अमेरिका की न्यूयॉर्क फेडरर कोर्ट में भारत के उद्योगपति गौतम अडानी पर जो आरोप लगे हैं, उन्हें साधारण शब्दों में समझा जाए तो पता चलता है कि अडाणी ग्रीन एनर्जी ने अपने सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट के लिए 75 करोड़ डॉलर निवेशकों से जुटाएं। इस राशि में 17 करोड़ डॉलर अमेरिकी निवेशकों के हैं। अब यह आरोप लगा है कि अडानी समूह ने जो राशि निवेशकों से जुटाए उसमें से दो हजार करोड़ रुपए भारत के अधिकारियों को रिश्वत के तौर पर दे दिए। चूंकि निवेशक अमेरिकी भी है, इसलिए कुछ लोगों ने अमेरिकी कानून के मुताबिक कोर्ट में मामला दायर किया है। सामान्य प्रक्रिया है कि जब कोई आरोप निर्धारित होते हैं तो आरोपी को अदालत में जवाब देने के लिए आना होता है। चूंकि भारत के आर्थिक विकास में अडाणी समूह की महत्वपूर्ण भूमिका है इसलिए अमेरिका में हुई इस कार्यवाही से भारत में हड़कंप मच गया है। आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका में हुई कार्यवाही भारत को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करना चाहती है। मौजूदा समय में भारत आर्थिक क्षेत्र में दुनिया की पांचवीं शक्ति है जो निकट भविष्य में तीसरी शक्ति बनने जा रही है। भारत की तरह अमेरिका भी एक लोकतंत्र देश है और वहां भी भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं। ऐसी ताकतें नहीं चाहती कि भारत आर्थिक दृष्टि से अमेरिका के मुकाबले खड़ा हो। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भले ही अमेरिका में हुई कार्यवाही को राजनीतिक मुद्दा बनाए, लेकिन अडाणी के ताजा प्रकरण में भारत में विपक्षी दलों की सरकारें ही कटघरे में खड़ी हैे। इसमें छत्तीसगढ़ रही भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार भी शामिल है। राहुल गांधी यदि गौतम अडानी के पीछे नरेंद्र मोदी को खड़ा मानते हैं तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री रहते हुए जब गौतम अडानी की कंपनी के साथ सौर बिजली की दर का अनुबंध किया, जब भूपेश बघेल के पीदे कांग्रेस का कौन सा नेता खड़ा था? अडाणी की कंपनी ने वर्ष 2021-22 में जब राज्य सरकारों से अनुबंध किए तब तमिलनाडु में डीएमके, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर रेड्डी, उड़ीसा में बीजेडी की सरकार थी। अमेरिका की फैडरर कोर्ट में भारत के चार राज्यों की सरकारों के साथ हुए अनुबंध में ही रिश्वतखोरी के आरोप लगे हैं। कांग्रेस के इंडिया गठबंधन में डीएमके भी शामिल है। अच्छा हो कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाने से पहले अपने सहयोगी दलों और स्वयं की कांग्रेस पार्टी की ईमानदारी की जांच पड़ताल कर लें। तेलंगाना में तो हाल ही में कांग्रेस सरकार बनी है, यहां भी अडाणी समूह ने स्किल यूनिवर्सिटी के एक हजार करोड़ रुपए का डोनेशन दिया है। ऐसा नहीं कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अडाणी समूह का विकास हुआ हो। राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे, तब भी केंद्र सरकार के सहयोग के कारण ही अडाणी को विदेश में ठेके मिले। गुजरात में तो चिमन भाई पटेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने अडानी समूह को मात्र 10 पैसे प्रति मीटर के हिसाब से हजारों बीघा भूमि आवंटित की थी। राहुल गांधी को बताना चाहिए कि इस मेहरबानी की एवज में अडाणी समूह से कितनी रिश्वत ली गई। यह माना कि राहुल गांधी को पीएम मोदी से व्यक्तिगत द्वेषता है लेकिन राहुल गांधी को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे देश का नुकसान होता हो। राहुल गांधी भले ही अडाणी समूह पर आरोप लगाए, लेकिन यह सच्चाई है कि अडाणी ने विदेशी सहयोग से भारत में हथियार बनाने के जो उद्योग लगाए है उनमें आज बड़ी मात्रा में सैन्य हथियार निर्मित हो रहे है। भारतीय सेना की मांग पूरी करने के बाद हथियारों का निर्यात भी किया जा रहा है। अडाणी समूह को जो एयरपोर्ट और बंदरगाह रखरखाव के लिए दिए गए है उन से सरकार को रॉयल्टी भी प्राप्त हो रही है। किसी भी देश के विकास में उद्योगपतियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उद्योगपतियों के बगैर कोई भी देश विकास नहीं कर सकता। राहुल गांधी माने या नहीं लेकिन अमेरिका की कोर्ट में लगे आरोप कोई मायने नहीं रखते हैं। यह आरोप सिर्फ भारत को आर्थिक दृष्टि से कमजोर करने के लिए लगाए गए है। राहुल गांधी को भारत विरोधी ताकतों का टूल नहीं बनना चाहिए।
S.P.MITTAL BLOGGER (22-11-2024)
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