इन्हीं धर्माचार्यों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। जिधर ये धर्माचार्य खडे हैं, उधर ही हिंदुत्व है। जब ये धर्माचार्य हिन्दू और हिंदुत्व में कोई अंतर नहीं करते तो फिर राहुल गांधी के अंतर के क्या मायने हैं? राहुल गांधी की सोच कुछ भी हो, लेकिन हिन्दुत्व ही ऐसी संस्कृति है, जिसमें सभी धर्मों का सम्मान है। दुनिया में कुछ धर्म तो ऐसे हैं जो स्वयं को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और ऐसे धर्म में दूसरे धर्म के सम्मान की कोई शिक्षा नहीं है।
S.P.MITTAL BLOGGER (17-12-2021)
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