Thursday 4 October 2018

क्या वाकई राजस्थान में वसुंधरा राजे के दम पर चुनाव लड़ेगी भाजपा?

क्या वाकई राजस्थान में वसुंधरा राजे के दम पर चुनाव लड़ेगी भाजपा? मायावती ने निकाली कांग्रेस की हवा।
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राजस्थान में अशोक परनामी को हटाकर मदनलाल सैनी को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाए जाने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह ने कहा कि विधानसभा का चुनाव जीतने पर वसुंधरा राजे ही प्रधानमंत्री बनेगी। यानि चुनाव वसु के चेहरे और दम पर ही लड़ा जाएगा। लेकिन अशोक परनामी को हटाए जाने के बाद राजस्थान में भाजपा में जो कुछ भी देखने को मिला, उससे यह सवाल उठता है कि क्या वाकई वसुंधरा राजे के दम और चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा? वैसे तो परनामी को हटाकर राजनीतिक झटका था। अब केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को राजस्थान का चुनाव प्रभारी बना कर एक ओर झटका दे दिया है। जानकार सूत्रांे की माने तो वसु खेमे की ओर से केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी का नाम चुनाव प्रभारी के लिए सुझाया गया था, लेकिन अमितशाह ने वो ही किया जो भाजपा के हित में था। शाह सितम्बर माह में कोई आठ-दस दिन राजस्थान में रहे और भाजपा के हर स्तर के कार्यकर्ता से मुलाकात की। इस मुलाकात में खास बात यह रही कि वसुंधरा राजे को दूर रखा गया। कहा गया कि आप अपनी गौरव यात्रा का कार्यक्रम नहीं बिगाड़े। चूंकि अमितशाह से वसु को दूर रख कर संवाद किया, इसलिए उन्हें हकीकत का अहसास हो गया। यह भी पता चला कि चुनाव में किस नेता की वजह से भाजपा को खामियाजा उठाना पड़ेगा। शाह को राजनीति में खास कर चुनाव की रणनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है, इसलिए अपने आठ-दस दिन के दौरे में यह तो साफ कर ही दिया कि उम्मीदवारों का चयन किसी एक नेता की सिफारिश पर नहीं होगा। भाजपा का संसदीय बोर्ड ही उम्मीदवार का चयन करेगा। प्रदेश की चुनाव प्रबंध समिति के सदस्यों के नाम भी जाहिर करते हैं कि अब खेल अकेले वसुंधरा राजे का नहीं है। भले ही राजस्थान में गुलाबचंद कटारिया जैसे नेता भी वसु के सामने बोलने की हिम्मत नहीं करते हों, लेकिन अब कमान  खुद अमितशाह ने संभाल रखी है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे भी धड़ाधड़ करवाए जा रहे हैं। जब मोदी और शाह की सभाएं होंगी तो वसु की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी जब स्वयं ही प्रेस काॅन्फ्रेंस करने लगे हैं तथा संगठन की पहचान अलग से बना रहे हैं, जबकि परनामी के समय संगठन को सत्ता की गोदी में ही बैठा देखा गया। भाजपा में जिस तेजी से माहौल बदल रहा है उससे कार्यकर्ता भी उत्साहित हैं। अमितशाह ने सत्ता और संगठन दोनों को अलग-अलग कर दिया। आने वाले दिनों में वसुंधरा राजे को लेकर कोई चैंकाने वाली घोषणा भी हो सकती है। फिलहाल सरकार के चंगुल से भाजपा संगठन को बाहार निकाल लिया गया है। यह भी अमितशाह की बड़ी सफलता है। 6 अक्टूबर को अजमेर में प्रधानमंत्री की सभा हो जाने के बाद देखना होगा कि वसुंधरा राजे की क्या कार्यशैली सामने आती है।
सीकर-बीकानेर में भी अकेले ही मुकाबलाः
4 अक्टूबर को अमितशाह ने सीकर और बीकानेर में पूर्व सैनिकों के सम्मेलन और भाजपा के बूथ स्तर पर बने शक्ति केन्द्रों के प्रतिनिधियों की बैठकों को संबोधित किया। शाह के साथ प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष मदनलाल सैनी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर थे। इन कार्यक्रमों में भी सीएम राजे को नहीं देखा गया। शक्ति केन्द्रों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन में अमितशाह ने एक बार फिर दोहराया कि भाजपा के नेताओं के व्यवहार को लेकर नाराजगी हो सकती है। लेकिन भाजपा से  किसी की भी नाराजगी नहीं होगी। 
कांग्रेस की हवा निकालीः
गत विधानसभा चुनाव में 6 सीटों पर जीत दर्ज करवाने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि राजस्थान में उनकी पार्टी अपने दम पर चुनाव लडेगी। कांगे्रस के साथ कोई समझौता नहीं होगा। मायावती ने यह बयान तब दिया, जब कुछ दिन पहले ही कांग्रेस ने राष्ट्रीय महामंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन के लिए राजस्थान में बसपा के साथ चुनावी गठबंधन किया जाएगा। लेकिन मायावती ने एक ही झटके में कांग्रेस की हवा निकाल दी। गत चुनावों में बसपा को करीब साढ़े तीन प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। जानकारों की माने तो मायावती राजस्थान की 25 सीटों पर असर डालती हैं। यही वजह है कि कांग्रेस 8-10 सीटों के प्रस्ताव को मायावती ने ठुकरा दिया है। कांग्रेस के सामने समस्या यह है कि यदि बसपा को 20-25 सीटें दे दी जाए तो फिर उसका क्या होगा? ऐसी मांग तो वामपंथी, सपा, एनसीपी आदि भी कर सकते हैं। देखना होगा कि मायावती की इस चुनौती का प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट किस तरह मुकाबला करते हैं।
एस.पी.मित्तल) (04-10-18)
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