Monday 26 March 2018

आखिर अन्ना हजारे के अनशन की कब सुध लेगी केन्द्र सरकार।  चार दिनों में ही हो गया चार किलो वजन कम।
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सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे 26 मार्च को भी लगातार चैथे दिन दिल्ली के रामलीला मैदान पर अनशन पर बैठे रहे। देश भर के गांधी वादी और सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना के समर्थन में दिल्ली में डटे हुए हैं। इन में राजस्थान के नागौर जिले के सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम सिंह टापड़वाड़ा भी है। टापड़वाड़ा को इस बात का अफसोस है कि काॅर्पोरेट घरानों की वजह से अन्ना के अनशन को मीडिया प्राप्त कवरेज नहीं मिल रहा है। यह सही भी है कि यूपीए की सरकार मंें जब अन्ना ने आंदोलन किया था तो मीडिया की वजह से ही सरकार हिल गई थी। अन्ना के समर्थक माने या नहीं तब सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए भाजपा के कार्यकर्ता भी आंदोलन में शामिल हो गए थे। अब कांग्रेस के पास ऐसी कोई रणनीति नहीं है, हालांकि अन्ना अपने आंदोलन को हमेशा राजनीति में दूर रखते हैं। लेकिन राजनीति में ही रणनीति होती है। इधर केन्द्र सरकार अन्ना के आंदोलन के वजन को आंक रही है। यदि जनसमर्थन नहीं मिला तो फिर स्वस्थ्य बिगड़ने पर अन्ना को जबरन अस्पताल में भर्ती करवा कर आंदोलन की कमर तोड दी जाएगी। हालांकि अन्ना ने कहा है कि वे इतनी जल्दी नहीं मरेंगे। जब तक सक्षम किसान सशक्त लोेकपाल और चुनाव सुधार नहीं होंगे, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। टापड़वाड़ा का कहना है कि धीरे धीरे देश भर से लोग अन्ना के समर्थन में रामलीला मैदान में एकत्रित हो रहे हैं। सरकार अन्ना के अनशन को हल्के में नहीं ले। अब तक 64 से भी ज्यादा किसान संगठनों का समर्थन अन्ना को मिल चुका है। हालांकि चैथे दिन अन्ना का वजन चार किलो कम हो गया है। लेकिन अन्ना में आत्म बल पहले दिन जैसा ही है। सरकार ने स्वामी नाथन आयोग की रिपोर्ट को आज तक भी लागू नहीं किया है इससे देशभर के किसान बदहाल स्थिति में है। गंभीर बात तो ये है कि लगातार आत्म हत्याओं के बाद भी सरकार का ध्यान किसानों की ओर नहीं गया है।

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