Thursday 30 September 2021

राजनीति में गुजरात जैसा ऑपरेशन करने के लिए कांग्रेस के पास आरएसएस जैसी शक्ति चाहिए।राहुल और प्रियंका का पहला प्रयोग ही सफल नहीं रहा। पंजाब की घटना से कांग्रेस में और बिखराव। जी-23 समूह फिर सक्रिय हुआ।


विगत दिनों भाजपा ने गुजरात राज्य में जो राजनीतिक बदलाव किया उससे प्रेरित अथवा उत्साहित होकर कांग्रेस ने पंजाब में अमरिंदर सिंह को हटा कर अनजान चेहरे वाले विधायक चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया। सोनिया गांधी को पीछे रखकर कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने वाले भाई-बहन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को उम्मीद थी कि जिस प्रकार गुजरात में भाजपा का राजनीतिक बदलाव सफल हो गया, उसी प्रकार कांग्रेस में भी पंजाब का प्रयोग सफल हो जाएगा। राहुल गांधी तो इतने उत्साहित थे कि चन्नी के शपथ ग्रहण समारोह में भी पहुंच गए। लेकिन राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि भाजपा के बदलाव के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शक्ति है। भाजपा आरएसएस की राजनीतिक शाखा है और भाजपा में संघ का दखल बना रहता है। जो स्वयं सेवक संघ की सहमति से भाजपा में राजनीति करने गया है, उसे संघ कभी भी वापस बुला सकता है। ऐसा स्वयं सेवक बिना किसी विरोध के बड़े से बड़ा पद छोड़कर आ जाएगा। हालांकि अब भाजपा में कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं ने भी घुसपैठ कर ली है, लेकिन भाजपा में दबदबा स्वयं सेवकों का ही है। राहुल गांधी भले ही आरएसएस की निंदा करें, लेकिन आज कांग्रेस को भी आरएसएस जैसी शक्ति की जरूरत है। राहुल ने स्वयं देखा कि पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन्हें सार्वजनिक तौर पर अनुभवहीन कहा और नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर चुनौती खड़ी कर दी। यह वही सिद्धू है जिनके खातिर राहुल गांधी ने अमरिंदर सिंह जैसे पुराने कांग्रेसी को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया। सवाल उठता है कि अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद भी राहुल गांधी अपने साथ सिद्धू को क्यों नहीं रख सके? असल में सिद्धू स्वयं मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन जब उन्हें नहीं बनाया गया तो बगावत कर दी। राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि सिद्धू ने तो पहले ही कहा था कि यदि उनकी नहीं चली तो वे कांग्रेस की ईंट से ईंट बजा देंगे। अब नवजोत सिंह सिद्धू वही कर रहे हैं जो कहा। कांग्रेस के पास यदि आरएसएस जैसी शक्ति होती तो अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू ऐसी बयानबाजी नहीं करते। राहुल गांधी भले ही आरएसएस की आलोचना करें, लेकिन आज कांग्रेस को आरएसएस जैसी शक्ति की सख्त जरुरत है। पंजाब की ताजा घटना के बाद कांग्रेस फिर बिखराव की ओर बढ़ रही है। जी 23 समूह के नेता गुलाम नबी आजाद ने सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलाने की मांग कर दी है। कांग्रेस के अंदर ही बने जी 23 समूह में वे 23 वरिष्ठ कांग्रेसी शामिल हैं। जिनकी राहुल गांधी से पटरी नहीं बैठती है। राहुल गांधी को लगता है कि पुराने कांग्रेसियों को हटाकर नए चेहरों को आगे लाया जाए। लेकिन राहुल-प्रियंका अपने पहले प्रयास में ही विफल हो गए हैं। यह तब हुआ है, जब पंजाब में पांच माह बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाती है, लेकिन कांग्रेस सरकार में साढ़े चार वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह अब भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर रहे हैं। आखिर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस किस चेहरे को लेकर जाएगी? राहुल गांधी माने या नहीं, लेकिन पंजाब की घटनाओं का असर कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर भी पड़ेगा। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के कमजोर होने से महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार पर असर पड़ेगा। राहुल गांधी, रणदीप सुरजेवाला, अजय माकन, हरीश चौधरी जैसे नौसिखियों का खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। यह राहुल गांधी की ढुलमुल नीति का नतीजा भी है। राहुल गांधी अध्यक्ष पद के अधिकार तो अख्तियार कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद ग्रहण नहीं कर रहे। राहुल गांधी सोचते हैं कि माताजी सोनिया गांधी को ही अंतरिम अध्यक्ष बनाए रखकर वे स्वयं असली अध्यक्ष की भूमिका निभाते रहे। 
S.P.MITTAL BLOGGER (30-09-2021)
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