भाजपा में रह कर केन्द्रीय मंत्री तक रहने वाले राजनेता कलराज मिश्र अब राजस्थान के राज्यपाल हैं। राज्यपाल होने के नाते वे संविधान के संरक्षक हैं। राज्यपाल का दायित्व है कि वे यह देखें कि सरकार संविधान के अनुरूप काम करें। यानी राज्यपाल का पद संविधान के नियम कायदों से बंधा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कलराज मिश्र एक सरल व्यक्तित्व वाले नेता है। अपने इस सरल स्वभाव और सज्जनता के चलते ही एक जुलाई को अपने जीवन पर आधारित पुस्तक कलराज मिश्र निमित्त मात्र हंू मंै, के लोकार्पण पर कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस विधायक व राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सीपी जोशी को भी आमंत्रित किया। गहलोत और जोशी ने जिस अंदाज में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और खुद कलराज मिश्र पर कटाक्ष किए उससे अपने ही राजभवन में मिश्र को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। नरेन्द्र मोदी और कलराज मिश्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं, इसलिए संविधान की पालना करने को लेकर सवालिया निशान कांग्रेसियों ने लगा दिया। अशोक गहलोत और सीपी जोशी ने जिस अंदाज में अपनी बात रखी, उससे अब कलराज मिश्र को भी समझ में आ गया होगा कि वे कांग्रेस के नेताओं से सक्सेज पॉलिटिशियन या संविधान की रक्षा करने का सर्टिफिकेट नहीं ले सकते हैं। मिश्र को यह समझना चाहिए कि गहलोत और जोशी किस विचारधारा के नेता है। क्या ऐसे नेता नरेंद्र मोदी और कलराज मिश्र की प्रशंसा कर सकते हैं। यदि मिश्र को अपनी पुस्तक के लोकार्पण समारोह में तारीफ के वचन सुनने थे तो किसी विद्वान को बुलाना चाहिए था। विपरीत विचारधारा वाले लोगों को बुलाएंगे तो आलोचना ही सुनने को मिलेगी। ये वे ही अशोक गहलोत है जिन्होंने गत वर्ष राजनीतिक संकट के समय 100 विधायकों के साथ राजभवन में धरना दिया और राज्यपाल मिश्र को भाजपा का एजेंट बताया।
S.P.MITTAL BLOGGER (02-07-2021)
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