Tuesday 20 January 2015

भास्कर, भाजपा और दिल्ली में किरण-केजरीवाल मध्यप्रदेश से बाहर निकलकर 1995 में दैनिक

भास्कर, भाजपा और दिल्ली में किरण-केजरीवाल
मध्यप्रदेश से बाहर निकलकर 1995 में दैनिक भास्कर ने देश में जयपुर में अपना डेरा जमाया। जयपुर के बाद अजमेर और फिर राजस्थान के अन्य शहरों में जो सफलता मिली, उसी के कारण आज भास्कर देश का सबसे बड़ा अखबार है। जयपुर के बाद जब अजमेर में भास्कर ने डेरा जमाया, तब मैंने अजमेर में ब्यूरो चीफ के पद पर काम किया। मुझे भास्कर के चेयरमैन रमेश अग्रवाल और उनके तीनों पुत्र सुधीर, गिरीश और पवन के साथ काम करने का अवसर मिला। भास्कर की यह रणनीति रही कि किसी भी कीमत पर सफलता हासिल की जाए। इसके लिए यदि प्रतिद्वंद्वी को कमजोर भी करना पड़े तो किया जाए। यही वजह रही की भास्कर ने जहां अपना अच्छा अखबार निकाला, वहीं प्रतिद्वंद्वी अखबारों में कार्यरत पत्रकार, मशीनमैन, विज्ञापन एजेंट, हॉकर, सामान्य कर्मचारी आदि को भी तोड़ लिया, जब प्रतिद्वंद्वी कमजोर हो गया, तब भास्कर की सफलता भी आसान हो गई। कुछ ऐसी ही रणनीति पीएम मोदी ने दिल्ली के चुनावों में भाजपा के लिए अपनाई है। लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद भी प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी से जुड़े नेताओं को तोड़कर भाजपा में शामिल किया जा रहा है ताकि दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीता जा सके। किरण बेदी, शाजिया इल्मी और विनोद बिन्नी इसके उदाहरण हैं। जहां दिल्ली में जीत के लिए भाजपा ने पूरी ताकत लगा रखी है, वहीं आप और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल को लगातार कमजोर भी किया जा रहा है। यानि पीएम मोदी भास्कर की रणनीति को अपना रहे है। मोदी ने जो रणनीति अपनाई है, उसका लाभ भाजपा को चुनावों में मिलेगा ही, लेकिन यह भी सच्चाई है कि दिल्ली में केजरीवाल ने भाजपा के समक्ष कड़ी चुनौती प्रस्तुत की है। नरेन्द्र मोदी के समर्थक केजरीवाल की भले ही कितनी भी मजाक उड़ाए, लेकिन केजरीवाल ने यह साबित कर दिया है कि यदि मतदाताओं का भरोसा जीता जाए तो राजनीतिक दलों को कड़ी टक्कर दी जा सकती है। दिल्ली में केजरीवाल ने ऐसा ही कुछ किया है। इसलिए भाजपा वो सभी हथकंडे अपना रही है, जिससे केजरीवाल को हराया जा सके। राजनीति में केजरीवाल ने जो गलतियां की हैं, उसका खामियाजा तो उठाना ही पड़ेगा। किरण बेदी के भाजपा में शामिल होने से पहले दिल्ली का चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम केजरीवाल था, लेकिन इसे मोदी की राजनीतिक कुशलता ही कहा जाएगा कि अब दिल्ली का चुनाव किरण बनाम केजरीवाल हो गया है। किरण बेदी के सीएम का उम्मीदवार बनने से भले ही भाजपा के बड़े नेता नाराज हों, लेकिन इसका फायदा भाजपा को जरूर मिलेगा। जहां तक दिल्ली चुनाव में कांग्रेस का सवाल है, तो कांग्रेस पहले की तरह तीसरे नम्बर पर ही खड़ी है। कांग्रेस की भूमिका तमाशबीन की तरह नजर आ रही है।
-(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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