27 अप्रैल को राजस्थान पत्रिका के अजमेर संस्करण में पेज दो पर दो महत्वपूर्ण खबरें छपी है। एक खबर में बताया गया कि ऑक्सीजन के अभाव में 26 अप्रैल को जेएलएन अस्पताल में भर्ती एक महिला सफाई कर्मचारी की मृत्यु हो गई। यह महिला अस्पताल के कोविड वार्ड में भर्ती थी। परिजन का कहना है कि यदि समय पर ऑक्सीजन सिलेंडर मिल जाता तो महिला की जान बच सकती थी। इसी पेज पर यह भी छपा है कि संक्रमित मरीजों को भर्ती से पहले घंटों अस्पताल के फर्श पर ही पड़ा रहना पड़ता है। संक्रमित मरीज के शरीर में इतनी भी ताकत नहीं होती की वह कुछ देर के लिए खड़ा रहे। अखबार में महिला की मौत के बाद परिजन के हंगामे और अस्पताल के फर्श पर लेटे मरीजों के फोटो भी हैं। इसलिए दोनों खबरों को झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन वहीं पेज तीन पर अजमेर जिला प्रशासन ने दावा किया है कि जिले में किसी भी अस्पताल में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। जिले में 2 हजार 770 सिलेंडरों की प्रतिदिन आवश्यकता है, जबकि प्रशासन 3 हजार से भी ज्यादा सिलेंडर उपलब्ध करवा रहा है। प्रशासन का यह भी दावा है कि संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में प्रतिदिन 2 हजार 250 सिलेंडर की आवश्यकता है, जबकि अस्पताल प्रशासन 2 हजार 500 सिलेंडर प्रतिदिन उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। सवाल उठता है कि जब पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध है तो 26 अप्रैल को ऑक्सीजन के अभाव में एक महिला की मौत कैसे हो गई? क्यों मरीजों को भर्ती होने के लिए घंटों फर्श लेटे रहना पड़ता है? प्रशासन ने ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर जो दावा किया है, उसकी पोल राजस्थान पत्रिका की खबरें ही खोल रही है। प्रशासन चाहे कुछ भी दावा करें, लेकिन अस्पतालों खासकर सरकारी अस्पतालों में भर्ती संक्रमित मरीजों को ऑक्सीजन की कमी से जूझना पड़ रहा है। जिले भर में ऑक्सीजन को लेकर त्राहि-त्राहि मची हुई है। सरकारी और निजी स्तर पर जो हेल्प लाइन नम्बर जारी किए गए हैं, उनमें से अधिकांश बेकार साबित हो रहे हैं। कोई हेल्प लाइन वला बताए कि उसने कितने मरीजों को अस्पतालों भर्ती करवाया? कितने भर्ती मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर, वेंटिलेटर, रेमडेसिवीर इंजेक्शन उपलब्ध करवाएं हैं? प्रशासन माने या नहीं, लेकिन कोरोना मरीज भगवान भरोसे हैं। 27 अप्रैल को ही राजस्थान पत्रिका के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित खबर में बताया गया है कि सरकार ने डॉक्टरों को मौखिक आदेश दिए हैं कि ऑक्सीजन की कमी है, इसलिए मरीजों की ज्यादा भर्ती नहीं की जाए। यदि ऐसा आदेश सही है तो संक्रमित मरीज ऑक्सीजन के अभाव में अस्पताल के बाहर ही मर जाएगा। चूंकि मरीज अस्पताल में भर्ती नहीं हो सका, इसलिए उसकी मौत सरकार के रिकॉर्ड में भी दर्ज नहीं होगी। ऐसे खामियों के चलते ही यह आरोप लगता है कि सरकार मौत के आंकड़े छिपा रही है।
S.P.MITTAL BLOGGER (27-04-2021)
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