Monday 25 April 2022

60 हजार रुपए वाली (750 एमएल) शराब पीने के बाद भी नन्नूमल पहाडिय़ा (आईएएस) और अशोक सांखला (आरएएस) दलितों के प्रतिनिधि बने हुए हैं।प्रभावी पदों पर रहते हुए अपने समाज का भला क्यों नहीं करते?

पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने का उद्देश्य यही है कि प्रभावी पदों पर आसीन होने के बाद अपने समाज के लोगों के लिए भलाई का काम करें। यानी किसी गरीब परिवार को शिक्षित करने में सहयोग करें तथा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ अपने वर्ग को प्राथमिकता से दिलवाएं। आरक्षण का लाभ लेकर ही नन्नूमल पहाडिय़ा आईएएस और अशोक सांखला आरएएस बने। अब ये दोनों अधिकारी अलवर की सेंट्रल जेल में बंद हैं, क्योंकि राजस्थान के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 23 अप्रैल को इन दोनों को पांच लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है। गिरफ्तारी के बाद जब दोनों अधिकारियों के घरों की तलाशी ली गई तो करोड़ों रुपए की सम्पत्तियों के कागजातों के साथ साथ 35 बोतल महंगी शराब की भी मिली। एसीबी के अधिकारी उस समय चकित रह गए जब शराब की बोतलों की कीमत आंकी गई। एक बोतल की न्यूनतम कीमत 16 हजार और अधिकतम 60 हजार रुपए प्रति बोतल थी। एक बोलत में मात्र 750 एमएल शराब यानी पौन लीटर ही आती है। जानकारों के अनुसार भारत में बनने वाली शराब की अधिकतम कीमत 25 हजार रुपए प्रति बोतल है। स्वभाविक है कि पहाडिय़ा और सांखला 60 हजार रुपए वाली विदेशी शराब भी पी रहे थे। जब इन दोनों अधिकारियों के पास से 60 हजार रुपए की कीमत वाली शराब मिली है तो इनके रईसी ठाट का अंदाजा लगाया जा सकता है। यानी आरक्षण का लाभ लेने के बाद इन दोनों अधिकारियों ने अपने वर्ग का भला करने के बजाए स्वयं का उत्थान किया। उत्थान भी ऐसा जिसमें 60 हजार रुपए वाली शराब भी शामिल है। अच्छा होता कि आरक्षण के नाम पर सरकारी नौकरी लेने वाले ये अधिकारी आईएएस और आरएएस बनने पर अपने वर्ग के कुछ परिवारों को मजबूत करते। अफसोसनाक बात यह है कि इतनी लग्जरी लाइफ के बाद भी ऐसे लोग पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि बने रहते हैं। यह सही है कि मौजूदा समय में भी आरक्षण की आवश्यकता है, लेकिन अच्छा हो कि आरक्षण का लाभ लेने वाले अपने वर्ग को मजबूत करें। यदि 60 हजार रुपए वाली शराब पीने और प्रतिमाह पांच लाख रुपए की रिश्वत लेने का काम करेंगे, तो फिर अपने वर्ग के लोगों की भलाई कैसे करेंगे? नन्नूमल पहाडिय़ा करीब डेढ़ वर्ष तक अलवर के कलेक्टर रहे। यदि पहाडिय़ा के कार्यकाल की जांच करवाई जाए तो पता चलेगा कि पिछले वर्ग के लोगों की जमीनें भी जबरन छीनी गई। पहाडिय़ा के अनेक रिश्तेदार अलवर में ही तैनात हैं। पहाडिय़ा जिस मामले में गिरफ्तार हुए हैं, वह तो सिर्फ एक कंपनी है। अलवर में न जाने ऐसी कितनी कंपनियां अथवा व्यक्ति होंगे, जिनसे प्रतिमाह राशि वसूली जा रही थी। यह एक कंपनी से प्रतिमाह पांच लाख की वसूली हो रही थी, तो प्रतिमाह वसूली का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं कि भ्रष्ट अधिकारी सामान्य वर्ग में नहीं होते। एसीबी सामान्य वर्ग के अधिकारियों को भी पकड़ती है। सामान्य वर्ग के अधिकारियों के पास से भी महंगी शराब की बोतलें बरामद होती है। सामान्य वर्ग के अधिकारियों के पास से करोड़ों रुपए की संपत्तियों के दस्तावेज भी बरामद होते हैं। यानी अफसर बनने के बाद जाति का भेद समाप्त हो जाता है। अफसर सामान्य वर्ग का हो या पिछड़े वर्ग का। दोनों के शोक और मौज एक जैसे होते हैं। ऐसा नहीं कि सामान्य वर्ग  गरीब लोग नहीं होते। सामान्य वर्ग के कई परिवारों की स्थिति पिछड़े वर्ग के परिवारों से भी बदतर है। लेकिन उसे न तो आरक्षण का लाभ मिलता है और न ही प्रतिमाह पांच किलो अनाज फ्री। सामान्य वर्ग का होने के नाते गरीब परिवार सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं ले पाता है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (25-04-2022)
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