Friday 1 April 2022

डॉ. अर्चना की आत्महत्या के मामले में जब पुलिस पर दबाव बनाने वाले गिरफ्तार हो सकते हैं तो हत्या का मुकदमा दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी क्यों नहीं?हड़ताली डॉक्टरों को राजस्थान में मरीजों की समस्याओं को भी समझना होगा।

राजस्थान के दौसा के एक निजी अस्पताल की मालिक डॉ. अर्चना शर्मा द्वारा आत्महत्या के प्रकरण में पुलिस ने भाजपा के पूर्व विधायक और मौजूदा समय में संगठन के प्रदेश सचिव जितेंद्र गोठवाल और राम मनोहर बैरवा को गिरफ्तार कर 15 दिनों के लिए जेल भेज दिया है। पुलिस का आरोप है कि गोठवाल और बैरवा ने दौसा की लालसोट पुलिस पर दबाव बनाया था, इसलिए पुलिस को डॉ. अर्चना के विरुद्ध एक प्रसूता की हत्या का मुकदमा धारा 302 में दर्ज करना पड़ा। पुलिस के प्रकरण दर्ज करने के बाद डॉ. अर्चना शर्मा ने 28 मार्च को फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली। सवाल उठता है कि जब पुलिस पर दबाव बनाने वाले गिरफ्तार हो सकते हैं, तब दबाव सहन कर मुकदमा दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी गिरफ्तार क्यों नहीं हो सकते? यदि दबाव डालने वाला गुनाहगार है तो दबाव सहन करने वाला भी गुनहगार है। हालांकि मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद दौसा के पुलिस अधीक्षक को हटाया और लालसोट के थानाधिकारी को सस्पेंड किया जा चुका है। लेकिन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ इतनी कार्यवाही नाकाफी है। असल में डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या का मुख्य कारण पुलिस द्वारा हत्या का मुकदमा दर्ज करना है। पुलिस यह कैसे कह सकती है कि उसने दबाव में मुकदमा दर्ज किया है? क्या 302 जैसी धाराओं में मुकदमा दबाव में दर्ज किया जाता है? पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने से पहले अपना विवेक काम में क्यों नहीं लिया? और वह भी तब जब मरीज की मृत्यु पर डॉक्टर के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है। सब जानते हैं कि डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या के विरोध में गत 29 मार्च से ही राजस्थान भर में सरकारी और प्राइवेट डॉक्टर हड़ताल पर है। डॉक्टर की विभिन्न एसोसिएशनों के प्रतिनिधि अब दोषी पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। सरकारी अस्पताल में सेवारत डॉक्टरों की एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अजय चौधरी ने बताया कि मेडिकल कॉलेज से जुड़े बड़े अस्पतालों में प्रातः 8 से 10 बजे तक कार्य बहिष्कार है, लेकिन जिला और तहसील स्तर के सभी सरकारी अस्पतालों में पूर्ण कार्य बहिष्कार है। पूरा चिकित्सा समुदाय डॉ. अर्चना के परिवार के साथ है।

मरीजों की समस्याओं को भी समझना होगा:
डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या के विरोध में राजस्थान भर के प्राइवेट अस्पताल भी बंद पड़े हैं। राजधानी जयपुर के छोटे बड़े सभी अस्पतालों में ताले लगे हुए हैं। एक तरफ 13 हजार सरकारी डॉक्टर हड़ताल पर है तो वहीं कई हजार प्राइवेट डॉक्टर भी गुस्से में है। डॉक्टरों का गुस्सा वाजिब है, लेकिन अब डॉक्टर समुदाय को मरीजों की परेशानियों को भी समझना होगा। किसी महिला मरीज की डिलीवरी होनी है तो किसी मरीज का डायलिसिसि। जयपुर के इटर्नल जैसे बड़े अस्पताल में हार्ट के ऑपरेशन भी नहीं हो रहे हैं। किसी मरीज की आंख का ऑपरेशन होना है तो किसी मरीज की टूटी हुई हड्डी को जोड़ा जाना है। सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टरों की हड़ताल का सबसे ज्यादा खामियाजा प्रदेश भर के मरीजों को उठाना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो राजधानी जयपुर को छोड़कर एक अप्रैल को दो दिन के लिए अपने गृह जिले जोधपुर में चले गए हैं। पुलिस अधिकारियों पर कार्यवाही करने का अधिकार गृहमंत्री के नाते अशोक गहलोत के पास ही है। एक और हजारों मरीज परेशान हो रहे हैं तो दूसरी ओर राज्य सरकार हड़ताली डॉक्टरों के बीच कोई प्रभावी वार्ता नहीं हो पा रही है। लगातार तीन दिनों की हड़ताल से परेशान मरीजों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जिन प्रसूताओं की डिलीवरी प्राइवेट अस्पतालों में होनी है, उनकी पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। यदि प्राइवेट अस्पतालों के ताले ही नहीं खुलेंगे तो फिर मरीजों का इलाज कैसे होगा? डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या में मरीजों की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन इस आत्महत्या का खामियाजा मरीजों को ही उठाना पड़ रहा है। अच्छा हो कि डॉक्टर समुदाय अब मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए मरीजों का इलाज शुरू करे। 

S.P.MITTAL BLOGGER (01-04-2022)
Website- www.spmittal.in
Facebook Page- www.facebook.com/SPMittalblog
Follow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11
Blog- spmittal.blogspot.com
To Add in WhatsApp Group- 9799123137
To Contact- 9829071511

No comments:

Post a Comment