Tuesday 6 July 2021

सत्ता की मलाई चाटने के बाद भी जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी का इतना गुस्सा।पीएम मोदी और सचिन पायलट को कोसने की काबिलियत नहीं होती तो राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत तीन तीन यूनिवर्सिटीज का वाइस चांसलर नहीं बनाते।ईमानदार तो रिटायर आईएएस जीएस संधु भी हैं जो अब मात्र एक रुपए के मासिक वेतन में गहलोत सरकार के सलाहकार हैं।

इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिन्दी दैनिक जनसत्ता अखबार के पूर्व संपादक ओम थानवी इस बात से बेहद गुस्से में हैं कि राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ ने उनके सरकारी बंगले पर होने वाले 20 लाख रुपए की राशि पर ट्वीट किया है। इस ट्वीट के जवाब में थानवी का कहना है कि मैं जयपुर में अपने बेटे के अपार्टमेंट में रह रहा हंू। 20 लाख रुपए में से एक धेला भी खर्च नहीं किया गया है। जब नए सरकारी बंगले में जाऊंगा तो आपको (राजेन्द्र राठौड़) को बता दूंगा। आपके फोन नम्बर मेरे पास हैं। थानवी ने अपने गुस्से में यह माना कि उन्हें सुसज्जित बंगला उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। थानवी का यह गुस्सा समझ से परे हैं क्योंकि थानवी उन भाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हैं जो राजस्थान की तीन तीन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर है। कांग्रेस का कार्यकर्ता या कांग्रेस की विचारधारा वाला व्यक्ति भले ही एक मनोनीत पार्षद पद के लिए तरस रहा है, लेकिन ओम थानवी तीन यूनिवर्सिटी के वीसी हैं। क्या मेहरबानी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बगैर हो सकती है। राजेन्द्र राठौड़ ने थानवी की ईमानदार पर कोई शक नहीं किया है, लेकिन तीन तीन यूनिवर्सिटीज का वीसी होना अपने आप में सत्ता की मलाई चाटने जैसा है। पत्रकार होने के नाते गहलोत सरकार ने थानवी को सबसे पहले हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्व विद्यालय का कुलपति नियुक्त किया। इसके बाद स्किल डवलमपेंट यूनिवर्सिटी का अतिरिक्त चार्ज दे दिया गया। इतना ही नहीं गत वर्ष जब अजमेर स्थित एमडीएस यूनिवर्सिटी के वीसी का पद रिक्त हुआ तो थानवी को इस यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का भी दायित्व सौंप दिया। थानवी पिछले 10 माह से साढ़े तीन लाख विद्यार्थियों वाली एमडीएस यूनिवर्सिटी के वीसी का काम कर रहे हैं। यह बात अलग है कि जिस पत्रकारिता यूनिवर्सिटी के असली वीसी हैं, उसमें पिछले दो वर्षों से मुश्किल से 150 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया होगा। एमडीएस यूनिवर्सिटी का वीसी बनने के लिए 10 वर्ष के प्रोफेसर पद का अनुभव जरूरी है। जबकि थानवी तो मात्र बीकॉम पास है। यानी बीकॉम पास व्यक्ति साढ़े तीन लाख विद्यार्थियों और सैकड़ों शिक्षाविदों का भविष्य तय कर रहा है। ऐसा सिर्फ अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में ही हो सकता है। जब सवाल उठता है कि गहलोत सरकार ओम थानवी को इतना मेहरबान क्यों है? इसमें कोई दो राय नहीं कि पत्रकारिता के क्षेत्र में थानवी का नाम रोशन है। लेकिन थानवी की सबसे बड़ी काबिलियत यह है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचक हैं। ऐसा नहीं कि थानवी कांग्रेस के समर्थक हैं, लेकिन राजस्थान की राजनीति में गहलोत के प्रतिद्वंदी सचिन पायलट के विरोधी है। अब जब ओम थानवी मोदी और पायलट के विरोध में टिप्पणी करेंगे तो गहलोत सरकार की मेहरबानी तो होगी ही। सचिन पायलट चाहे कितना भी कहें कि कांग्रेस के संघर्षशील कार्यकर्ताओं को सम्मान नहीं मिल रहा है, लेकिन सीएम गहलोत से यह पूछने वाला कोई नहीं है कि ओम थानवी को तीन-तीन यूनिवर्सिटी का वीसी क्यों बना रखा है? थाने माने या नहीं, लेकिन उन्हें एंटी मोदी-पायलट एक्टिविस्ट होने का ही फायदा मिल रहा है। जहां तक ईमानदारी का सवाल है तो ईमानदार तो रिटायर आईएएस जीएस संधु भी हैं। भ्रष्टाचार के कथित आरोप में भले ही संधु गिरफ्तार हुए हो, लेकिन अब मात्र एक रुपए मासिक भत्ता पर गहलोत सरकार के सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं। बात रुपए पैसे की नहीं होती है। बात पद पर आसीन होने की है। एक बार एक ईमानदार थानेदार एसपी के समक्ष उपस्थित हुआ और आग्रह किया कि किसी थाने पर नियुक्ति दे दी जाए। एसपी ने बड़ी मासूमियत से कहा कि अभी तो सारे थाने भरे हैं कोई रिक्त होगा तब विचार करेंगे। इस पर ईमानदार थानेदार ने कहा कि सर आप तो मुझे एक भाटे पर पुलिस थाना लिखने की इजाजत दे दों, थाने तो मैं अपने आप बन जाऊंगा। 
S.P.MITTAL BLOGGER (06-07-2021)
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