Friday 2 January 2015

पंचायतराज के चुनाव में शिक्षा की अनिवार्यता का सलाहकार कौन

पंचायतराज के चुनाव में शिक्षा की अनिवार्यता का सलाहकार कौन
राजस्थान के राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में इस सवाल का जवाब तलाशा जा रहा है कि पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव में शिक्षा की अनिवार्यता लागू करने की सलाह आखिर किसने दी? सरकार ने अध्यादेश जारी कर नियम लागू कर दिया है कि सरपंच पद के लिए पांचवीं कक्षा तथा जिला परिषद व पंचायत समिति सदस्य के लिए दसवीं कक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। इन पदों के लिए जनवरी माह में ही चुनाव होना है। हालांकि कांग्रेस शिक्षा की इस अनिवार्यता का कड़ा विरोध कर रही है, लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस अनिवार्यता को भाजपा की जीत का फार्मूला मान लिया है। राजे को लगता है कि इस अनिवार्यता की वजह से जहां कांग्रेस को मजबूत उम्मीदवार नहीं मिल सकेंगे, वहीं भाजपा आसानी से चुनाव जीत जाएगी, क्योंकि पंचायतीराज के चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी होने का लाभ भाजपा के उम्मीदवार को मिलेगा। माना जा रहा है कि सीएम राजे को जीत का यह फार्मूला के मुखिया रामलुभाया ने तब दिया था, जब वे आईएएएस की सेवा में थे। रामलुभाया प्रदेश के उन गिनेचुने आईएएस में रहे, जिनकी छवि साफ सुथरी मानी गई। यंू तो रामलुभाया अनुसूचित जनजाति के मीणा समुदाय के हैं, लेकिन रामलुभाया ने कभी भी एसटी के आरक्षण का लाभ नहीं उठाया। आईएएस में भी सामान्य वर्ग से रामलुभाया का चयन हुआ। रामलुभाया कई वर्षों तक पंचायतीराज विभाग के सचिव भी रहे और तब उन्होंने इस बात को समझा कि पंचायतीराज के चुनाव में शिक्षा की अनिवार्यता लागू करने से किसको फायदा होगा।
जानकारों की माने तो सीएम राजे ने रामलुभाया की सलाह को माना और फिर सेवानिवृत्ति के बाद रामलुभाया को ही शिक्षा की अनिवार्यता का नियम लागू करने के लिए निर्वाचन आयोग का मुखिया बना दिया। सब जानते हैं कि सरकार ने जल्दबाजी में इस नियम को लागू किया, लेकिन इस पर निर्वाचन आयोग ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। सीएम राजे को इस बात का भरोसा है कि रामलुभाया पूरी निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ नियम को लागू करवाएंगे। हालांकि वर्तमान परिपेक्ष में इस अनिवार्यता को लागू करने में निर्वाचन  विभाग खासकर उपखंड स्तर के निर्वाचन अधिकारियों को थोड़ी परेशानी हो रही है, लेकिन इसके बावजूद भी रामलुभाया का दृढ़ संकल्प काम आ रहा है। रामलुभाया ने इसे चुनौतीपूर्ण काम समझा है, यदि पंचायतीराज के चुनाव में कांग्रेस के मुकाबले में भाजपा को ज्यादा सफलता मिलती है, तो इसका श्रेय रामलुभाया की उस सलाह को दिया जाएगा, जो उन्होंने आईएएस के सेवाकाल में दी थी। जहां तक कांग्रेस के विरोध का सवाल है, तो यह विरोध अब कोई मायने नहीं रखता है, क्योंकि चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और वैसे भी कांग्रेस ने बार-बार यह दावा किया है कि उनके शासन में गांव ढाणी तक शिक्षा का प्रसार हुआ है, ऐसे में क्या कांग्रेस को सरपंच पद के लिए पांचवीं और जिला परिषद एवं पंचायत समिति सदस्य के लिए दसवीं पास उम्मीदवार भी नहीं मिलेंगे? और यदि ऐसे शिक्षित उम्मीदवार कांग्रेस उम्मीदवार के पास नहीं है तो फिर शिक्षा के प्रचार-प्रसार का दावा खोखला है।
-(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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