अजमेर राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का गृह जिला है। अजमेर के केकड़ी विधानसभा क्षेत्र से ही रघु कांग्रेस के विधायक हैं। आमतौर पर माना जाता है कि मंत्री अपने गृह क्षेत्र का ज्यादा ख्याल रखते हैं। लेकिन अजमेर में उल्टा हो रहा है। ख्याल रखने के बजाए अजमेर के साथ भेदभाव हो रहा है। अब जब कोरोना संक्रमण में रेमडेसिवीर इंजेक्शन की अचानक मांग बढ़ गई है तो अजमेर के साथ भेदभाव हो रहा है। अजमेर में रेमडेसिवीर इंजेक्शन के प्रमुख एजेंट जितेश पटेल (एमवी एजेंसी) का कहना है कि पिछले 15 दिनों में सब कुछ मिला कर 300 इंजेक्शन विभिन्न कंपनियों से मिले हैं। जबकि जानकार सूत्रों का कहना है कि भीलवाड़ा जिले में पिछले 7 दिनों में एक हजार से ज्यादा इंजेक्शनों की सप्लाई हुई है। यह माना कि अभी सभी जिलों में रेमडेसिवीर की मांग है, लेकिन कंपनियों को समान वितरण करना चाहिए। कोरोना काल में रेमडेसिवीर का वितरण सभी कंपनियां राज्य सरकार के इशारे पर कर रही है। निजी क्षेत्र के अस्पतालों के साथ साथ सरकारी अस्पतालों में भी इंजेक्शन के वितरण को लेकर अजमेर के साथ भेदभाव हो रहा है। अजमेर के जेएलएन अस्पताल और ब्यावर, किशनगढ़ व केकड़ी के सरकारी अस्पतालों में कोरोना संक्रमित मरीज भरे पड़े हैं। लेकिन इन सरकारी अस्पतालों के लिए पिछले तीन दिन में मात्र 70 इंजेक्शन प्राप्त हुए हैं, जबकि अन्य जिलों में इससे कहीं ज्यादा सप्लाई हुई है। सवाल उठता है कि आखिर स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा के गृह जिले के साथ इतना भेदभाव क्यों हो रहा है? जबकि स्वास्थ्य मंत्री होने का फायदा अजमेर को मिलना चाहिए। फायदा न भी मिले तो कम से कम भेदभाव तो नहीं हो। ऐसा नहीं कि अजमेर जिले के हालातों से रघु शर्मा अवगत नहीं है। उन्हें यह भी पता है कि जिले के किस प्राइवेट अस्पताल में रेमडेसिवीर इंजेक्शन की सप्लाई हो रही है। अधिकृत एजेंट के माध्यम से अजमेर के क्षेत्रपाल अस्पताल, आरएस अस्पताल, संत फ्रांसिस अस्पताल, मित्तल अस्पताल, गेगल स्थित जीडी बडाया अस्पताल, ब्यावर स्थित आनंद अस्पताल व किशनगढ़ स्थित मार्बल सिटी अस्पताल में रेमडेसिवीर इंजेक्शन की सप्लाई हो रही है। भले ही इंजेक्शन की सप्लाई संख्या में दिए जा रहे हों, लेकिन भर्ती मरीज की संख्या और प्राप्त इंजेक्शन के अनुपात में अस्पतालों को दिए जा रहे हैं। रेमडेसिवीर इंजेक्शन देश की सात कंपनियां बनाती है, इसलिए बाजार में 900 रुपए से लेकर 3 हजार रुपए तक इंजेक्शन मिलता है। राज्य सरकार ने रेमडेसिवीर की दर 28 सौ रुपए निर्धारित कर रखी है। यानि कोई भी प्राइवेट अस्पताल 28 सौ रुपए से ज्यादा की राशि नहीं ले सकता। प्राइवेट अस्पतालों को इंजेक्शन लगाने वाले मरीज का पूरा ब्यौरा भी रखना होगा।
अजमेर से ही उ पचुनाव जीते हैं:
कोरोना संक्रमण में भले ही अजमेर जिला भेदभाव और संकट के दौर से गुजार रहा हो, लेकिन यह सही है कि अजमेर की जनता ने लोकसभा के उपचुनाव में रघु शर्मा को ही कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जितवाया था। उस समय रघु शर्मा कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता थे। उपचुनाव में सांसद बनने के बाद रघु शर्मा का राजनीतिक कद तेजी से बढ़ गया। यही कारण रहा कि वर्ष 2018 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो रघु को केकड़ी से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया। उस समय यदि रघु शर्मा सांसद नहीं होते तो केकड़ी से टिकट मिलना भी मुश्किल होता। विधायक बनने के बाद ही रघु शर्मा स्वास्थ्य मंत्री बने और मौजूदा समय में गहलोत सरकार में ताकतवर मंत्री हैं। यदि रघु शर्मा चाहे तो रेमडेसिवीर इंजेक्शन की सप्लाई अजमेर के लिए अच्छी कर सकते हैं। आज एक-एक इंजेक्शन के लिए अजमेर में हाहाकार मचा हुआ है। प्राइवेट अस्पतालों में पहुंचने वाले इंजेक्शनों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिलती है, जबकि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के रहमो करम पर मरीज भर्ती है। चिकित्सकों के सामने भी यह समस्या है कि आखिर किसे इंजेक्शन लगाया जाए। एक इंजेक्शन के पीछे सौ लोगों की मांग बनी हुई है।
अजमेर से ही उ पचुनाव जीते हैं:
कोरोना संक्रमण में भले ही अजमेर जिला भेदभाव और संकट के दौर से गुजार रहा हो, लेकिन यह सही है कि अजमेर की जनता ने लोकसभा के उपचुनाव में रघु शर्मा को ही कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जितवाया था। उस समय रघु शर्मा कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता थे। उपचुनाव में सांसद बनने के बाद रघु शर्मा का राजनीतिक कद तेजी से बढ़ गया। यही कारण रहा कि वर्ष 2018 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो रघु को केकड़ी से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया गया। उस समय यदि रघु शर्मा सांसद नहीं होते तो केकड़ी से टिकट मिलना भी मुश्किल होता। विधायक बनने के बाद ही रघु शर्मा स्वास्थ्य मंत्री बने और मौजूदा समय में गहलोत सरकार में ताकतवर मंत्री हैं। यदि रघु शर्मा चाहे तो रेमडेसिवीर इंजेक्शन की सप्लाई अजमेर के लिए अच्छी कर सकते हैं। आज एक-एक इंजेक्शन के लिए अजमेर में हाहाकार मचा हुआ है। प्राइवेट अस्पतालों में पहुंचने वाले इंजेक्शनों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिलती है, जबकि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के रहमो करम पर मरीज भर्ती है। चिकित्सकों के सामने भी यह समस्या है कि आखिर किसे इंजेक्शन लगाया जाए। एक इंजेक्शन के पीछे सौ लोगों की मांग बनी हुई है।
S.P.MITTAL BLOGGER (22-04-2021)
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