इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेकर एक अगस्त को दो महत्वपूर्ण बात हुई। ये दोनों बातें सीएम गहलोत के लिए व्यक्तिगत हैं। गहलोत ने दिल्ली की विशेष अदालत (जिला न्यायालय) में एक याचिका दायर कर निचली अदालत के उस समन पर रोक लगाने का आग्रह किया, जिसमें उन्हें 7 अगस्त को उपस्थित होने के लिए कहा गया है। यह समन गहलोत को केंद्रीय मंत्री और जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत की मानहानि के मुकदमे पर जारी हुआ है। इस समन पर रोक के लिए गहलोत ने स्पेशल कोर्ट में रिवीजन याचिका दायर की थी। अदालत ने कहा कि गहलोत उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं। स्पेशल अदालत के इस आदेश के बाद देखना होगा कि गहलोत व्हीलचेयर पर बैठ कर अदालत में उपस्थित होते हैं या फिर वर्चुअल तकनीक से उपस्थित होते हैं। उधर दिल्ली से अदालती फरमान आया तो इधर जयपुर में शांति एवं अहिंसा विभगा के गांधी दर्शन ट्रेनी सम्मेलन को वर्चुअली संबोधित करते हुए गहलोत ने कहा कि उनके दोनों पैरों के अंगूठों में जो फेक्चर हुआ है उससे बहुत तकलीफ होती है। इलाज जारी है, लेकिन ठीक होने में अभी वक्त लगेगा। उल्लेखनीय है कि कोई 20 दिन पहले सीएमआर में ही लडख़ड़ाने से गहलोत के दोनों पैरों के अंगूठों में फेक्चर हो गया था, तभी से गहलोत सीएमआर में बैठ कर ही मुख्यमंत्री का दायित्व निभा रहे हैं। प्रदेश भर के लोगों से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए ही संवाद कर रहे हैं।
आरोपों से पीछे हट रहे हैं?
सब जानते हैं कि संजीवनी को-ऑपरेटिव सोसायटी के घोटाले को लेकर सीएम गहलोत ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर गंभीर आरोप लगाए। गहलोत ने कहा कि शेखावत ने जो पैसे हड़पे, उससे अफ्रीका के इथोपिया में खाने खरीदी गई हैं। गहलोत ने संजीवनी घोटाले में शेखावत के साथ साथ उनकी पत्नी और दिवंगत माता जी को भी आरोप बताया। गहलोत का कहना रहा कि संजीवनी घोटाला शेखावत की वजह से ही हुआ है। ऐसे आरोपों को लेकर ही शेखावत ने दिल्ली राउज एवेन्यू कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया। कोर्ट द्वारा जारी समन पर रोक लगाने के लिए गहलोत ने जिला न्यायालय में रिवीजन याचिका दायर की थी। इस याचिका में गहलोत की ओर से उनके वकील और राज्य के पूर्व महाधिवक्ता जीएस बाफना ने जो तर्क रखे, उससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि गहलोत अपने आरोपों से पीछे हट रहे हैं। शेखावत पर लगाए आरोपों को स्वीकारने के बजाए गहलोत की ओर से याचिका में कहा गया कि शेखावत के परिवाद में आपराधिक मानहानि के साक्ष्य नहीं है। केवल अखबार और टीवी की खबरों के आधार पर परिवाद दायर किया है जो मानहानि के लिए पर्याप्त नहीं है। सवाल उठता है कि अखबारों में छपे कथन और न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित बयान पर गहलोत की ओर से संदेह क्यों किया जा रहा है। क्या अखबारों और चैनलों पर गलत प्रसारित हुआ? यदि गलत था तो उसी समय खंडन क्यों नहीं किया गया? गहलोत की याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि संजीवनी घोटाले की जांच एजेंसी एसओजी की रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री ने बयान दिया है,इसलिए मानहानि का मुकदमा दर्ज करने से पहले राज्यपाल की अनुमति ली जानी चाहिए। यह तर्क भी अपने ही बयान से पीछे हटना जैसा है। सवाल उठता है कि गहलोत अपने कथन पर कायम क्यों नहीं है? यहां यह उल्लेखनीय है कि गहलोत के पास ही गृह विभाग और एसओजी सीधे अधीन आती है।
S.P.MITTAL BLOGGER (02-08-2023)
आरोपों से पीछे हट रहे हैं?
सब जानते हैं कि संजीवनी को-ऑपरेटिव सोसायटी के घोटाले को लेकर सीएम गहलोत ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर गंभीर आरोप लगाए। गहलोत ने कहा कि शेखावत ने जो पैसे हड़पे, उससे अफ्रीका के इथोपिया में खाने खरीदी गई हैं। गहलोत ने संजीवनी घोटाले में शेखावत के साथ साथ उनकी पत्नी और दिवंगत माता जी को भी आरोप बताया। गहलोत का कहना रहा कि संजीवनी घोटाला शेखावत की वजह से ही हुआ है। ऐसे आरोपों को लेकर ही शेखावत ने दिल्ली राउज एवेन्यू कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर किया। कोर्ट द्वारा जारी समन पर रोक लगाने के लिए गहलोत ने जिला न्यायालय में रिवीजन याचिका दायर की थी। इस याचिका में गहलोत की ओर से उनके वकील और राज्य के पूर्व महाधिवक्ता जीएस बाफना ने जो तर्क रखे, उससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि गहलोत अपने आरोपों से पीछे हट रहे हैं। शेखावत पर लगाए आरोपों को स्वीकारने के बजाए गहलोत की ओर से याचिका में कहा गया कि शेखावत के परिवाद में आपराधिक मानहानि के साक्ष्य नहीं है। केवल अखबार और टीवी की खबरों के आधार पर परिवाद दायर किया है जो मानहानि के लिए पर्याप्त नहीं है। सवाल उठता है कि अखबारों में छपे कथन और न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित बयान पर गहलोत की ओर से संदेह क्यों किया जा रहा है। क्या अखबारों और चैनलों पर गलत प्रसारित हुआ? यदि गलत था तो उसी समय खंडन क्यों नहीं किया गया? गहलोत की याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि संजीवनी घोटाले की जांच एजेंसी एसओजी की रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री ने बयान दिया है,इसलिए मानहानि का मुकदमा दर्ज करने से पहले राज्यपाल की अनुमति ली जानी चाहिए। यह तर्क भी अपने ही बयान से पीछे हटना जैसा है। सवाल उठता है कि गहलोत अपने कथन पर कायम क्यों नहीं है? यहां यह उल्लेखनीय है कि गहलोत के पास ही गृह विभाग और एसओजी सीधे अधीन आती है।
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