गत वर्ष कोरोना वायरस को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च माह में तब देशव्यापी लॉकडाउन लगाया था, जब हमारे पास अस्पतालों में न तो आरटी-पीसीआर जांच मशीनें थीं और न ही वेंटीलेटर। स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर हम शून्य थे, लेकिन अब हमारे पास ढेर सारी स्वास्थ्य सेवाएं हैं और कोरोना संक्रमण से बचने के लिए वैक्सीन भी लगाई जा रही है। लेकिन फिर अनेक प्रदेश अपने स्तर पर लॉकडाउन या लॉकडाउन जैसे सख्त प्रतिबंध लगा रहे हैं। प्रतिबंध लगाने में सबसे आगे वो ही मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने गत वर्ष मोदी के लॉकडाउन की आलोचना की थी। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी तो प्रवासी लोगों से मिलने भी पहुंच गए थे। राहुल गांधी को अब कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ के साथ-साथ महाराष्ट्र में लगाए गए लॉकडाउन पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए। क्या अब गरीब मजदूर किसान, ठेले वाले सब्जी वालों का रोजगार नहीं छीनेगा? राजस्थान के अशोक गहलोत हो या महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे सभी का मानना है कि हमारे लिए लोगों की जान बचाना पहली प्राथमिकता है। सवाल उठता है कि तो फिर मोदी के लॉकडाउन का मजाक क्यों उड़ाया गया? जाहिर है कि विपक्ष दल के नेता तब परेशान लोगों के नाम पर स्वार्थ की राजनीति कर रहे थे। मोदी के घोर आलोचक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी सरल रास्ता लॉकडाउन ही नजर आ रहा है। एक ओर दावा किया जा रहा है कि दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाएं देश में सबसे अच्छी है, लेकिन दूसरी ओर दिल्ली में लॉकडाउन लगाया जा रहा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो जब बाथरूम में नहाने जाते हैं, तब भी मोदी की आलोचना करने से नहीं चूकते, लेकिन अब वो ही गहलोत अपने प्रदेश की भयावह स्थिति से घबराए हुए हैं। 14 अप्रैल की रात को एक उच्च स्तरीय बैठक कर गहलोत ने प्रदेश भर में 16 अप्रैल से 12 घंटे का कर्फ्यू लागू करने की घोषणा कर दी। साथ ही सभी धार्मिक स्थलों पर आवाजाही पर रोक लगा दी। शिक्षण संस्थाओं को बंद कर दिया। यानि प्रदेशभर में लॉकडाउन जैसे सख्त कदम उठाए गए। 12 घंटे के कर्फ्यू में बाजारों को सायं 6 बजे बंद करने के आदेश दिए। कर्फ्यू अगले दिन सुबह 6 बजे तक लागू किया गया। रोजाना 12 घंटे के कर्फ्यू का असर जानने से पहले ही 15 अप्रैल को आधी रात को एक और बड़ा निर्णय गहलोत सरकार ने ले लिया। अब 16 अप्रैल से सायं 6 बजे से 19 अप्रैल को प्रातः: 6 बजे तक लगातार 60 घंटे तक लॉकडाउन रहेगा। सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री को हर दिन अपना निर्णय क्यों बदलना पड़ रहा है। असल में राजस्थान की स्थिति भी लगातार खराब हो रही है। ऑक्सीजन के अभाव में लोगों की मौत होना शुरू हो गया है। ऐसे में मोदी वाला लॉकडाउन ही एक मात्र सहारा है। आलोचक मुख्यमंत्रियों को अब मजबूरी में लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है। यह तो अच्छा है कि मोदी सरकार ट्रेनों के सफर को बरकरार रखा है। राज्य भले ही लॉकडाउन लगा रहे हों, लेकिन ट्रेने लगातार चल रही है। केजरीवाल और गहलोत जैसे मुख्यमंत्रियों ने मोदी के जनता कर्फ्यू का भी मजाक उड़ाया था, लेकिन अब सही में जनता कर्फ्यू की आवश्यकता है। लोग स्वेच्छा से अपने घरों से बाहर नहीं निकले। यदि लोग अपने घरों में कैद नहीं हुए तो केजरीवाल और गहलोत का लॉकडाउन भी कोई काम नहीं आएगा। स्थिति वाकई भयावह है। लॉकडाउन और कर्फ्यू लगाने वाले मुख्यमंत्रियों को गरीबों की भी मदद करनी चाहिए। दिन भर मजदूरी का पैसा कमाने वाले शाम को रोटी खाते हैं। लॉकडाउन से मजदूरी मिलना बंद हो गया है। कर्फ्यू की वजह से लाखों स्ट्रीट वेंडर बेरोजगार हो गए हैं। शाम को बाजारों में चाट पकौड़ी के ठेले वालों के बारे में भी मुख्यमंत्रियों को सोचना चाहिए। अनेक लोग भूख से मर जाएंगे।
S.P.MITTAL BLOGGER (16-04-2021)
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