Wednesday 3 March 2021

राजनीति के दल दल में उलझा किसान आंदोलन। 6 मार्च को होंगे 100 दिन।पश्चिम बंगाल में किस दल को फायदा पहुंचाएंगे राकेश टिकैत?

कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर लगे जाम को 6 मार्च को 100 दिन पूरे हो रहे हैं। 100 दिन पूरे होने के उपलक्ष में किसान संयुक्त मोर्चा ने 15 मार्च तक के कार्यक्रमों की घोषणा की है। इसी के अंतर्गत 12 मार्च को किसानों की महापंचायत पश्चिम बंगाल में भी होगी। इस महापंचायत में आंदोलन अगुआ और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत भी भाग लेंगे। लेकिन सवाल उठता है कि बंगाल में किसान नेता किस दल को जीताने की अपील करेंगे? यह सवाल इसलिए उठा है कि राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में किसान नेता खुल कर कांग्रेस के साथ खड़े हैं। इन राज्यों में हुई किसान पंचायतों के मंचों पर कांग्रेस के सांसद, विधायक आदि जन प्रतिनिधि उपस्थित रहे। राजस्थान में तो किसान पंचायतों को सफल बनवाने में खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भूमिका निभाई। सब जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस, लेफ्ट और फुरफुरा शरीफ के इंडियन सैम्युलट फ्रंट का गठबंधन ममता बनर्जी को हराने में लगा हुआ है। जबकि किसान आंदोलन का समर्थन ममता बनर्जी ने भी किया था। क्या पश्चिम बंगाल में होने वाली किसानों की महापंचायतों के मंच पर कांग्रेस और लेफ्ट के नेता भी उपस्थित रहेंगे? क्या कांग्रेस और लेफ्ट सहयोग से होने वाली किसान पंचायतों को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी बर्दाश्त कर पाएगी? ममता को पहले ही भाजपा से कड़ा मुकाबला करना पड रहा है। ऐसे में किसान पंचायतें ममता बनर्जी को और नुकसान पहुंचाएगी। पश्चिम बंगाल में किसान नेता मंचों पर भले ही लेफ्ट और कांग्रेस के जन प्रतिनिधियों को बैठा लें, लेकिन केरल में और मुश्किल होगी, क्योंकि केरल में कांग्रेस वामपंथियों की सरकार को उखाडऩे में लगी हुई है। सब जानते हैं कि दिल्ली की सीमाओं पर लम्बे समय तक को बनाए रखने में कामरेडो की महत्वपूर्ण भूमिका है। कामरेड़ों को आंदोलनों को चलाने का लम्बा अनुभव है, इसलिए दिल्ली की सीमाओं पर धरने की रणनीति भी कामरेडो ने ही बनाई है, लेकिन केरल में राकेश टिकैत जैसे किसान नेता क्या करेंगे? यदि केरल की किसान पंचायतों के मंचों पर कांग्रेस के नेता मौजूद रहते हैं तो क्या लेफ्ट के नेता स्वीकार करेंगे? असल में किसान आंदोलन अब राजनीति के दल दल में उलझ गया है। यही वजह है कि दिल्ली की सीमाओं पर दिया जा रहे धरने में लोगों की संख्या लगतार कम हो रही है। राकेश टिकैत जैसे नेताओं ने धरना स्थल पर जाना ही छोड़ दिया है। टिकैत अब राजस्थान, हरियाणा आदि में सभाएं करने में व्यस्त हो गए हैं। अब तो पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में भी किसान नेता कूद पड़े हैं। हालांकि किसानों का आंदोलन कृषि कनूनों के विरोध में शुरू हुआ था, लेकिन अब यह आंदोलन राजनीति की भेंट चढ़ गया है। देखना होगा कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन का फायदा किस राजनीतिक दल को मिलता है। 
S.P.MITTAL BLOGGER (03-03-2021)
Website- www.spmittal.in
Facebook Page- www.facebook.com/SPMittalblog
Follow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11
Blog- spmittal.blogspot.com
To Add in WhatsApp Group- 9602016852
To Contact- 9829071511  

No comments:

Post a Comment