Wednesday 1 September 2021

यह भारत की मजबूरी है कि उसे तालिबान से अधिकारिक बातचीत करनी पड़ रही है।कूटनीति के तहत ही अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकाला गया है।

दोहा में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने 31 अगस्त को तालिबान के प्रतिनिधि शेर मोहम्मद अब्बास से अधिकारिक बातचीत की है। इस बातचीत पर कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठाए हैं। दोनों नेताओं ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या भारत सरकार अब अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता देने जा रही है? सब जानते हैं कि दिग्विजय सिंह और ओवैसी किस मानसिकता के नेता हैं। आतंकी घटना और पाकिस्तान पर दिए बयान किसी से छीपे नहीं है। दोहा में तालिबान से अधिकारिक संवाद का यह मतलब नहीं है कि भारत डर रहा है। असल में भारत की आंतरिक स्थिति ऐसी है कि उसे आतंकी संगठन माने जाने वाले तालिबान से भी वार्ता करनी पड़ रही है। यदि भारत में तालिबान के समर्थक नहीं होते तो भारत कभी भी तालिबान से बात नहीं करता। हम सबने देखा कि तालिबान के अफगानिस्तान में घुसते ही हमारे न्यूज चैनलों पर तालिबान को अच्छा बताने वालों की लाइन लग गई। तालिबान लड़ाकों की तारीफ करते हुए कहा गया कि अफगानिस्तान से अमरीका को भगा दिया है। तब दिग्विजय, ओवैसी जैसे किसी भी नेता ने तालिबान समर्थकों की निंदा नहीं की और न ही कोई एतराज जताया। अब तो ऐसे समर्थक बाहर निकल आएं हैं जो भारत में भी तालिबान की सोच की तरफ लड़के लड़कियों को अलग अलग स्कूलों में पढ़ाने के हिमायती हैं। क्या ऐसे हिमायतियों के विरोध में बोलने की किसी में हिम्मत है। असल में दिग्विजय सिंह और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं के कारण ही भारत को तालिबान से आधिकारिक बातचीत करनी पड़ रही है। यदि भारत के सभी नागरिक देशभक्ति दिखाते तो देश को सबसे मानते तो केंद्र सरकार कभी भी तालिबान से बात नहीं करती। यह तथ्य किसी से छीपा नहीं है कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होते ही पाकिस्तान में बैठे हाफिज सईद जैसे आतंकी अब भारत से कश्मीर को छीनने के लिए सक्रिय हो गए हैं। तालिबानियों और पाकिस्तान के आतंकी संगठनों का भाईचारा भी जगजाहिर है। भारत मौजूदा समय में जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें सबसे पहले दिग्विजय सिंह और ओवैसी को ही देशभक्ति दिखाने की जरूरत है। आज अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद मुसलमान नागरिक खासकर महिलाएं ज्यादा खौफजदा हैं। दिग्विजय सिंह और ओवैसी क्या मुस्लिम महिलाओं की रक्षा के लिए अफगानिस्तान जाएंगे? भारत में तो सामान्य आपराधिक घटनाओं को मॉब लिंचिंग से जोड़ दिया जाता है, लेकिन जब अफगानिस्तान में मुसलमानों पर ही अत्याचार होते हैं तो दिग्विजय सिंह और ओवैसी जैसे नेता चुप रहते हैं। दिग्विजय सिंह और ओवैसी यह अच्छी तरह समझ लें कि यदि भारत में तालिबानी सोच को बल मिलता है तो उसकी जिम्मेदारी इन्हीं की होगी। दिग्विजय सिंह और ओवैसी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। यह भारत सरकार की कूटनीति ही रही कि फंसे हुए भारतीयों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकाल लिया गया। 31 अगस्त को भी भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के प्रतिनिधि शेर मोहम्मद अब्बास से दो टूक शब्दों में कहा है कि अफगानिस्तान की जमीन का उपयोग आतंक के लिए नहीं होना चाहिए। भारत ने इस संवाद में अपनी आशंकाएं भी जता दी है। लेकिन यह सही है कि तालिबान के अफगानिस्तान में काबिज होने से पाकिस्तान में बैठे भारत विरोधी आतंकी मजबूत होंगे जिसका असर हमारे कश्मीर पर पड़ेगा। 
S.P.MITTAL BLOGGER (01-09-2021)
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