Wednesday 13 April 2022

वेदांता समूह की खान में गरीब श्रमिक की मौत पर चेयरमैन अनिल अग्रवाल का समाजसेवी चेहरा सामने क्यों नहीं आता?उदयपुर के सरकारी अस्पताल में श्रमिक के शव को लेकर बैठें हैं सैकड़ों ग्रामीण।

13 अप्रैल को राजस्थान के उदयपुर में एमबी अस्पताल के परिसर में एक श्रमिक के शव को लेकर सैकड़ों ग्रामीण बैठे हुए हैं। इन ग्रामीणों का कहना है कि यदि उनकी मांगों को नहीं माना गया तो श्रमिक के शव को हिन्दुस्तान जिंक की जावरमाला खान पर ले जाया जाएगा। जिस श्रमिक के शव को लेकर प्रदर्शन हो रहा है उस श्रमिक की मौत 12 अप्रैल को वेदांता समूह यानी हिन्दुस्तान जिंक की जावरमाला खान में खुदाई के समय हो गई थी। श्रमिक जब खदान में काम कर रहा था, तभी उस पर एक बड़ा पत्थर आकर गिरा। श्रमिक को तत्काल उदयपुर के एमबी अस्पताल लाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने श्रमिक को मृत घोषित कर दिया। अब श्रमिक के परिजन और ग्रामीण उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि श्रमिक के दो बेटियां हैं। परिवार को चलाने वाला वह अकेला था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद भी उसकी मजबूरी रही कि उसे खदान में श्रमिक का काम करना पड़ा। वहीं अनेक श्रमिकों का आरोप है कि हिन्दुस्तान जिंक की खानों में सुरक्षा के पर्याप्त उपाय नहीं है, इसलिए आए दिन श्रमिक दुर्घटना के शिकार होते हैं। सुरक्षा उपायों के लिए कई बार उच्च प्रबंधन को कहा जाता है, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं होती। जानकारों की मानें तो वेदांता समूह के मालिक खानों से खनन का कार्य ठेकेदार पर करवाते हैं। ऐसे में श्रमिक की मृत्यु अथवा अन्य कोई दुर्घटना होने पर वेदांता समूह के मालिकों की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। जबकि सारा मुनाफा समूह के मालिकों के पास ही जाता है। पूर्व में हिन्दुस्तान जिंक भारत सरकार का उपक्रम था। लेकिन इस सरकारी उपक्रम को अनिल अग्रवाल के मालिकाना हक वाले वेदांता समूह ने हासिल कर लिया। अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन देकर अनिल अग्रवाल को दानवीर और समाजसेवी बताया जाता है। दावा किया जाता है कि वेदांता समूह की ओर से सामाजिक क्षेत्र में अनेक कार्य किए जा रहे हैं, लेकिन जब किसी श्रमिक की मौत खदान में होती है तो चेयरमैन अनिल अग्रवाल का समाजसेवी चेहरा देखने को नहीं मिलता है। 12 अप्रैल को जावरमाला खान में हुई श्रमिक की मौत के बाद 45 डिग्री तापमान शव को लेकर उदयपुर में प्रदर्शन होता रहा, लेकिन वेदांता समूह का कोई जिम्मेदार अधिकारी मौके पर नहीं आया। जिन अधिकारियों को भेजा गया उनके पास निर्णय लेने की कोई क्षमता नहीं थी। चूंकि वेदांत समूह के मालिक अनिल अग्रवाल का राज्य की कांग्रेस सरकार में भी दखल है, इसलिए पुलिस भी मामले में लीपापोती करने में लगी हुई है। कायदे से श्रमिक की मौत होने पर हिंदुस्तान जिंक के उच्च प्रबंधन के खिलााफ हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। लेकिन पुलिस मृतक के परिजन और हिन्दुस्तान जिंक के अधिकारियों के बीच समझौता होने का इंतजार कर रही है। पुलिस का भी प्रयास है कि किसी तरह दोनों पक्षों में समझौता हो जाए ताकि उसे कोई कार्यवाही नहीं करनी पड़ी। जबकि अन्य छोटे बड़े कारखानों अथवा खान में श्रमिक की मौत पर तत्काल ही मालिक के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया जाता है। जावर माइंस में होने वाले विस्फोट की वजह से भी ग्रामीणों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन वेदांता समूह का सभी सरकारों में दखल होने की वजह से ग्रामीणों की कोई सुनवाई नहीं होती। न केवल खदानों में सुरक्षा उपाय नहीं किए जाते बल्कि खदान क्षेत्रों में पर्यावरण की भी धज्जियां उड़ाई जाती है। पर्यावरण नियमों की अवहेलना करने के गंभीर आरोप वेदांत समूह पर लगते रहे हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (13-04-2022)
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