17 दिसंबर को लोकसभा में जब विपक्षी दलों के सांसद लगातार हंगामा कर रहे थे, तब ऐसा लगा की अब लोकसभा की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया जाएगा। यानी उत्तेजित सांसदगण माइक तोड़ेंगे और कुर्सी मेज आदि सामान को उखाड़ेंगे। इस स्थिति को देखते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को कहना पड़ा कि यदि सदन की संपत्ति को क्षति पहुंचाई गई तो सदस्य व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार होंगे। अध्यक्ष ओम बिरला की यह चेतावनी भारतीय लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली है। सब जानते हैं कि एक सांसद 20-20 लाख मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। सवाल उठता है कि यह सांसद हैं या तोडफ़ोड़ करने वाले हुड़दंगी। ओम बिरला ने जिस अंदाज में चेतावनी दी ऐसी चेतावनी कोई थानेदार सड़क छाप हुड़दंगियों के बीच देता है। हम कई बार न्यूज चैनलों पर देखते हैं कि अपराधी तत्व जब उपद्रव करते हैं तब पुलिस का थानेदार माइक पर ऐसी ही चेतावनी देता है। थानेदार तो हुड़दंगियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करने की बात भी कहता है। 17 दिसंबर को ओम बिरला ने लोकसभा के सांसदों पर कानूनी कार्यवाही करने की बात तो नहीं कही, लेकिन उनका अंदाज किसी थानेदार से कम नहीं था। ओम बिरला को माना जाता है कि वे विधायी कार्यों के रिकॉर्ड बना रहे हैं, लेकिन 17 दिसंबर को ओम बिरला अपने ही सदस्यों के सामने बेबस और लाचार नजर आए। यह माना कि संसद के दोनों सदनों में सरकार को बहुमत प्राप्त है, इसलिए सरकार को जिन प्रस्तावों को स्वीकृत करवाना होता है, वह विपक्ष के हंगामे के बाद भी हो जाता है। यानी इस हंगामे से सरकार के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। लेकिन इस हंगामे की वजह से देश की जनता को नुकसान हो रहा है। कई ऐसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर संसद में बहस होनी चाहिए। सरकार कोई प्रस्ताव लाती है तो उस पर बहस होना जरूरी है ताकि जनता यह जान सके कि इस प्रस्ताव के फायदे और नुकसान क्या हैं? लोकतंत्र में विपक्ष की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। विपक्ष का काम सरकार की कमियों को उजागर करना होता है। लेकिन यदि विपक्ष सरकार के प्रस्तावों को पर बहस ही नहीं करेगा तो फिर विपक्ष की भूमिका का क्या होगा? विपक्ष के राजनीतिक दल माने या नहीं लेकिन बिना बहस के जो कानून बनाए जा रहे हैं, इससे देश का नुकसान ही है। कांग्रेस सहित विपक्षी दल महंगाई के मुद्दे पर सड़कों पर प्रदर्शन तो करते हैं, लेकिन जब सरकार महंगाई पर सदन में चर्चा करवाना चाहती है तो विपक्षी सांसद ऐसी चर्चा में भाग नहीं लेते हैं। जिस तरह संसद के दोनों सदनों में हंगामा हो रहा है, उससे भारतीय लोकतंत्र को लेकर भी अनेक सवाल उठ रहे हैं। अच्छा हो कि विपक्षी सांसद सदन की कार्यवाही में भाग ले और जनहित के मुद्दों को संसद में उठाएं। यदि सांसद अपने क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति वफादार है तो उन्हें सदन में एक सच्चे जनप्रतिनिधि की भूमिका निभानी चाहिए। जनता ने सांसदों को हुड़दंग करने के लिए नहीं बल्कि देश में अच्छे कानून बनाने के लिए चुना है।
S.P.MITTAL BLOGGER (18-12-2021)
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