राजस्थान के अलवर के राजगढ़ कस्बे में जब 17 अप्रैल को तीन शिव मंदिर और 50-50 वर्ष पुराने मकान-दुकान तोड़े जा रहे थे, तब अलवर के कलेक्टर के पद पर नन्नूमल पहाडिय़ा विराजमान थे। कलेक्टर की हैसियत से ही पहाडिय़ा ने राजगढ़ में मंदिर तोडऩे और पुराने मकान दुकान को हटाने के आदेश जारी किए। इतना ही नहीं बुलडोजरों के साथ पुलिस फोर्स भी भिजवाई ताकि कोई झगड़ा फसाद न हो। तीन मंदिरों को तोडऩे से जहां लोगों की धार्मिक भावनाओं आहत हुई, वहीं मकान और दुकानों के मालिकों ने प्रशासन और सरकार को बददुओं दी। शायद इसी का नतीजा रहा कि 23 अप्रैल को पांच लाख रुपए की रिश्वतखोरी के आरोप में एसीबी ने नन्नमूल पहाडिय़ा को गिरफ्तार कर लिया। पहाडिय़ा के साथ अलवर के राजस्व अपील अधिकारी अशोक सांखला और दलाल नितिन शर्मा को भी गिरफ्तार किया गया है। इसे पहाडिय़ा की दिलेरी ही कहा जाएगा कि अलवर के कलेक्टर के पद से तबादला हो जाने के बाद भी वे कलेक्टर के सरकारी आवास में ही रिश्वतखोरी की साजिश कर रहे थे। सब जानते हैं कि पहाडिय़ा अलवर के वो ही कलेक्टर हैं, जिन्होंने एक मूक बधीर बालिका के साथ हुई ज्यादती के मामले में गैर मानवीय कृत्य किया। इतना ही नहीं जब स्कूल की कुछ छात्राएं कलेक्टर के समक्ष विरोध करने पहुंची तब भी कलेक्टर ने बालिका विरोधी रवैया अपनाया। दोनों अवसरों पर पहाडिय़ा ने जो व्यवहार किया उसकी सर्वत्र आलोचना हुई। 23 अप्रैल को भले ही पहाडिय़ा ने पांच लाख रुपए की रिश्वत की राशि अपने हाथों में नहीं ली, लेकिन एसीबी ने पहाडिय़ा को मुख्य आरोपी बनाया है। क्योंकि एक्सप्रेस हाईवे के निर्माणकर्ता ठेकेदार ने कलेक्टर के नाम पर ही पांच लाख रुपए की रिश्वत आरएएस अधिकारी अशोक सांखला को दी। अब पहाडिय़ा कितनी भी सफाई दें, लेकिन वे एसीबी के जाल में फंस गए हैं। पहाडिय़ा माने या नहीं लेकिन उन्हें मंदिर तोडऩे और लोगों के घर उजाडऩे की सजा मिली है। भले ही यह सजा किसी कानून ने न दी हो, लेकिन सनातन संस्कृति में विश्वास रखने वालों का मानना है कि ईश्वर का न्याय ही सबसे अंतिम होता है। राजगढ़ के धर्मप्रेमियों और पीडि़तों के मुंह से जो बददुआएं निकली उसी का परिणाम रहा कि नन्नूमल पहाडिय़ा एसीबी के शिकंजे में फंस गए। जो प्रशासनिक और पुलिस के अधिकारी सरकार के इशारे पर नाचते हैं, उन्हें पहाडिय़ा की गिरफ्तारी से सबक लेना चाहिए। प्रशासनिक क्षेत्रों में यह चर्चा रही कि पहाडिय़ा मौजूदा सरकार के अंधभक्त हैं। पहाडिय़ा अगले तीन माह बाद ही आईएएस की सेवा से रिटायर हो रहे हैं। कांग्रेस सरकार के प्रति पहाडिय़ा ने जो अंधभक्ति दिखाई उसी को देखते हुए राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा रही कि पहाडिय़ा भरतपुर के कटुमर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे। प्रशासन में ऐसे कई अधिकारी हैं, जो सेवानिवृत्ति के बाद किसी लाभ के पद पर नियुक्त होना चाहते हैं। इसी प्रकार पहाडिय़ा जैसे अधिकारी राजनीति में आना चाहते हैं। लेकिन सरकार के इशारे पर नाचने के बाद भी पहाडिय़ा एसीबी के शिकंजे में उलझ गए। विगत दिनों ही पहाडिय़ा का तबादला जयपुर स्थित सचिवालय में विभागीय जांच के आयुक्त के पद पर हुआ था। लेकिन नए पद पर काम करने के बजाए पहाडिय़ा अलवर में कलेक्टर के सरकारी आवास में बैठकर रिश्वतखोरी की साजिश करने में लगे हुए थे। एसीबी के डीजी बीएल सोनी और एडीजी दिनेश एनएम को शाबाशी मिलनी चाहिए कि उन्होंने सरकार के इशारे पर नाचने वाले आईएएस को भी नहीं बक्शा है।
S.P.MITTAL BLOGGER (24-04-2022)
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