6 माह पहले हुए महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के गठबंधन वाले महा विकास अघाड़ी को 48 में से 30 सीटें मिली थी। लेकिन 23 नवम्बर को घोषित विधानसभा के चुनाव परिणाम में महा अघाड़ी का सूपड़ा साफ हो गया है। कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के गठबंधन को 188 में से मात्र 55 सीटों पर बढ़त मिली है, जबकि भाजपा के गठबंधन महायुति को 225 सीटों पर बढ़त है। चुनाव परिणाम से जाहिर हो गया है कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ही असली शिव सेना है। जबकि उद्धव का ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना को महाराष्ट्र के मतदाता ने शिवसेना मानने से इंकार कर दिया है। चुनाव परिणाम बताते है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को मात्र 19 सीटें मिली है। यानि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के साथ जो गठबंधन किया उससे हिन्दू मतदाता नाराज रहा। हिन्दू मतदाताओं ने भाजपा के साथ गठबंधन करने वाले शिंदे की शिवसेना को 53 सीटें जीतने दी। इसी प्रकार अपने चाचा शरद पवार का साथ छोड़कर अलग हुए अजित पवार को भी भाजपा से गठबंधन करने का फायदा हुआ। अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी भी 35 से ज्यादा सीटें लेने में सफल रही। विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा दुर्गति कांग्रेस पार्टी की हुई है। कांग्रेस के 20 उम्मीदवार भी चुनाव जीत नहीं पाए है। कांग्रेस को मात्र 19 सीटों पर ही बढ़त है। महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव इसलिए भी महत्व रखता है कि मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है। यदि महाराष्ट्र में महायुति को जीत नहीं मिलती तो शेयर बाजार में भी भारी गिरावट देखने को मिलती। चुनाव परिणाम ने यह भी दर्शा दिया है कि कांग्रेस ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ जो गठबंधन किया उसे भी मतदाताओं ने नकार दिया है। इसके साथ ही अजित पवार ने भी यह साबित किया है कि असली एनसीपी वे दी है। शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को मात्र 15 सीटों पर बढ़त है। चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हैं तो सेफ हैं का जो नारा दिया उसका भी व्यापक असर हुआ है इस नारे के बाद महाराष्ट्र में हिन्दू मतदाता एकजुट हुआ। भाजपा ने 149 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 125 सीटों पर सफलता मिली। यानि महाराष्ट्र के मतदाताओं ने भाजपा पर पूरा भरोसा जताया। चुनाव परिणाम से उद्धव ठाकरे का घमंड भी टूट का है। मुख्यमंत्री बनने की लालसा में उद्धव ने अपने दिवंगत पिता बाला साहब ठाकरे के सिद्धान्तों को भी छोड़ दिया था। बाला साहब ने हिंदुत्व को लेकर शिवसेना की स्थापना की थी। लेकिन उद्धव ने कांग्रेस और शरद पवार से गठबंधन कर हिंदुत्व के मुद्दे को छोड दिया।
क्या भाजपा का सीएम बन पाएगा?
घोषित परिणाम में 288 में से अकेले भाजपा को 125 सीटों पर बढ़त है। जबकि सहयोगी पार्टी शिव सेना (शिंदे) को 55 तथा एनसीपी (अजित पवार) को 35 सीटों पर बढ़त है। चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि हम सबने मिलकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। किसी एक पार्टी को ज्यादा सीट मिलने का मतलब यह नहीं कि उस पार्टी का मुख्यमंत्री हो। महाराष्ट्र के लोगों ने मेरे नेतृत्व वाली सरकार के कामकाज को देखकर भी वोट दिया है। शिंदे के इस बयान से प्रतीत होता है कि वे मुख्यमंत्री के पद को अपने पास बरकरार रखना चाहते हैं। भले ही भाजपा को 125 सीटें मिली हो। अब देखना होगा कि 125 सीटे हासिल करने के बाद भी क्या भाजपा मुख्यमंत्री पद से अपना दावा छोड़ सकती है? यहां यह उल्लेखनीय है कि 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का गठबंधन शिव सेना के साथ था और तब उद्धव ठाकरे ने 56 सीटें हासिल की और मुख्यमंत्री के पद पर दावा जताया। तब भाजपा के पास 105 सीटें थी। भाजपा ने उडव नकरे के दावे को स्वीकार नहीं किया और गठबंधन तोड़ लिया। बाद में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और शरद पवार के साथ मिलकर सरकार बना ली। यानि 105 सीट मिलने पर भी भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर अपना हक जताया था। इस बार भाजपा के पास 125 सीटें है। देखना होगा कि भाजपा किस तरह मुख्यमंत्री का पद हासिल करती है। सरकार बनाने के लिए 145 विधायक चाहिए। भाजपा में देवेंद्र फडणवीस सीएम पद के सबसे मजबूत दावेदार है। पूर्व में भी फडणवीस मुख्यमंत्री रह चुके है, लेकिन शिव सेना में विभाजन के बाद जब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया, तब मजबूरी में फडणवीस को उप मुख्यमंत्री बनना पड़ा। विधानसभा के चुनाव में फडणवीस की रणनीति ही कारगर हुई है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का प्रयास है कि मुख्यमंत्री के पद को लेकर कोई विवाद न हो और महाराष्ट्र में महायुति वाला गठबंधन बना रहे। महायुति गठबंधन को बनाए रखने में महाराष्ट्र के चुनाव प्रभारी और केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव की सक्रिय भूमिका नजर आ रही है। चुनाव में ऐतिहासिक सफलता दिलाने में यादव की रणनीति भी काम आई है।
सौरेन को जेल भेजना भारी पड़ा:
23 नवम्बर को झारखंड के चुनाव परिणाम भी घोषित हुए, 181 में से 50 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा वाले गठबंधन को बढ़त है, जबकि भाजपा के गठबंधन को 30 सीटों पर ही बढ़त है। झारखंड में भाजपा के पिछड़ने का कारण मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल भेजना बताया जा रहा है। आर्थिक अपराध में हेमंत सोरेन को जब जेल भेजा गया तो आदिवासी मतदाताओं में हेमंत सोरेन के प्रति सहानुभूति देखी गई। जेल से बाहर आने के बाद सोरेन ने दाढ़ी बढ़ा ली और स्वयं को एक लाचार नेता के तौर पर प्रस्तुत किया। झारखंड में हेमंत सोरेन ने आदिवासियों का जो सहानुभूति कार्ड खेला उसका मुकाबला भाजपा नहीं कर सकी। हालांकि प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की चिंता जताईथी। यहां तक कहा था कि घुसपैठ आदिवासियों की रोटी और बेटी छीन रहे है। मालूम हो कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी लड़कियों के साथ विवाह कर रहे है। इसका आदिवासियों पर व्यापक असर पड़ा है।
S.P.MITTAL BLOGGER (23-11-2024)
Website- www.spmittal.in
Facebook Page- www.facebook.com/SPMittalblog
Follow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11
Blog- spmittal.blogspot.com
To Add in WhatsApp Group- 9166157932
To Contact- 9829071511
No comments:
Post a Comment